अनुभव प्रोजेक्ट, इक्कीसवीं सदी की एक सबसे बड़ी ऑनलाइन समुदाय, एक समय ऐसी साईट थी जिसपर बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी गहरी पीड़ादायक प्रत्यक्ष अनुभवों को साझा किया l मर्मभेदी कहानियों को पढ़ते समय, मैंने विचार किया कि हमारे हृदय कितने बेसब्री से ऐसे किसी व्यक्ति के लिए लालायित होते हैं जो हमारा दर्द समझ ले l
उत्पत्ति में, एक युवा दासी की कहानी दर्शाती है कि यह उपहार कितना अधिक जीवनदायक हो सकता है l
हाजिरा एक दासी लड़की थी जिसे संभवतः मिस्र के फिरौन ने अब्राम को दी थी (देखें उत्पत्ति 12:16; 6:1) l जब अब्राम की पत्नी सारै गर्भवती न हो सकी, उसने अब्राम को हाजिरा से एक संतान उत्पन्न करने का आग्रह किया-उस काल का एक तकलीफ़देह अपितु सामान्य चलन l किन्तु जब हाजिरा गर्भवती हो गयी, तनाव बढ़ गया, जबतक कि हाजिरा सारै के दुर्व्यवहार से जंगल में न भाग गयी (16:1-6) l
किन्तु हाजिरा की कठिन परिस्थिति-एक कठोर, निर्मम मरुभूमि में गर्भवती और अकेले- दिव्य आँखों से भाग न सकी l एक स्वर्गिक दूत द्वारा हाजिरा को प्रोत्साहित करने के बाद (पद.7-12), उसने घोषणा की, “अत्ताएलरोई-तू सर्वदर्शी ईश्वर है” (पद.13) l
हाजिरा खाली तथ्यों से परे देखनेवाले परमेश्वर की स्तुति कर रही थी l वही परमेश्वर यीशु में प्रगट हुआ, जिसने, भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान . . . व्याकुल और भटके हुए से थे” (मत्ती 9:36) l हाजिरा का सामना एक ऐसे परमेश्वर से हुआ था जो समझ सकता था l
जिस परमेश्वर ने हाजिरा की पीड़ा को देखा और समझा हमारी भी समझता है (इब्रानियों 4:15-16) l स्वर्गिक परानुभूति का अनुभव असहनीय को थोड़ा अधिक सहनीय बनने में सहायता कर सकता है l
परमेश्वर हमारी पीड़ा को अनुभव करता है मानो यह उसकी ही पीड़ा है l