एक लड़के के रूप में, जीवन को अपने पिता कठोर और दूरदर्शी लगे। यहां तक कि जब जीवन बीमार था और उसे बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना पड़ा, तब भी उसके पिता ने शिकायत की कि यह परेशानी भरा है। एक बार, उसने झगड़े में सुना कि उसका पिता उसका गर्भपात कराना चाहते थे। एक अनचाहे बच्चे होने की भावना उसके बड़ा होने तक उसका पीछा करती रही। जब जीवन यीशु में विश्वास करने लगा, तो उसे परमेश्वर से पिता के रूप में जुड़ना मुश्किल हो गया, भले ही वह उसे अपने जीवन के प्रभु के रूप में जानता था।

यदि, जीवन की तरह, हमें अपने सांसारिक पिताओं से प्यार महसूस नहीं हुआ है, तो हमें परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में इसी तरह के संदेह का सामना करना पड़ सकता है। हम सोच सकते है, की क्या मैं एक बोझ हूँ? क्या उसे मेरी परवाह है? परन्तु जब हमारे सांसारिक पिता चुप और दूर रहे होंगे, हमारा स्वर्गीय पिता परमेश्वर निकट आता है और कहता है, ” मैं तुझ से प्रेम रखता हूँ” (यशायाह 43:4)।

यशायाह 43 में, परमेश्वर हमारा सृष्टिकर्ता और पिता के रूप में बोलते हैं। यदि सोचते हैं कि क्या वह चाहता है कि आप उसके परिवार के हिस्से के रूप में उसकी देखरेख में रहें, तो सुनें कि उसने अपने लोगों से क्या कहा: “मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी के छोर से ले आओ” (पद 6)। यदि आप सोचते हैं कि आप उसके लिए क्या मूल्य रखते हैं, तो उसकी पुष्टि सुनें: “मेरी दृष्‍टि में तू अनमोल और प्रतिष्‍ठित ठहरा है।” (पद 4)

परमेश्वर हमसे इतना प्यार करता है कि उसने पाप का दंड चुकाने के लिए यीशु को भेजा ताकि हम जो उस पर विश्वास करें, हमेशा उसके साथ रह सकें (यूहन्ना 3:16)। वह जो कहता है और उसने हमारे लिए जो किया है, उसके कारण हम पूरा विश्वास रख सकते हैं कि वह हमें चाहता है और हमसे प्यार करता है।