एक बेकरी सहायक, माईला ने, स्वयं को बचाने में बहुत असहाय महसूस किया जब उसके निरीक्षक ने उस पर कुछ किशमिश की रोटी चुराने का आरोप लगाया l निराधार दावा और सम्बंधित वेतन कटौती उसके निरीक्षक के कई गलत कार्यों में से केवल दो थे l “परमेश्वर, कृपया मदद करें, “माईला ने हर दिन प्रार्थना की l “उसके अधीन काम करना बहुत कठिन है, लेकिन मुझे इस नौकरी की ज़रूरत है l”

यीशु एक विधवा के बारे में बताता है जिसने खुद को असहाय महसूस किया और “अपने मुद्दई के खिलाफ न्याय माँगा”(लूका 18:3) l वह अपने मामले को सुलझाने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति के पास गयी जिसके पास अधिकार था—एक न्यायधीश के पास l यह जानने के बावजूद कि न्यायधीश अन्यायी था, वह उसके पास जाती रही l 

न्यायाधीश की अंतिम प्रतिक्रिया(पद.4-5) हमारे स्वर्गिक पिता की प्रतिक्रिया से बिलकुल भिन्न है, जो प्रेम और सहायता के साथ तुरंत प्रतिक्रिया देता है(पद.7) l यदि दृढ़ता के कारण एक अन्यायी न्यायाधीश विधवा का मामला हल कर सकता है, तो परमेश्वर न्यायी न्यायाधीश है, हमारे लिए कितना कुछ कर सकता है और करेगा(पद.7-8)? हम “उसके चुने हुओं का न्याय” चुकाने के लिए(पद.7) उस पर भरोसा कर सकते हैं और प्रार्थना में लगातार बने रहना हमारे विश्वास को दिखाने का एक तरीका है l हम कायम हैं क्योंकि हमें विश्वास है कि परमेश्वर हमारी स्थिति पर पूर्ण बुद्धिमत्ता से प्रतिक्रिया देगा l 

अंततः, अन्य कर्मचारियों द्वारा उसके व्यवहार के बारे में शिकायत करने के बाद माईला के निरीक्षक ने इस्तीफा दे दिया l जब हम परमेश्वर की आज्ञाकारिता में चलते हैं, आइए प्रार्थना करते रहें, यह जानते हुए कि हमारी प्रार्थनाओं की सामर्थ्य उसमें निहित है जो सुनता है और हमारी मदद करता है l