कार्यालय भवन की सीढ़ियों पर मुझे चक्कर आ गया। मैंने रेलिंग को पकड़ लिया क्योंकि सीढ़ियाँ घूमती हुई लग रही थीं। जैसे ही मेरा दिल धड़कने लगा और मेरे पैर लड़खड़ा गए,  मैं रेलिंग से चिपक गया, इसकी ताकत के लिए आभारी था। मेडिकल टेस्ट से पता चला कि मुझे एनीमिया (खून की कमी) है। हालाँकि इसका कारण गंभीर नहीं था और मेरी  स्थिति ठीक हो गई थी, मैं कभी नहीं भूलूँगा कि उस दिन मैं कितना कमज़ोर महसूस कर रहा था। 
 
इसीलिए मैं उस महिला की सराहना करता हूं जिसने यीशु को छूआ। वह न केवल अपनी कमजोर अवस्था में भीड़ के बीच से गुजरी, बल्कि उसने बाहर निकलकर उनके पास आने का साहस भी किया (मत्ती 9:20-22)। उसके पास डरने का अच्छा कारण था: यहूदी कानून ने उसे अशुद्ध के रूप में परिभाषित किया और दूसरों को उसकी अशुद्धता उजागर करने से उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते थे (लैव्यव्यवस्था 15:25−27)। लेकिन यह विचार यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, उसे प्रेरित करती रही। मत्ती 9:21 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “छू ” के रूप में किया गया है, वह केवल छूना नहीं है, बल्कि इससे गहरा अर्थ “पकड़ना” या “अपने आप को जोड़ना” है। स्त्री ने यीशु को कसकर पकड़ लिया। उसे विश्वास था कि वह उसे ठीक कर सकता है। 
 
यीशु ने भीड़ के बीच में एक महिला का हताश विश्वास को देखा। जब हम भी विश्वास में आगे बढ़कर अपनी ज़रूरतों में मसीह से लिपट जाते हैं, तो वह हमारा स्वागत करता है और हमारी सहायता के लिए आता है। हम उसे अस्वीकृति या सज़ा के डर के बिना अपनी कहानी बता सकते हैं। यीशु आज हमसे कहते हैं, “मुझसे लिपटे रहो।” 
 
—कैरेन हुआंग