एक नक्काशीदार लकड़ी की आकृति—एक घरेलू देवता—एकुवा नाम की एक महिला से चुराई गई थी, इसलिए उसने अधिकारियों को इसकी सूचना दी। यह मानते हुए कि उन्हें मूर्ति मिल गई है, कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने उसे पहचानने के लिए आमंत्रित किया। “क्या यह तुम्हारा परमेश्वर है?” उन्होंने पूछा। उसने उदास होकर कहा, “नहीं, मेरा परमेश्वर इससे कहीं बड़ा और सुंदर है।” 
लोगों ने लंबे समय से देवता की अपनी अवधारणा को आकार देने की कोशिश की है, इस उम्मीद में कि एक हाथ से बनाया गया देवता उनकी रक्षा करेगा। शायद इसीलिए याकूब की पत्नी राहेल ने लाबान से भागते समय “अपने पिता के घर के देवताओं को चुरा लिया” (उत्पत्ति 31:19)। परन्तु याकूब के डेरे में मूरतें छिपी होने के बावजूद परमेश्वर का हाथ उसके ऊपर था (पद 34)।  
बाद में, उसी यात्रा में, याकूब पूरी रात “एक पुरुष” के साथ मल्लयुद्ध करता रहा (32:24)। वह समझ गया होगा कि यह विरोधी एक मनुष्य नहीं था, क्योंकि भोर में याकूब ने जोर देकर कहा, “जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा” (पद. 26)। उस व्यक्ति ने उसका नाम बदलकर इस्राएल (“परमेश्वर युद्ध करता है”) रखा और फिर उसे आशीष दी (पद. 28-29) । तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल (“परमेश्‍वर का मुख”) रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है (पद. 30)। यह परमेश्वर—एक सच्चा परमेश्वर—इकुवा की किसी भी कल्पना से कहीं अधिक बड़ा और अधिक सुंदर है। उसे गढ़ा, चुराया या छिपाया नहीं जा सकता। फिर भी, जैसे याकूब ने उस रात सीखा, हम उसके पास जा सकते हैं! यीशु ने अपने शिष्यों को इस परमेश्वर को “स्वर्ग में हमारा पिता” कहना सिखाया (मत्ती 6:9)।