पूर्वोत्तर भारत का मिजोरम राज्य धीरे-धीरे गरीबी से बाहर निकल रहा है l उनकी आय की कमी के बाद भी, जब से सुसमाचार पहली बार इस क्षेत्र में आया, यीशु में विश्वासियों ने “मुट्ठी भर चावल” नामक एक स्थानीय परंपरा का पालन किया है l जो लोग प्रतिदिन भोजन तैयार करते हैं वे मुट्ठी भर कच्चे चावल अलग रख देते हैं और चर्च को दे देते हैं l संसार के मानक के हिसाब से गरीब मिजोरम कलीसियाओं ने मिशनों को लाखों रूपये दिए हैं और संसार भर में मिशनरी भेजे हैं l उनके गृह राज्य में बहुत से लोग मसीह के पास आए हैं l 

2 कुरिन्थियों 8 में, पौलुस एक समान रूप से चुनौतीपूर्ण चर्च का वर्णन करता है l मैसीडोनिया में विश्वासी गरीब थे, लेकिन इसने उन्हें ख़ुशी और बहुतायत से देने से नहीं रोका(पद.1-2) l उन्होंने अपने दान को एक विशेषाधिकार के रूप में देखा और पौलुस के साथ साझेदारी करने के लिए “सामर्थ्य से भी बाहर, मन से दिया”(पद.3) l वे समझ गए कि वे केवल परमेश्वर के संसाधनों के प्रबंधक थे l देना उस पर अपना भरोसा दिखाने का एक तरीका था, जो हमारी सभी ज़रूरतों को पूरा करता है l 

पौलुस ने कुरिन्थियों को देने के लिए समान दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मैसेडोनिया के लोगों का उपयोग किया l कुरिन्थियों ने “हर बात में अर्थात् विश्वास , वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में बढ़ते गए l” अब उन्हें “दान के काम में भी बढ़ते जाना था ”(पद.7) l 

मैसीडोनिया और मिजोरम के विश्वासियों की तरह, हम भी हमारे पास जो कुछ भी है उसमें से उदारतापूर्वक देकर अपने पिता की उदारता को प्रतिबिंबित कर सकते हैं l