उत्तरी घाना में दादा के साथ रहकर मैं प्रतिदिन भेड़ों की देखभाल करता था l मैं उनको चारागाह ले जाकर शाम में लौटता था l तब मैंने जाना कि भेड़ें कितनी ढीठ होती हैं l खेत दिखाई देने पर, वे उसमें घुस जातीं और कई बार किसानों के साथ मुझे परेशानी होती l
तपन से थक कर पेड़ के नीचे विश्राम करते समय, मैं भेड़ों को झाड़ियों में घुसते और पहाड़ियों की ओर जाते देखता, जिससे मुझे उनके पीछे भागना पड़ता और मेरे पतले टांगों में झाड़ियों से खरोचें लग जातीं l उन जानवरों को मार्ग दिखाना और खतरों और परेशानियों से, विशेषकर भेड़ चुरानेवालों से बचाना कठिन होता था l
इसलिए मैं यशायाह की बातें समझता हूँ, “हम तो सब के सब भेड़ों के सामान भटक गए थे; … हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया” (53:6) l हम कई तरह से भटक जाते हैं : प्रभु की इच्छा और खुशी के विरुद्ध चलना, अपने व्यवहार द्वारा दूसरों को तकलीफ देना, और परमेश्वर और उसके वचन में समय न बिताना क्योंकि हम अत्यधिक व्यस्त होते हैं या रूचि नहीं रखते l
सौभाग्यशाली रूप से हमारे लिए, हमारा अच्छा चरवाहा अपने भेड़ों के लिए अपना प्राण दिया (यूहन्ना 10:11) और जो हमारे दुःख और पाप उठता है (यशा. 53:4-6) l और हमें सुरक्षित चारागाह में बुलाता है कि हम उसके निकट रहकर उसका अनुसरण करें l