एक मित्र ने अपने विवाह की प्रतिज्ञा का उल्लंघन किया था l उसे अपने परिवार को नष्ट करते हुए देखना दर्दनाक था l जैसे ही उसने अपने पत्नी के साथ सुलह का प्रयास किया, उसने मुझसे सलाह मांगी l मैंने उससे कहा कि उसे शब्दों से अधिक कुछ देने की आवश्यकता है; उसे अपनी पत्नी से प्रेम करने और पाप के किसी भी नमूना को दूर करने में सक्रीय होने की ज़रूरत थी l 

नबी यिर्मयाह ने उन लोगों को भी ऐसी ही सलाह दी थी जिन्होंने परमेश्वर के साथ अपनी वाचा को तोड़ दिया था और अन्य देवताओं का अनुसरण किया था l उसके पास लौटना पर्याप्त नहीं था (यिर्मयाह 4:1), हलांकि वह सही आरम्भ था l उन्हें अपने कार्यों को वे जो कह रहे थे उसके अनुरूप बनाने की  ज़रूरत थी l इसका अर्थ था अपनी “घिनौनी वस्तुओं” से छुटकारा पाना (पद.1) l यिर्मयाह ने कहा कि यदि उन्होंने “सच्चाई और न्याय और धर्म से” प्रतिबद्धताएं निभायीं, तो परमेश्वर राष्ट्रों को आशीष देगा(पद.2) l समस्या यह थी कि लोग खोखले वादे कर रहे थे l उनका हृदय इसमें नहीं था l 

परमेश्वर केवल शब्द नहीं चाहता; वह हमारा दिल चाहता है l जैसा कि यीशु ने कहा, “जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है” (मत्ती 12:34) l यही कारण है कि यिर्मयाह उन लोगों को प्रोत्साहित करता है जो अपने हृदय की बंजर भूमि को तोड़ने और काँटों के बीच बीज न बोने की बात नहीं सुनते थे (यिर्मयाह 4:3) l 

अफ़सोस की बात है कि बहुत से लोगों की तरह, मेरे मित्र ने बाइबल की उचित सलाह पर ध्यान नहीं दिया और परिणामस्वरूप उसका विवाह टूट गया l जब हम पाप करते हैं, तो हमें उसे स्वीकार करना चाहिए और उससे विमुख होना चाहिए l परमेश्वर खोखले वादे नहीं चाहता; वह ऐसा जीवन चाहता है जो वास्तव में उसके अनुरूप हो l