मैं अपने सिर को झुकाकर, अपनी आँखों को बंद करके, अपने हाथों को जोड़कर प्रार्थना करना आरम्भ कर देता हूँ l “प्रिय परमेश्वर, मैं आपके सामने एक बच्चे की तरह आता हूँ l मैं आपकी सामर्थ्य और भलाइयों को स्वीकार करता हूँ . . . l”  अचानक, मेरी आँखें खुल जाती हैं l मुझे याद आता है कि मेरे बेटे ने इतिहास के प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया है, जो उसको कल दिखाना है l स्कूल के बाद उसे बास्केटबाल गेम भी खेलना है, और मैं कल्पना करता हूँ कि वह मध्य रात्रि तक जागकर अपना गृह कार्य पूरा कर रहा है l इससे मैं चिंतित हो जाता हूँ कि कहीं थकान से उसे बुखार न आ जाए!

सी.एस. लयूईस प्रार्थना में विकर्षण के विषय अपनी पुस्तक स्क्रूटेप लेटर्स  में लिखते हैं l उन्होंने ध्यान दिया कि हमारे मस्तिष्क के भटकने पर, हम अपनी पूर्व की प्रार्थना में लौटने के लिए अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करते हैं l लयूईस यद्यपि इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि उस विकर्षण को [अपनी] वर्तमान समस्या के रूप में स्वीकार करना बेहतर होगा और उसे [परमेश्वर] के आगे [रखकर], उसे अपनी प्रार्थना का मुख्य विषय बना लेना चाहिए l”

प्रार्थना में भटकाव लानेवाली एक स्थायी चिंता अथवा एक पापी विचार भी परमेश्वर के साथ हमारी चर्चा का केंद्रबिंदु बन सकता है l जब हम परमेश्वर से बातचीत करते हैं उसकी इच्छा है कि हम वास्तविक बनकर उसे अपनी गहरी चिंता, भय, और संघर्ष बताएं l वह हमारी बातों से चकित नहीं होता है l वह एक घनिष्ट मित्र की देखभाल की तरह हमारा ध्यान रखता है l इसीलिए हम अपनी सारी चिंता और बेचैनी उस पर डालने में उत्साहित होते हैं – क्योंकि उसको हमारा ध्यान है (1 पतरस 5:7) l