Month: दिसम्बर 2024

परमेश्वर का हाथ

1939 में, हाल ही के ब्रिटेन के लिए युद्ध छिड़ने के साथ, किंग जॉर्ज VI ने अपने क्रिसमस दिवस रेडियो प्रसारण में यूनाइटेड किंगडम और राष्ट्रमण्डल के नागरिकों को परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहा l एक कविता का हवाला देते हुए जो उनकी माँ को अनमोल लगी, उन्होंने कहा : “अँधेरे में बाहर जाओ, और अपना हाथ परमेश्वर के हाथ में रखो l / वही तुम्हारे लिए उजियाले से उत्तम, और ज्ञात मार्ग से अधिक सुरक्षित होगा l” वह नहीं जानता था कि नया साल क्या लेकर आएगा, लेकिन उसने आने वाले चिंताजनक दिनों में उन्हें “मार्गदर्शन और समर्थन” देने के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया l 

परमेश्वर के हाथ की छवि बाइबल में कई स्थानों पर दिखायी देती है, जिसमें यशायाह की पुस्तक भी शामिल है l इस भविष्यद्वक्ता के द्वारा, परमेश्वर ने अपने लोगों को यह विश्वास करने के लिए बुलाया कि वह उनका सृष्टिकर्ता है, “आदि और . . . अंत”(यशायाह 48:12), उनके साथ शामिल रहेगा l जैसा कि वह कहता है, “मेरे ही हाथ ने पृथ्वी की नींव डाली, और मेरे ही दाहिने हाथ ने आकाश फैलाया”(पद.13) l उन्हें उस पर भरोसा करना चाहिए और कम शक्तिशाली लोगों की ओर नहीं देखना चाहिए l आखिरकार, वह उनका “छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है”(पद.17) l 

नये वर्ष की ओर देखते हुए हमें चाहे जिसका भी सामना करना पड़े, हम किंग जॉर्ज और भविष्यद्वक्ता यशायाह के प्रोत्साहन का अनुसरण कर सकते हैं और परमेश्वर पर अपनी आशा और भरोसा रख सकते हैं l तब, हमारे लिए भी, हमारी शांति नदी की तरह होगी, हमारा ‘धर्म(खुशहाली) समुद्र की लहरों के समान” होगा(पद.18) l 

परमेश्वर, मैं ही क्यों?

जिम एक साल से अधिक समय से मोटर न्यूरॉन(motor neuron/प्रेरक तंत्रिकोशिका) बीमारी से जूझ रहा है l उसकी मांसपेशियों में न्यूरॉन्स(neurons) टूट रहे हैं, और उसकी मांसपेशियां बेकार हो रही हैं l उसने अपना बढ़िया मोटर कौशल(motor skills-काम करने की क्षमता) खो दिया है और अपने अंगों को नियंत्रित करने की क्षमता खो रहा है l वह अब अपनी शर्ट के बटन नहीं लगा सकता या जूते के फीते नहीं बाँध सकता, और चॉपस्टिक्स(chopsticks) का उपयोग करना असंभव हो गया है l जिम अपनी स्थिति से जुझता है और पूछता है, परमेश्वर ऐसा क्यों होने दे रहा है? मैं ही क्यों? 

वह यीशु में कई अन्य विश्वासियों के साथ अच्छी संगति में है, जिन्होंने अपने प्रश्न परमेश्वर के पास लाए हैं l भजन 13 में, दाऊद चिल्लाकर कहता है, “हे परमेश्वर, कब तक ! क्या तू सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रहेगा? मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ, और दिन भर अपने हृदय में दुखित रहा करूँ?(पद.1-2) l 

हम भी अपनी उलझन और सवाल परमेश्वर के पास ले जा सकते हैं l जब हम चिल्लाते हैं “कब तक?” और क्यों?” तो वह समझता है l हमें उसका अंतिम उत्तर यीशु में और पाप तथा मृत्यु पर उसकी विजय में दिया गया है l 

जैसे ही हम क्रूस और खाली कब्र को देखते हैं, हमें परमेश्वर की “करुणा(unfailing love)” पर भरोसा करने और उसके उद्धार में ख़ुशी मनाने का विश्वास मिलता है l यहाँ तक कि सबसे अँधेरी रातों में भी, हम “परमेश्वर के नाम का भजन [गा सकते हैं], क्योंकि उसने [हमारे लिए] भलाई की है”(पद.6) l मसीह में हमारे विश्वास के द्वारा, उसने हमारे पापों को माफ़ कर दिया है, हमें अपने बच्चों के रूप में अपनाया है, और हमारे जीवन में अपने शाश्वत अच्छे उद्देश्य को पूरा कर रहा है l 

