पासवान और संपादक इयूजीन पीटरसन को स्विट्ज़रलैंड के चिकित्सक और उच्च आदर प्राप्त पास्त्रीय परामर्शदाता पॉल टोर्नियर का व्याख्यान सुनने का अवसर मिला l पीटरसन ने डॉक्टर के कार्यों को पढ़ा था, और चंगाई के प्रति उनके दृष्टिकोण की प्रशंसा की थी l व्याख्यान ने पीटरसन पर एक गहरी छाप छोड़ी l जब वे सुन रहे थे, उनको महसूस हुआ कि टोर्नियर के कथनी और करनी में अंतर नहीं था l पीटरसन ने अपने अनुभव का वर्णन करने के लिए इस शब्द का चुनाव किया : “अनुरूपता l यह सबसे अच्छा शब्द है जो मैं ढूढ़ सकता हूँ l”
अनुरूपता (Congruence) – इसको कुछ लोग ”अपने प्रचार का अभ्यास करना” या “अपनी कथनी को करनी में बदलना” संबोधित करते हैं l प्रेरित यूहन्ना बल देते हैं कि यदि हममें से कोई “यह कहता है कि मैं ज्योति में हूँ और अपने भाई से बैर रखता” है तो वह अब तक “अन्धकार ही में है” (1 यूहन्ना 2:9) l निष्कर्ष यह है, हमारे जीवन और हमारे कार्य बस मेल नहीं खाते हैं l यूहन्ना आगे कहता हैं कि ऐसे लोग “नहीं [जानते] कि कहाँ [जाते] हैं” (पद.11) l यह शब्द जिसका उन्होंने यह बताने के लिए चुनाव किया कि परस्पर-विरोधी हमें किस प्रकार छोड़ जाता है? दृष्टिहीन l
वचन के प्रकाश को हमारे मार्गों को आलोकित करने की अनुमति देने के द्वारा परमेश्वर के साथ निकटता से पंक्तिबद्ध रहकर जीवन जीना हमें दृष्टिहीन होने से बचाता है l परिणाम एक धर्मी दृष्टिकोण होता है जो हमारे दिनों को स्पष्टता देता है और उन्हें केन्द्रित करता है – हमारी कथनी और करनी अनुरूप होते हैं l जब दूसरे यह देखते हैं, प्रभाव आवश्यक रूप से किसी ऐसे व्यक्ति का नहीं है जिसे सभी स्थान की जानकारी है जहाँ वह जा रहा है, परन्तु ऐसे व्यक्ति का है जो स्पष्टता से जानता है वह किसका अनुगामी है l
हे यीशु, मैं ऐसा जीवन जीना चाहता हूँ जहां कथनी और करनी में अंतर नहीं हो l ऐसे समय भी होते हैं जब मैं चूक जाता हूँ, परन्तु मेरी इच्छा हर एक गुज़रते दिन के साथ अधिक अनुरूप बनने की है l कृपया मेरी मदद कीजिए, ताकि मुझे सुननेवाला और मेरे जीवन को देखनेवाला हर एक व्यक्ति आपकी ओर आकर्षित हो l