रीढ़ की हड्डी की चोट से लकवाग्रस्त लोगों के लिए आशा का एक नया कारण सामने आया है l जर्मन शोधकर्ताओं ने मांसपेशियों और मस्तिष्क के बीच तंत्रिका मार्गों(neural pathways) को फिर से जोड़ने के लिए तंत्रिका विकास को प्रोत्साहित करने का एक तरीका खोजा है l पुनर्विकास ने लकवाग्रस्त चूहों को फिर से चलने में सक्षम बना दिया है, और यह निर्धारित करने के लिए परीक्षण जारी रहेगा कि यह चिकित्सा मनुष्यों के लिए सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं l 

जो लोग पक्षाघात से पीड़ित हैं उनके लिए विज्ञान जो हासिल करना चाहता है, यीशु ने चमत्कारों के द्वारा किया l जब वह बैतहसदा के कुण्ड पर गया, एक ऐसा स्थान जहाँ बहुत से बीमार लोग चंगाई की आशा में ठहरे रहते थे, तो यीशु ने उनमें से एक ऐसे व्यक्ति को देखा  “अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था” (यूहन्ना 5:5) l यह पुष्टि करने के बाद कि वह मनुष्य वास्तव में ठीक होना चाहता था, मसीह ने उसे खड़े होने और चलने की आज्ञा दी l “वह मनुष्य तुरंत चंगा हो, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा” (पद.9) l 

हमसे यह प्रतिज्ञा नहीं की गयी है कि हमारी सभी शारीरिक बीमारियाँ ठीक कर दी जाएंगी—कुण्ड में अन्य लोग भी थे जिन्हें उस दिन यीशु द्वारा ठीक नहीं किया गया था l लेकिन जो लोग उस पर भरोसा करते हैं, वे उसके द्वारा दी गयी चंगाई का अनुभव कर सकते हैं—निराशा से आशा तक, कड़वाहट से अनुग्रह तक, घृणा से प्रेम तक, आरोप से क्षमा करने की इच्छा तक l कोई भी वैज्ञानिक खोज (या पानी का कुण्ड) हमें ऐसी चंगाई नहीं दे सकती; यह केवल विश्वास से संभव है l