जब मुझसे पुछा गया कि क्या मैं कार्यस्थल पर एक नया उत्तरदायित्व स्वीकार करूंगी, तो मैं नहीं कहना चाहती थी l मैंने चुनौतियों के बारे में सोचा और उन्हें संभालने में अपर्याप्त महसूस किया l लेकिन जब मैंने प्रार्थना की ओर बाइबल और अन्य विश्वासियों से मार्गदर्शन माँगा, तो मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर मुझे हाँ कहने के लिए बुला रहा था l पवित्रशास्त्र के द्वारा, मुझे भी उसकी सहायता का आश्वासन मिला l इसलिए, मैंने कार्य स्वीकार कर लिया, लेकिन फिर भी कुछ डर के साथ l
मैं स्वयं को इस्राएलियों और उन दस जासूसों में देखती हूँ जो कनान पर कब्ज़ा करने से पीछे हट गए थे(गिनती 13:27-29, 31-33; 14:1-4) l उन्होंने भी कठिनाइयों को देखा, और सोच रहे थे कि वे देश के शक्तिशाली लोगों को कैसे हरा सकते हैं और उनके गढ़वाले शहरों को अपने अधीन कर सकते हैं l जासूसों ने कहा(13:33), “हम . . . उनके सामने टिड्डे के समान दिखायी पड़ते थे,” और इस्राएलियों ने कुड़कुड़ाया, “यहोवा हम को उस देश में ले जाकर क्यों तलवार से मरवाना चाहता है?”(14:3) l
कालेब और यहोशू को याद था कि परमेश्वर ने पहले ही प्रतिज्ञा की थी कि वह कनान को अपने लोगों को देगा(उत्पत्ति 17:8; गिनती 13:2) l उन्होंने परमेश्वर की उपस्थिति और प्रकाश में आगे आने वाली कठिनाइयों को देखकर, उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा जताया l वे उसकी सामर्थ्य, सुरक्षा और संसाधनों से कठिनाइयों का सामना करने वाले थे, न कि अपनी शक्ति से(गिनती 14:6-9) l
परमेश्वर ने मुझे जो काम दिया वह आसान नहीं था—लेकिन उसने इसमें मेरी सहायता की l हालाँकि हम हमेशा उसके कार्यों में कठिनाइयों से नहीं बचेंगे, हम—कालेब और यहोशू की तरह—यह जानते हुए उनका सामना कर सकते हैं, “यहोवा हमारे संग है”(पद.9) l
आपने कब उस कार्य को करने में अपर्याप्त महसूस किया है जिसे आप जानते थे कि परमेश्वर आपसे करने के लिए कह रहा है? कालेब और यहोशू के उदाहरण कैसे मदद करते हैं?
प्रिय परमेश्वर, कृपया मुझे पूरे हृदय से आपका अनुसरण करने में सहायता करें l