जबकि (जर्मनी) कलीसिया के अनेक अगुवों ने हिटलर के सामने हार मान ली थी, थियोलौजियन(धर्मशास्त्री) और पासबान मार्टिन निमोल्लर उन बहादुर आत्माओं में से एक थे, जिन्होंने नाज़ी दुष्टता का विरोध किया था। मैंने एक घटना पढ़ी थी जिसमें 1970 में वृद्ध जर्मन लोगों का एक समूह एक बड़े होटल के बाहर खड़ा है, जबकि एक युवक उस समूह के सामान के साथ दौड़-धूप कर रहा है। किसी ने पूछा कि वह समूह किन लोगों का था। उत्तर आया “जर्मन पासबान” । “और वह युवक कौन था?” वह मार्टिन निमोल्लर थे-वह अस्सी वर्ष के थे। वह जवान बने रहे क्योंकि वह अभीत थे।”
निमोल्लर इसलिए भय का विरोध करने के योग्य नहीं थे क्योंकि उनमें भय से उनकी प्रतिरक्षा करने के लिए कुछ दिव्य वस्तु विद्यमान थी, परन्तु वह परमेश्वर के अनुग्रह के कारण ऐसे थे। वास्तव में एक समय में तो वह यहूदी विरोधी दृष्टिकोण तक रखते थे। परन्तु उन्होंने पश्चाताप किया और परमेश्वर ने उन्हें सम्भाला और परमेश्वर ने उन्हें आवाज़ उठाने और सत्य के लिए जीने में सहायता की।
मूसा ने इस्राएलियों को भय का विरोध करने और सत्य में परमेश्वर के पीछे चलने के लिए प्रोत्साहित किया। यह जानने के पश्चात कि मूसा को शीघ्र ही उनसे ले लिए जाएगा, वे भयभीत हो गए, तब उस अगुवे (में) बिना डरे उनके लिए ये शब्द थे: “तू हियाव बाँध और दृढ़ हो, उनसे न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” (व्यवस्थाविवरण 31:6) । मात्र एक ही कारण से एक अनिश्चित भविष्य के सामने काँपने का कोई भी कारण नहीं था: क्योंकि परमेश्वर उनके साथ था।
चाहे कैसा भी अँधेरा आप पर हावी हो, चाहे कैसे भी खतरे आप पर हमला करें-परमेश्वर आपके साथ है। परमेश्वर की दया के द्वारा आप इस ज्ञान के साथ अपने भय का सामना कर सकते हैं कि “वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” (पद 6, 8) ।
अभीत रहने का अर्थ यह नहीं है कि हम भय का अहसास नहीं करते, परन्तु हम इसे हम पर हावी नहीं होने देते।