उन्होंने नहीं सोचा था कि भूमि पर खेती करने वाले काश्तकार/पट्टेदार जोर्न का महत्व इतना अधिक होगा l फिर भी अपनी कमजोर दृष्टि और अन्य शारीरिक सीमाओं के बावजूद, उसने नॉर्वे में अपने गाँव के लोगों के लिए खुद को समर्पित कर दिया, और कई रातों तक प्रार्थना की जब उनके दर्द ने उन्हें जगाए रखा l प्रार्थना में वह एक घर से दूसरे घर जाते थे, प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग नाम लेते थे, यहाँ तक कि उन बच्चों का भी, जिनसे वह तब नहीं मिले थे l लोग उनकी दयालु भावना को पसंद करते थे और उनकी बुद्धिमत्ता और सलाह लेते थे l यदि वह व्यवहारिक रूप से उनकी सहायता नहीं कर सका, तो उनकी जाने के बाद भी वे उसका प्यार पाकर धन्य महसूस करेगे l और जब जोर्न की मृत्यु हुयी, तो उसका अंतिम संस्कार उस समुदाय में अब तक का सबसे बड़ा अंतिम संस्कार था, भले ही उसका कोई परिवार नहीं था l उसकी प्रार्थनाएं फलीभूत हुयी और उसकी कल्पना से भी परे फल प्राप्त हुआ l 

इस विनम्र व्यक्ति ने प्रेरित पौलुस के उदाहरण का अनुसरण किया, जो उन लोगों से प्यार करता था जिनकी वह सेवा करता था और कैद में रहते हुए उनके लिए प्रार्थना करता था l जब वह संभवतः रोम में कैद था तब उसने इफिसुस के लोगों को लिखा, प्रार्थना करते हुए कि परमेश्वर उन्हें “ज्ञान और प्रकाश की आत्मा दे, और [उनके] मन की आँखें ज्योतिर्मय हो [जाएँ]” (इफिसियों 1:17-18) l उसकी इच्छा थी कि वे यीशु को जाने और आत्मा की शक्ति के द्वारा प्रेम और एकता के साथ रहें l 

जोर्न और प्रेरित पौलुस ने खुद को ईश्वर के सामने समर्पित कर दिया l क्या हम आज उनके उदाहरणों पर विचार कर सकते हैं कि हम किस प्रकार दूसरों से प्रेम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं l