जब मेरे “चाचा” एमरी का निधन हुआ, तो श्रद्धांजलियां अनेक और विविध थीं l फिर भी उन सभी सम्मानों का एक अनुकूल विषय था—एमरी ने दूसरों की सेवा करके परमेश्वर के प्रति अपना प्यार दिखाया था l इसका उदाहरण उनकी द्वितीय विश्व युद्ध की सैन्य सेवा के दौरान प्रकट था, जहाँ उन्होंने एक कॉर्प्समैन(corpsman) के रूप में कार्य किया था—एक चिकित्सक जो बिना हथियार के युद्ध में गया था l उनकी बहादुरी के लिए उन्हें उच्च सैन्य सम्मान मिला, लेकिन एमरी को युद्ध के दौरान और उसके बाद उनकी दयालु सेवा के लिए सबसे अधिक याद किया गया l 

एमरी की निस्वार्थता गलातियों के प्रति पौलुस की चुनौती के अनुरूप थी l उसने लिखा, “हे भाइयों (और बहनों), तुम स्वतंत्र होने के लिए बुलाए गए हो; परन्तु ऐसा न हो कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिए अवसर बने, वरन् प्रेम से एक दूसरे के दास बनो” (गलातियों 5:13) l आखिर कैसे? हमारे टूटेपन में, हम दूसरों के बजाय स्वयं को पहले रखने के लिए दृढ़ हैं तो यह अप्राकृतिक निस्वार्थता कहाँ से आती है?

फिलिप्पियों 2:5 में, पौलुस यह प्रोत्साहन देता है : “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो l” पौलुस हमारे प्रति अपने महान प्रेम के कारण क्रूस पर मृत्यु का अनुभव करने की मसीह की इच्छा का वर्णन करता है l जैसे ही उसकी आत्मा हमें मसीह के मन को उत्पन्न करती है, तभी हम अलग होते हैं और दूसरों के लिए बलिदान देने में सक्षम होते हैं—यीशु द्वारा किए गए अंतिम बलिदान को दर्शाते हुए जब उसने हमारे लिए खुद को दे दिया l क्या हम अपने भीतर आत्मा के कार्य के प्रति समर्पण कर सकते हैं l