ब्रिटन में रहते हुए मैं धूप की कालिमा की परवाह नहीं करती l आख़िरकार, बादलों की एक मोटी परत सूरज को ढके रहते हैं l किन्तु हाल ही में स्पेन में, मैंने अपने पीले त्वचा के कारण महसूस किया कि मुझे धूप में मात्र 10 मिनट रहकर तुरंत छाते के नीचे जाना होगा l
चिलचिलाती भूमध्यसागरीय धूप पर विचार करके, मैंने प्रभु परमेश्वर के प्रतिरूप पर गहराई से सोचा जो अपने लोगों के लिए दाहिनी ओर आड़ है l मध्यपूर्व के निवासी कठोर तपन जानते थे, और सूरज की तापक किरणों से सुरक्षा ज़रूरी थी l
भजनकार प्रभु की इस तस्वीर को भजन 121 में आड़ कहता है, जो मन के स्तर पर एक संवाद के रूप में समझा जा सकता है-प्रभु की भलाई और विश्वासयोग्यता के सम्बन्ध में स्वयं के साथ एक वार्तालाप l प्रार्थना में इस भजन को पढ़कर, आश्वस्त होते हैं कि प्रभु हमारे चारों ओर सुरक्षात्मक बचाव रखता है और हमें नहीं छोड़ेगा l छाते के नीचे सूरज से सुरक्षा प्राप्त करने के सामान ही हम प्रभु में सुरक्षित स्थान पा सकते हैं l
हम अपनी निगाहें “पर्वतों की ओर’ लगाते हैं (पद. 1-2) इसलिए कि चाहे हम धूप में हो या बारिश में, हम उसकी सुरक्षा, सुख, और तरोताज़गी का उपहार पाते हैं l