मेरी सहेली के शब्दों ने मुझे नाराज़ किया l मैं अपने सशक्त विचार के विषय अपनी सहेली की चुभनेवाली टिप्पणी पर सोचती रही l मैंने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और शांति मांगी l कई सप्ताह बाद भी चिंतित रहकर, मैंने प्रार्थना की, “मैं दुखित हूँ, प्रभु, किन्तु मुझे बताएं मुझे कहाँ परिवर्तन चाहिए और वह कहाँ सही है l”
मेरी सहेली मेरे जीवन में परमेश्वर के रेगमाल की तरह काम की थी l मेरी भावनाएं जख्मी हुईं, किन्तु मैंने जाना कि मेरा प्रतिउत्तर मेरे चरित्र को बनाएगा-अथवा नहीं l मुझे अपनी चुनाव प्रक्रिया को मृदु, अपने अहंकार और ढीठ रवैये हेतु क्षमा मागना था l मेरे टकराव और अपूर्णताओं से परमेश्वर महिमान्वित नहीं हो रहा था l l
राजा सुलेमान ने जाना कि समाज में जीवन कठिन होता है l नीतिवचन अध्याय 27 में, हम संबंधों में उसकी बुद्धिमत्ता को लागू करते देखते हैं l वह मित्रों के बीच शब्दों को, “जैसे लोहा लोहे को चमकाता है, वैसे ही मनुष्य … अपने मित्र … से चमकदार हो जाता है” बताता है (पद.17), परस्पर आचरण से खुरदरे भाग हटाना l प्रक्रिया से घाव हो सकता है, मेरे अनुभव की तरह (देखें पद.6), किन्तु अंततः प्रभु इन शब्दों द्वारा हमारे आचरण और व्यवहार में आमूल परिवर्तन लाने में सहायता और उत्साह दे सकता है l
प्रभु अपनी महिमा हेतु किस तरह आपके खुरदरे सतहों को मृदु बना रहा है?