टिकाऊ निर्माण करना

जब मैं ओहायो में एक छोटा लड़का था, हम कई निर्माण स्थलों के पास रहते थे l उनसे प्रेरित होकर, मैंने और मेरे मित्रों ने एक किला बनाने के लिए बचे हुए स्क्रैप/रद्दी चीजों को इकठ्ठा किया l अपने माता-पिता से उपकरण मांग कर, हमने लकड़ी ढोए और अपनी सामग्री को हमारे उद्देश्यों के लिए उपयुक्त बनाने के प्रयास में कई दिन बिताए l यह मजेदार था, लेकिन हमारे प्रयास हमारे आस-पास की अच्छी तरह से निर्मित इमारतों का खराब प्रतिबिम्ब थे l वे लम्बे समय तक नहीं टिके l 

उत्पत्ति 11 में, हमारा सामना एक प्रमुख भवन निर्माण परियोजना से होता है l “आओ, हम एक नगर . . . बना लें,” लोगों ने कहा, “एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे”(पद.4) l इस प्रयास के साथ एक बड़ी समस्या यह थी कि लोगों ने इसे “अपना नाम [करने]” के लिए किया था(पद.4 l  

यह मनुष्यों के लिए बार-बार का मुद्दा रहा है; हम अपने और अपनी उपलब्द्धियों के स्मारक बनाते हैं l बाद में बाइबल की कथा में, इस कहानी की तुलना परमेश्वर के मंदिर के निर्माण के लिए सुलैमान की प्रेरणा से की गयी है : “मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने की ठान रखी है”(1 राजा 5:5) l 

सुलैमान ने समझा कि उसने जो कुछ भी बनाया है उसे परमेश्वर की ओर इशारा करना है न कि स्वयं की ओर l यह इतना महत्वपूर्ण सबक था कि उसने इसके बारे में एक भजन भी लिखा l भजन 127 की शुरुआत “यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा”(पद.1) l मेरे बचपन के किले-निर्माण की तरह, हम जो बनाते हैं वह टिकेगा नहीं, लेकिन परमेश्वर का नाम और हम उसके लिए जो करते हैं उसका स्थायी महत्व है l 

विश्वास में एक कदम

जब जॉन की नौकरी छूट गयी तो वह टूट गया l अपनी आजीविका/career) के आरम्भ की तुलना में अंत के करीब, उसे पता चला कि किसी नयी जगह से आरम्भ करना कठिन होगा l वह सही नौकरी के लिए प्रार्थना करने लगा l फिर जॉन ने अपना बायोडाटा अपडेट किया, साक्षात्कार युक्तियाँ/सलाहें पढ़ीं और बहुत सारे फोन कॉल किये l कई हफ़्तों तक आवेदन करने के बाद, उसने शानदार शेड्यूल/समय-सारणी और आसान आवागमन के साथ एक नया पद स्वीकार कर लिया l उसकी विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता और परमेश्वर का प्रावधान एक आदर्श चौराहे पर मिले थे l 

इसका एक अधिक नाटकीय उदाहरण मिस्र में इस्राएल की दासता के समय योकेबेद(निर्गमन 6:20) और उसके परिवार के साथ हुआ l जब फिरौन ने आदेश दिया कि सभी नवजात इब्री पुत्र नील नदी में डाल दिये जाएँ(1:22), तो योकेबेद भयभीत हो गयी होगी l वह क़ानून नहीं बदल सकती थी, लेकिन परमेश्वर की आज्ञा मानने और अपने बेटे को बचाने की कोशिश करने के लिए वह कुछ कदम उठा सकती थी l विश्वास में उसने उसे मिस्रियों से छुपाया l उसने एक छोटी, जलरोधी पपाएरस(papyrus-एक प्रकार का सरकंडा) की टोकरी बनायी और “उसमें बालक को रखकर नील नदी के किनारे कांसों के बीच छोड़ आई”(2:3) l परमेश्वर ने उसके जीवन को आश्चर्यजनक ढंग से संरक्षित करने के लिए कदम उठाया(पद.5-10) और बाद में उसका उपयोग पूरे इस्राएल को दासत्व से छुटकारा दिलाने के लिए किया(3:10) l 

जॉन और योकेबेद ने बहुत अलग कदम उठाए, लेकिन दोनों कहानियाँ विश्वास से भरी क्रियाओं द्वारा चिन्हित हैं l भय हमें पंगु बना सकता है l भले ही परिणाम वह न हो जिसकी हमें उम्मीद थी या आशा थी, विश्वास हमें परिणाम की परवाह किये बिना परमेश्वर की अच्छाई पर भरोसा रखने की सामर्थ्य देता है l