मेरी सहेली अस्पताल में अपनी तनावपूर्ण नौकरी से यह सोचते हुए जल्दी से निकल गयी, कि उसके पति के समान रूप से कठिन काम से लौटने से पहले वह रात के खाने के लिए क्या तैयार करेगी l उसने रविवार को चिकन बनाया था और सोमवार को बचा हुआ चिकन परोसा था l मंगलवार को उसे फ्रिज में केवल सब्जियां मिलीं, लेकिन वह जानती थी कि शाकाहारी भोजन उसके पति का पसंदीदा नहीं था l जब उसे कुछ और नहीं मिला जिसे वह कुछ ही मिनटों में तैयार कर सकती थी, तो उसने फैसला किया कि उसे सब्जियां बनानी होंगी l
जैसे ही उसने भोजन मेज पर रखा, उसने अपने पति से, जो अभी-अभी घर आया था, क्षमा मांगते हुए कहा : “मुझे पता है कि यह आपका पसंदीदा नहीं है l” उसके पति ने ऊपर देखा और कहा, “प्रिय, मैं बहुत खुश हूँ कि हमारे पास मेज पर खाना है l”
उनका व्यवहार मुझे ईश्वर से हमारे दैनिक प्रबंधों के लिए धन्यवादी और आभारी होने के महत्त्व की याद दिलाता है—चाहे वे कुछ भी हों l हमारी दैनिक रोटी, या भोजन के लिए धन्यवाद देना, यीशु का उदाहरण प्रस्तुत करता है l जब उसने अपने पुनरुत्थान के बाद दो शिष्यों के साथ भोजन किया, तो मसीह ने “रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे [तोड़ा]”(लूका 24:30) l उसने अपने पिता को धन्यवाद दिया जैसे उसने पहले किया था जब उसने पांच हज़ार लोगों को पांच “रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ” खिलाई थीं (यूहन्ना 6:9) l जब हम अपने दैनिक भोजन और अन्य प्रबंधों के लिए धन्यवाद देते हैं, तो हमारी कृतज्ञता यीशु के तरीकों को दर्शाती हैं और हमारे स्वर्गिक पिता का आदर करती है l आइये आज परमेश्वर को धन्यवाद दें l
आप कितनी बार यीशु के प्रति अपना धन्यवाद प्रकट करते हैं? ऐसा करना उसे कैसे आदर देता है?
सबके परमेश्वर, मेरी प्रतिदिन की रोटी और मेरी अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आपको धन्यवाद l