एक बाइबल स्कूल कार्यक्रम में बच्चों को नाश्ता बांटते हुए, हमने एक बच्चे को लालच से अपना नाश्ता खाते देखा l फिर उसने बच्चों का छोड़ा हुआ नाश्ता भी खा लिया l वह पोपकोर्न का एक बड़ा पैकेट प्राप्त करने के बाद भी संतुष्ट नहीं हुआ l अगुआ होने के कारण हम चिंतित थे कि क्यों यह छोटा लड़का इतना भूखा था l
मेरे मन में यह विचार आया कि हम भी अपनी भावनाओं के सम्बन्ध में उस छोटे लड़के की तरह हो सकते हैं l हम अपनी गहरी इच्छाओं की संतुष्टि के लिए रास्ता ढूंढते हैं, किन्तु हमें पूरी तरह संतुष्ट करने वाली वस्तु नहीं मिलती है l नबी यशायाह भूखे लोगों को बुलाता है, “आओ . . . मोल लो और खाओ” (यशायाह 55:1) l किन्तु उसके बाद पूछता है, “जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिए तुम क्यों रुपया लगाते हो, और जिस से पेट नहीं भरता उसके लिए क्यों परिश्रम करते हो ? (पद.2) l यशायाह यहाँ पर केवल शारीरिक भूख की बात नहीं करता है l परमेश्वर हमारी आत्मिक और भावनात्मक भूख को अपनी उपस्थिति की प्रतिज्ञा से संतुष्ट कर सकता है l पद 3 में “सदा की वाचा” 2 शमूएल 7:8-6 में परमेश्वर द्वारा दाऊद को दी गयी प्रतिज्ञा याद दिलाती है l दाऊद के परिवार से, एक उद्धारकर्ता लोगों को परमेश्वर के साथ जोड़ने के लिए आएगा l बाद में, यूहन्ना 6:35 में और 7:37 में, यीशु ने यशायाह का ही निमंत्रण देकर, खुद को यशायाह और दूसरे नबियों द्वारा बताया गया उद्धारकर्ता कहा l
आप भूखे हैं? परमेश्वर आपको पास आकर उसकी उपस्थिति से भर जाने का नेवता देता है l
केवल परमेश्वर ही हमारी आत्मिक भूख को संतुष्ट कर सकता है l