मैंने अपना फ़ोन रख दिया, मैं उस छोटी सी स्क्रीन पर लगातार आने वाली छवियों, विचारों और सूचनाओं की बमबारी से थक गया था। फिर, मैंने उसे उठाया और फिर से चालू किया। क्यों? अपनी पुस्तक द शैलोज़ में, निकोलस कैर ने बताया है कि इंटरनेट ने शांति के साथ हमारे रिश्ते को कैसे आकार दिया है: “नेट जो कर रहा है वह मेरी एकाग्रता और चिंतन की क्षमता को कम कर रहा है। चाहे मैं ऑनलाइन हूँ या नहीं, मेरा दिमाग अब जानकारी को उसी तरह लेने की उम्मीद करता है जिस तरह से नेट इसे वितरित करता है: कणों की एक तेज़ गति से चलने वाली धारा में। एक बार मैं शब्दों के समुद्र में एक स्कूबा गोताखोर था। अब मैं जेट स्की पर सवार एक आदमी की तरह सतह पर तैरता हूँ।”

मानसिक जेट स्की पर जीवन जीना स्वस्थ नहीं लगता। लेकिन हम कैसे धीमा होना शुरू करें, शांत आत्मिक जल में गहराई से गोता लगाने के लिए ?

भजन संहिता 131 में, दाऊद लिखता हैं, “मैंने अपने मन को शान्त और चुप कर दिया है” (पद.2) l दाऊद के शब्द मुझे याद दिलाते हैं कि मेरे पास जिम्मेदारी है। आदत बदलने की शुरुआत मेरे शांत रहने के चुनाव से होता है—भले ही मुझे वह चुनाव बार-बार करना पड़े। हालाँकि, धीरे-धीरे, हम परमेश्वर के संतुष्टिदायक भलाई का अनुभव करते हैं। एक छोटे बच्चे की तरह, हम संतोष में आराम करते हैं, यह याद रखते हुए कि वह ही अकेले आशा प्रदान करता है (पद.3)—आत्मिक संतुष्टि जिसे कोई स्मार्टफोन ऐप नहीं छू सकता है और कोई सोशल मीडिया साइट प्रदान नहीं कर सकता।

—एडम आर. होल्ज़