“क्या आराधना सभा ख़त्म हो गई  है?” जैसे ही रविवारीय सभा समाप्त हो रही थी, एक युवा माँ ने दो बच्चों के साथ हमारे चर्च में आते समय कहा l एक स्वागतकर्ता ने उसे बताया कि निकट के एक चर्च में दो रविवारीय आराधना होती है और दूसरी जल्द ही शुरू होनेवाली है l क्या वह वहां जाना चाहेगी? वह युवा माँ ने हाँ कहा और कुछ दूरी पर उस चर्च में जाने के लिए आभारी थी l बाद में विचार करते हुए, स्वागतकर्ता इस परिणाम पर पहुंचा : “क्या आराधना सभा (चर्च) ख़त्म हो गया है? कभी नहीं l परमेश्वर की आराधना सभा सर्वदा चलती रहती है l”    
चर्च एक “नाजुक” इमारत नहीं है l पौलुस लिखता है, “इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिस के कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो। जिस में सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है। जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवासस्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो।”   (इफिसियों 2:19-22) l  
यीशु ने स्वयं ही अपनी कलीसिया को अनंतकाल के लिए स्थापित किया l उसने घोषणा की कि चुनौतियों या मुसीबतों के बावजूद जिसका सामना कलीसिया करती है, “अधोलोक की फाटक उस पर प्रबल न होंगे” (मत्ती 16:18) l इस सशक्त लेंस के माध्यम से, हम अपने स्थानीय चर्चों को – हम सभी को – परमेश्वर की विश्वव्यापी कलीसिया के एक हिस्से के रूप में देख सकते हैं, जो “मसीह यीशु में सभी पीढ़ियों में, हमेशा और हमेशा के लिए” बनाया जा रहा है!  (इफिसियों 3:21) l  
—पेट्रीशिया रेबॉन