अनंत आँखें, यही प्रार्थना मेरी सहेली मारिया अपने बच्चों और नाती-पोतों के लिए करती हैं कि उनके पास हों l उसका परिवार अशांत काल से होकर निकला है जो उसकी बेटी की मृत्यु के साथ ख़त्म हुआ l जब उसका परिवार इस भयावह नुक्सान से अत्यंत दुखित है, मारिया चाहती है कि वे बहुत कम अदूरदर्शी हों – इस संसार की पीड़ा से बर्बाद न हो जाएँ l और अधिकाधिक दूरदर्शी हों – हमारे प्रेमी परमेश्वर में आशा से भरे हुए l
प्रेरित पौलुस और उसके सहकर्मियों ने उत्पीड़ित करने वालों के हाथों और यहाँ तक कि विश्वासियों से भी बहुत पीड़ा का अनुभव किया जिन्होंने उन्हें बदनाम करने की कोशिश की l फिर भी, उन्होंने अपनी आँखें अनंत काल पर स्थिर रखीं थीं l पौलुस ने साहसपूर्वक स्वीकार किया कि “हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिन्थियों 4:18) l
यद्यपि वे परमेश्वर का कार्य कर रहे थे, लेकिन वे “चारों ओर से क्लेश . . . [भोगने],” “निरुपाय [होने],” “सताए . . . [जाने],” और “गिराए . . . [जाने]” (पद.8-9) की वास्तविकता के साथ रहते थे l क्या परमेश्वर को उन्हें इन परेशानियों से बचाना नहीं चाहिये था? (पद.17) l वह जानता था कि परमेश्वर की सामर्थ्य उसमें काम कर रही थी और उसे पूर्ण निश्चय था कि “जिसने प्रभु यीशु मसीह को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागिदार जानकार जिलाएगा” (पद.14) l
जब हमारे चारों ओर का संसार अस्थिर महसूस हो, हम अपनी दृष्टि परमेश्वर की ओर करें – वह अनंत चट्टान जो कभी भी नष्ट नहीं होगा l
अपनी कठिनाइयों के बावजूद आप किस वस्तु में आशा रखने का चुनाव करते हैं? आपने किस प्रकार परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का अनुभव किया है?
हे परमेश्वर, आज मैं आपकी ओर अपनी आँखें उठाता हूँ l उस सुरक्षा की एक झलक मुझे दे जो मैं आपमें रखता हूँ l