जब मेरी दादी मिशनरी होकर मेक्सिको आयी, उसे स्पेनिश भाषा सीखने में कठिनाई हुई l एक दिन वह बाज़ार गयी l उसने अपनी सहायता करनेवाली लड़की को सामान की सूची दिखाकर बोली, “यह दो ज़बानों(lenguas) में है l” किन्तु वह कहना चाहती थी कि उसने उसे दो भाषाओं(idiomas) में लिखा है l कसाई ने सुनकर सोचा वह दो ज़ुबान खरीदना चाहती है l मेरी दादी को घर पहुँचकर ही यह समझ आया l उसने पहले कभी भी ज़बान नहीं पकाया था l
दूसरी भाषा सीखते समय गलतियाँ निश्चित हैं, परमेश्वर के प्रेम की नयी भाषा सीखते समय भी l कई बार हमारी बोली विरोधात्मक होती है क्योंकि हम प्रभु की प्रशंसा के साथ-साथ दूसरों की बुराई भी करते हैं l हमारा पुराना पापी स्वभाव मसीह में हमारे नए स्वभाव का विरोध करता है l हमारे मुँह से निकली हुए बात हमारे लिए परमेश्वर की सहायता की ज़रूरत दर्शाती है l
हमारी पुरानी “ज़बान” को जाना ही होगा l यीशु को अपनी बोली का प्रभु बनाकर ही हम प्रेम की भाषा सीख सकते हैं l हमारे भीतर पवित्र आत्मा के कार्य ही हमें आत्म-संयम देते हैं जिससे पिता खुश होता है l काश हम प्रत्येक शब्द उसे समर्पित करें! “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर” (भजन 141:3) l