माह: जून 2024

मसीह द्वरा साफ़ किया गया

मेरा पहला थोड़े समय का मिशन, यात्रा ओडिशा के जंगल में नदी के किनारे एक चर्च बनाने में सहायता करने के लिए थी l एक दोपहर, हम उस क्षेत्र के कुछ घरों में से एक में गए जहाँ पानी का फ़िल्टर था l जब हमारे मेजबान ने कुंए का गन्दा पानी फ़िल्टर के ऊपर डाला, तो कुछ ही मिनटों में सारी गन्दगी दूर हो गयी और साफ़. स्वच्छ पीने का पानी दिखाई देने लगा l वहीँ उस आदमी के बैठक कक्ष(living-room) में, मैंने इस बात का आभास हुआ कि मसीह द्वारा  शुद्ध किये जाने का क्या अर्थ है l 

जब हम पहली बार अपने दोष और शर्म के साथ यीशु के पास आते हैं और उससे हमें क्षमा  करने के लिए कहते हैं और हम उन्हें अपने उद्धारकर्ता के रूप में मान लेते हैं, तो वह हमारे पापों से शुद्ध करता है और हमें नया बनाता है l हम ठीक वैसे ही शुद्ध हो जाते हैं जैसे गंदा पानी साफ़ फीने के पानी में बदल गया था l यह जानना कितनी ख़ुशी की बात है कि यीशु के बलिदान के कारण हम परमेश्वर के साथ सही स्थिति में हैं (2 कुरिन्थियों 5:21) और यह जानना कि परमेश्वर हमारे पापों को उतनी ही दूर कर देता है जितना पूर्व पश्चिम से है (भजन 103:12) l

लेकिन प्रेरित यूहन्ना हमें याद दिलाता है कि इसका अर्थ यह नहीं है कि हम फिर कभी पाप नहीं करेंगे l जब हम पाप करते हैं तो हम पानी के फ़िल्टर की छवि से सुनिश्चित हो सकते हैं और यह जानकर सांत्वना पा सकते हैं कि “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9) l

आइये यह जानकार आत्मविश्वास से जीएं कि हम लगातार मसीह द्वारा शुद्ध किए जा रहे हैं l 

 

उदारतापूर्वक दिया गया एवं साझा किया गया

जब मेरी पत्नी और मैंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की, हम पर बहुत अधिक कर्ज था जिसे हमें कम ब्याज दर के साथ देना ज़रूरी था l हमने स्थानीय बैंक में ऋण के लिए आवेदन किया था लेकिन हमें अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि हम लम्बे समय से उस शहर में नहीं रहे थे या काम नहीं किये थे l कुछ दिनों बाद, जो कुछ मेरे साथ हुआ था मैंने अपने मित्र के साथ साझा  किया जो हमारे चर्च में एक वृद्ध व्यक्ति था l “मैं यह बात अपनी पत्नी से कहना चाहूँगा,” उसने कहा l 

कुछ घंटो बाद फोन की घंटी बजी l यह मेरा मित्र था : “मेरी पत्नी और मैं आपको व्याज मुक्त, आपकी ज़रूरत का पैसा उधार देना चाहेंगे,” उन्होंने प्रस्ताव रखा l मुझे नहीं पता था कि क्या  कहूँ, इसलिए मैंने ने उत्तर दिया, “मैं आपसे यह नहीं मांग सकता l” ”आप नहीं मांग रहे हैं!” मेरे मित्र ने ख़ुशी से उत्तर दिया l उन्होंने सहजता से हमें ऋण दिया, और मैंने और मेरी पत्नी ने जितनी जल्दी हो सकता था उसे वापस कर दिया l 

मेरा मानना है कि ये मित्र परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के कारण उदार थे l जैसा कि पवित्रशास्त्र हमें बताता है, “जो पुरुष अनुग्रह करता और उधार देता है, उसका कल्याण होता है, वह न्याय में अपने मुकदमे को जीतेगा” (भजन 112:5) l जो लोग परमेश्वर पर भरोसा करते हैं उनके पास “भरोसा रखने वाला” और “संभला हुआ” हृदय होता है (पद.7-8), यह समझते हुए कि वह उनके जीवन में हर अच्छी चीज़ का श्रोत है l 

परमेश्वर हमारे प्रति उदार रहा है, उसने हमें जीवन और क्षमा दी है l आइये ज़रूरतमंद लोगों के साथ उनके प्यार और हमारे संसाधनों को ससझा करने में उदार बने l 

 

छेददार से पवित्रता तक

बचपन में मेरी बेटी को पनीर के टुकड़ों से खेलना बहुत पसंद था l वह हलके पीले चौकोर टुकड़े को मास्क की तरह अपने चेहरे पर रख कर कहती थी, “देखो माँ,” उसकी चमकदार आँखें पनीर में दो छेदों से बाहर झाँकती थीं l एक युवा माँ के रूप में, उस पनीर मास्क ने मेरे प्रयासों के बारे में मेरी भावनाओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया—सचमुच में प्रस्तुत किया, प्यार से पूर्ण, लेकिन बहुत अपूर्ण l छेददार, पवित्र नहीं l 

ओह, हम एक पवित्र जीवन जीने के लिए कितने लालायित रहते हैं—एक ऐसा जीवन जो ईश्वर के लिए अलग किया गया और जो यीशु के समान होने की विशेषता रखता है l लेकिन दिन-ब-दिन पवित्रता पहुँच से बाहर महसूस हो रही है l इसके स्थान पर हमारा “छेददार स्वरूप” बरक़रार है l 

2 तीमुथियुस 1:6-7 में, पौलुस अपने शिष्य तीमुथियुस को लिखते हुए, उससे अपने पवित्र बुलाहट के अनुसार जीने का निवेदन करता है l प्रेरित ने तब स्पष्ट किया कि “[परमेश्वर] ने हमें बचाया है और हमें पवित्र जीवन के लिए बुलाया है—हमारे द्वारा किए गए किसी कार्य के कारण नहीं, बल्कि अपने स्वयं के उद्देश्य और अनुग्रह के कारण”(पद.9) l क्या हम परमेश्वर की अनुग्रह को स्वीकार कर सकते हैं और उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सामर्थ्य के मंच से जी सकते हैं?

चाहे पालन-पोषण हो, विवाह हो, काम हो, या अपने पड़ोसी से प्यार करना हो, परमेश्वर हमें एक पवित्र जीवन के लिए बुलाता है—यह हमारे सिद्ध होने के प्रयासों के कारण नहीं बल्कि उसके अनुग्रह के कारण संभव हुआ है l