मैं प्रार्थमिक विद्यालय में प्रभु की प्रार्थना सीख लिया था l हर बार जब मैं यह पंक्ति दोहराता था, “हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे” (मत्ती 6:11), मैं उस रोटी को नहीं भूलता था जो हमें कभी-कभी घर में मिलती थी l केवल जब मेरे पिता दौरे से लौटते थे तब ही हमें वह रोटी मिलती थी l इस प्रकार परमेश्वर से प्रतिदिन की रोटी माँगना मेरे लिए उपयुक्त प्रार्थना थी l
मैं बहुत जिज्ञासु हुआ जब वर्षों बाद मुझे आवर डेली ब्रेड पुस्तिका प्राप्त हुई l मुझे मालूम थी कि शीर्षक प्रभु की प्रार्थना से ली गई है, और मैं यह भी जानता था कि यह रोटी बेकरी वाली नहीं थी l नियमित रूप से पढ़ते हुए मैंने पाया कि वचन और सहायक नोट्स से परिपूर्ण यह “रोटी” आत्मा के लिए आत्मिक भोजन था l
वह आत्मिक भोजन ही था जो मरियम ने यीशु के पावों के निकट बैठकर और उसके वचन को ध्यानपूर्वक सुनकर पाया (लूका 10:39) l जब मार्था ने अपने को चिंता से थकित किया, मरियम प्रभु यीशु के निकट रहकर उसकी सुनती रही l काश हम भी समय निकाल सकें l वह जीवन की रोटी है (यूहन्ना 6:35), और वह आत्मिक भोजन द्वारा हमारे हृदयों को पोषित करता है l वह संतुष्ट करनेवाली रोटी है l