जिनके लिए वे घरों की रूपरेखा बनाते हैं, अपने युवा वास्तुकारों को उनकी ज़रूरतें समझाने हेतु, डेविड डिलार्ड उन्हें “विश्राम” पर भेजते हैं l वे पैजामे पहनकर 24 घंटे वृद्धाश्रम में 80 और 90 वर्ष की आयु वालों की तरह रहते हैं l वे श्रवण शक्ति को बचने हेतु अपने कानों को बंद रखते हैं, कार्य करने की दक्षता बरक़रार रखने के लिए मिलकर काम करते हैं, और दृष्टि समस्या को दोहरा करने हेतु परस्पर चश्मा बदलते हैं l डिलार्ड कहते हैं, “सबसे अधिक लाभ है कि 27 वर्ष के युवा 10 गुना अधिक शक्ति लेकर लौटते हैं l वे लोगों से मिलकर उनकी दशा समझते हैं l” (Rodney Books, USA Today).
यीशु इस पृथ्वी पर 33 वर्ष रहकर हमारी मानवता को समझा l वह,“सब बातों में,” हमारे सामान बना (इब्रा. 2:17), इसलिए वह पृथ्वी पर मानव शरीर को समझता है l वह हमारे संघर्षों को जानकर, समझ और प्रोत्साहन के साथ निकट रहता है l
“क्योंकि जब उसने [यीशु] परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है” (पद. 18) l प्रभु क्रूस को टाल सकता था l किन्तु, वह अपने पिता का आज्ञाकारी रहा l अपनी मृत्यु द्वारा, शैतान की शक्ति को तोड़कर हमें मृत्यु के भय से स्वतंत्र किया (पद. 14-15) l
प्रत्येक परीक्षा में, यीशु हमें साहस, सामर्थ्य, और आशा देने के लिए हमारे संग चलता हैl