ओलौडा एक्वीआनो (c.1745-1796) 11 वर्ष की उम्र में अगवा किया जाकर दासत्व में बेच दिया गया l उसने पश्चिमी अफ्रीका से वेस्ट इन्डीज़, और उसके बाद वर्जिनिया, और तब इंग्लैंड तक की खौफनाक यात्रा की l 20 की उम्र में वह अपनी कीमत चुकाकर स्वतंत्र हुआ, फिर भी अमानवीय बर्ताव का भावनात्मक और शारीरिक दाग़ मौजूद थे जो उसने अनुभव किये थे l
दूसरों को दासत्व में देखकर अपनी स्वतंत्रता को भोगने में अक्षम, एक्वीआनो इंग्लैंड में दासत्व को मिटाने के आन्दोलन में सक्रीय हो गया l उसने अपनी आत्मकथा (उस काल में एक पूर्व दास के लिए अनजानी उपलब्धि) लिखी जिसमें उसने दासत्व में फंसे लोगों के साथ भयंकर व्यवहार का वर्णन किया l
यीशु आकर, हम अक्षम और दासत्व में फंसे लोगों के लिए लड़ाई लड़ा l हमारे दासत्व की लड़ाई बहरी नहीं है l हम अपने टूटेपन और पाप में जकड़े हुए हैं l यीशु ने कहा, “जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है l दास सदा घर में नहीं रहता है; पुत्र सदा रहता है l इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे” (यूहन्ना 8:34-36) l
जहाँ भी ऐसी स्वतंत्रता सुनाई नहीं देती, उसके वचन की घोषणा अनिवार्य है l हम अपने दोष, लज्जा, और निराशा से छूट सकते हैं l यीशु में विश्वास करने से हम वास्तव में स्वतंत्र हो सकते हैं!