कभी-कभी सही काम थका देता है l हम सोच सकते हैं, क्या सही इरादों के साथ शब्दों और कार्यों से कुछ अंतर पड़ता है या नहीं? हाल ही में मैं इस पर विचार कर रही थी जब मैंने प्रार्थना के साथ विचार करके एक मित्र को उत्साहित करने के लिए ई-मेल भेजा, जिसका क्रोधित प्रतिउत्तर मिला l मेरी अविलम्ब प्रतिक्रिया ठेस और क्रोध दोनों ही थी l मुझे इतना गलत कैसे समझा जा सकता था?
क्रोध में प्रतिउत्तर देने से पहले, मैंने स्मरण किया कि ज़रूरी नहीं कि किसी को भी यीशु के प्रेम के विषय बताने का परिणाम(या इच्छित परिणाम) मिले l दूसरों की भलाई करके उन्हें यीशु के निकट लाने की आशा करने पर, वे हमें अस्वीकार करेंगे l किसी को सही कार्य करने के हमारे विनम्र प्रयास की उपेक्षा हो सकती है l
अपने सच्चे प्रयास के प्रतिउत्तर के परिणामस्वरूप निराश होने पर गलातियों 6 में जाना अच्छा है l यहाँ पर प्रेरित पौलुस हमें अपने इरादों पर विचार करने के लिए उत्साहित करता है अर्थात् जो कुछ हम बोलते और करते हैं, अर्थात् “अपने काम को जाँच [लें]” (पद.1-4) l ऐसा करने के बाद, वह हमें दृढ़ रहने हेतु उत्साहित करता है : “हम भले काम करने में साहस न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे l इसलिए जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें, विशेष करके विश्वासी भाईयों के साथ” (पद.9-10) l
परमेश्वर चाहता है कि हम उसके लिए निरंतर जीवन बिताएं, जिसमें दूसरों के लिए प्रार्थना और उसके विषय उनको बताना शामिल है अर्थात् “भले काम l” परिणाम वह देगा l
हम अपने जीवन का परिणाम परमेश्वर के हाथों में छोड़ सकते हैं l