जैसे ही मैं अपनी सहेली मार्गरेट के पास बैठी, जो अस्पताल में अपने बिस्तर पर लेती हुयी थी, मैंने अन्य रोगियों, चिकित्सा कर्मचारियों और आगंतुकों की हलचल और गतिविधि का ध्यान रखी l पास ही अपनी बीमार माँ के साथ बैठी एक युवती ने मार्गरेट से पुछा, “वे सभी लोग कौन हैं जो आपसे मिलने आते रहते हैं?” उसने उत्तर दिया, “वे मेरे चर्च परिवार के सदस्य हैं!” युवती ने टिप्पणी की कि उसने ऐसा कभी नहीं देखा; उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई आगंतुक “वास्तिक प्यार की तरह उमड़ पड़े हों l” मार्गरेट ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “यह सब परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम पर निर्भर करता है!”

अपनी प्रतिक्रया में, मार्गरेट ने शिष्य यूहन्ना की बात दोहराई, जिसने अपने अंतिम वर्षों में प्रेम से भरे तीन पत्र लिखे थे l अपने पहले पत्र में उसने कहा, “परमेश्वर प्रेम है, और जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्वर में बना रहता है, और परमेश्वर उसमें बना रहता है”(1 यूहन्ना 4:16) l अर्थात्, जो लोग स्वीकार करते हैं कि “यीशु परमेश्वर का पुत्र है”(पद.15) उनमें परमेश्वर “अपनी आत्मा” के द्वारा वास करता है(पद.13 l हम प्रेमपूर्वक दूसरों की देखभाल कैसे कर सकते हैं? “हम इसलिए प्रेम करते हैं, कि पहले उसने हम से प्रेम किया”(पद.19) l 

परमेश्वर के प्रेम के उपहार के कारण, मार्गरेट से मिलना मेरे लिए या हमारे चर्च के अन्य लोगों के लिए किसी कठिनाई जैसा महसूस नहीं हुआ l मैंने जितना दिया उससे कहीं अधिक पाया, न केवल मार्गरेट से, बल्कि उसके उद्धारकर्ता, यीशु के बारे में उसकी सौम्य गवाही को देखकर l आज परमेश्वर आपके द्वारा दूसरों से कैसे प्रेम कर सकता है?