मेरी सहेली के पिता के यादगार समारोह में, किसी ने उससे कहा, “तुम्हारे पिता को जानने तक मुझे नहीं मालूम था कि दूसरों की सहायता करने में आनंद है l” उसके पिता ने दूसरों की सहायता करके, प्रसन्न रहकर और प्रेम करके, और अजनबियों को मित्र बनाकर परमेश्वर के राज्य निर्माण में अपनी भूमिका निभाकर, अपनी मृत्यु बाद प्रेम की विरासत छोड़ी l तुलनात्मक रूप से, मेरी सहेली की फूफी-उसके पिता की बड़ी बहन-ने अपने धन को अपना विरासत मानकर, अपने अंतिम दिन इस चिंता में गुज़ारे कि कौन उसकी विरासत और दुर्लभ पुस्तकें संभालेगा l
अपनी शिक्षा और नमूना में, यीशु ने अपने अनुयायियों को धन इकट्ठा न करने, निर्धनों में बांटने, और मोरचा अथवा न सड़नेवाली वस्तुओं को महत्त्व देने को कहा l “क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन रहेगा,” यीशु ने कहा, “वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा l” (लूका 12:34) l
हम सोचते होंगे हमारी वस्तुएं हमारे जीवन को सार्थक बनाती हैं l किन्तु नवीनतम उपकरण के टूटने, गलत जगह रखने या कुछ मूल्यवान खो देने पर, हम समझने लगते हैं कि प्रभु के साथ हमारा रिश्ता ही संतोषदायक और स्थायी है l दूसरों के लिए हमारा प्रेम और देखभाल मिटता और धूमिल नहीं होता l
हम किसे महत्त्व देते हैं और हमारा मन कहाँ बसता है, इसे स्पष्टता से देखने में और सबसे अधिक उसके राज्य के खोजी बनने में प्रभु से सहायता मांगे (12:31) l