जोई ने प्रार्थना से बच्चों का कार्यक्रम आरंभ करके उनके साथ गीत गाया l छः वर्षीय इम्मानुएल कसमसाया जब उसने, शिक्षक एरोन का परिचय कराते समय पुनः प्रार्थना की l तब एरोन ने अपनी बातें प्रार्थना से आरंभ और अंत की l इम्मानुएल की शिकायत थी : “चार प्रार्थनाएँ ! मैं इतनी देर नहीं बैठ सकता!”
यदि आपके लिए इम्मानुएल की चुनौती है, देखें 1 थिस्सलुनीकियों 5:17 को : “निरंतर प्रार्थना में लगे रहो” या हमेशा प्रार्थना की आत्मा में रहें l हममें से कुछ व्यस्क भी प्रार्थना को उबाऊ समझते हैं l शायद इसलिए कि हमारे पास शब्द नहीं है या नहीं समझते कि प्रार्थना पिता के साथ संवाद है l
सातवीं शताब्दी में, फ़्रान्कोएस फेनेलोन ने प्रार्थना पर कुछ शब्द लिखे जिससे मुझे मदद मिली : “अपने हृदय की समस्त बातें परमेश्वर को बताएं, जैसे कोई अपने मित्र को अपने हृदय की खुशियाँ और दर्द बताता है l उसे अपनी समस्याएँ बताएँ, कि वह आपको आराम दे; उसे अपने आनंद बताएँ, कि वह उनको शांत करे; उसे अपनी इच्छाएँ बताएँ, कि वह उनको पवित्र करे l उसे अपनी परीक्षाएँ बताएँ, कि वह आपको बचाए : उसे अपने हृदय के घाव बताएँ, कि वह चंगाई दे … इस तरह यदि आप अपनी कमजोरियाँ, ज़रूरतें, परेशानियाँ बताएंगे, आपके पास बताने को कमी नहीं होगी l”
हम परमेश्वर से और घनिष्ठ हों कि उसके साथ अधिक समय बिताने की इच्छा हो l