जब मार्शल मेक्लुहन ने 1964 में “माध्यम ही सन्देश है,” मुहावरा बनाया, पर्सनल कंप्यूटर नहीं थे, मोबाइल फ़ोन विज्ञान की कल्पना थी, और इन्टरनेट का अस्तित्व नहीं था l कैसे इस डिजिटल युग में हमारे विचार प्रभावित हैं, आज हम उसकी भविष्यवाणी की दूरदर्शिता समझते हैं l निलोलस कार्र अपनी पुस्तक द शैलोज़ : व्हाट द इन्टरनेट इज़ डूइंग टू आवर ब्रेन्स, में लिखता है, “[मीडिया] विचार सामग्री और विचार प्रक्रिया को आकार भी देती है l और इन्टरनेट मेरी एकाग्रता और विचारणा योग्यता को कम कर रहा है l ऑनलाइन अथवा नहीं, मेरा मस्तिष्क नेट शैली में वितरित सूचनाएँ चाहता है : त्वरित कण प्रवाह में l”
मुझे जे. बी. फिलिप्स द्वारा रोम के मसीहियों को पौलुस के सन्देश की व्याख्या पसंद है : संसार तुम्हें अपने साँचें में न ढाले, परन्तु परमेश्वर आपके मन को अन्दर से ढाले, ताकि आप अपने लिए व्यवहारिक रूप से जानें परमेश्वर की योजना अच्छी है , उसकी समस्त मांगें पूरी करते हुए वास्तविक परिपक्वता के लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं” (रोमियों 12:2) l अपने विचारों और अपने मन को अपने चारों ओर के संसार द्वारा प्रभावित सामग्री को संसाधित करते देखना कितना प्रासंगित है l
हम सूचनाओं की बौछार की लहर रोक नहीं सकते, किन्तु अपने जीवनों में परमेश्वर की उपस्थिति द्वारा उस पर केन्द्रित रहने और अपने विचारों को आकर देने हेतु प्रार्थना कर सकते हैं l