मैं हाई स्कूल में पढ़ते समय विश्वविद्यालय के टेनिस टीम में खेलता था l मैं अपने किशोरावस्था में अपने घर से दो घर दूर एक टेनिस कोर्ट में घंटों खेलकर अपने कौशल का विकास करता था l
पिछली बार जब मैं उस शहर में गया, मैं आशा से उस टेनिस कोर्ट में दूसरों को खेलते हुए और कुछ पलों के लिए अपनी पुरानी यादें ताज़ी करने गया l किन्तु अब वे टेनिस कोर्ट जो मेरी यादों में बहुत परिचित थे, वहाँ नहीं थे l उनके स्थान पर एक खाली मैदान था, जिसमें उगे हुए घास कभी-कभी हवा से लहराते रहते थे l
उस दोपहर की बात मेरे मन में बैठ गयी जो जीवन की अल्पता/लघुता याद दिलाती है l एक स्थान जहाँ मैंने अपने युवावस्था की शक्ति जो अब मुझ में नहीं है खर्च की थी! उस अनुभव के विषय विचार करते हुए इस सच से मेरा सामना हुआ, जो वृद्ध राजा दाऊद कहता है : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है l परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयों पर युग युग और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है” (भजन 103:15-17)
हमारी उम्र बढती जाती है और हमारे चारोंओर का संसार बदल भी जाएगा, किन्तु परमेश्वर का प्रेम नहीं बदलता है l उसकी ओर मुड़नेवाले उसकी देखभाल के विषय निश्चित रहें l
हमारे बदलते संसार में, हम नहीं बदलने वाले परमेश्वर पर सर्वदा भरोसा रख सकते हैं l