मुझे एक अनजान नंबर से फोन आया। अक्सर,  मैं उन कॉल्स को वायसमेलपर (voicemail – इलेक्‍ट्रॉनिक प्रणाली जिसकी सहायता से संदेशों को बाद में सुना जा सकता है) जाने देता था,  लेकिन इस बार मैंने फोन उठाया। अनजान फोन करने वाले ने विनम्रता से पूछा कि क्या मेरे पास उनके द्वारा बाइबल का एक छोटा अंश साझा करने के लिए सिर्फ एक मिनट का समय है। उसने प्रकाशितवाक्य 21:3-5 को उद्धृत किया कि कैसे परमेश्वर “उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा ।“ उसने यीशु के बारे में बात की,  कैसे वह हमारा आश्वासन और आशा है। मैंने उससे कहा कि मैं पहले से ही यीशु को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में जानता हूं। लेकिन फोन करने वाले का लक्ष्य मुझे “साक्षी” देना नहीं था। इसके बजाय, उसने बस पूछा कि क्या वह मेरे साथ प्रार्थना कर सकता है। और उसने परमेश्वर से मुझे प्रोत्साहन और शक्ति देने के लिए प्रार्थना करी।

   उस कॉल ने मुझे पवित्रशास्त्र में एक और “पुकार (कॉल)” की याद दिला दी—परमेश्वर ने युवा लड़के शमूएल को आधी रात में बुलाया (1 शमूएल 3:4-10)। शमूएल ने तीन बार आवाज सुनी, यह सोचकर कि यह बुजुर्ग याजक एली है। अंतिम बार, एली के निर्देश का पालन करते हुए, शमूएल ने महसूस किया कि परमेश्वर उसे बुला रहा था : “कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है” (पद.10) l उसी तरह,  हमारे दिनों और रातों में, परमेश्वर हमसे भी बात कर रहा हो। हमें परमेश्वर की “पुकार सुनने” की जरूरत है ,  जिसका अर्थ उसकी उपस्थिति में अधिक समय व्यतीत करना और उसकी आवाज़ सुनना हो सकता है ।

मैंने फिर “कॉल (पुकार) ” के बारे में दूसरे तरीके से सोचा। क्या होगा यदि हम कभी-कभी किसी और के लिए परमेश्वर के वचनों के संदेशवाहक होते हैं?  हमें लग सकता है कि हमारे पास दूसरों की मदद करने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन जैसा कि परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करता है,  हम एक मित्र को फोन कर सकते हैं और पूछ सकते हैं,  “क्या यह ठीक होगा यदि मैं आज आपके साथ प्रार्थना करूं?”