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Articles by आदम अर होल्ज़

बुलडॉग और फव्वारा

ज्यादातर गर्मियों की सुबह में, हमारे घर के पीछे पार्क में एक दिलचस्प नाटक दिखाई देता है l इसमें एक फव्वारा शामिल है l और एक बुलडॉग l लगभग 6.30 बजे, फव्वारे चालू हो जाते हैं l उसके थोड़े समय बाद, बुलडॉग फिफि(हमारे परिवार द्वारा दिया गया नाम) वहां आ जाती है l

फिफि का मालिक उसका पट्टा खोल देता है l बुलडॉग अपनी पूरी ताकत से निकटतम फव्वारे की ओर दौड़ती है, पानी के धार पर आक्रमण करती है जब वह उसके चेहरे को भिगोता है l यदि फिफि उस फव्वारे को खा पाती, मेरी समझ से वह उसे खा लेती l यह उल्लास का निरा चित्र है उस द्रव्य द्वारा पूरी तौर से भीगने की फिफि की कदाचित अनंत इच्छा जिसे वह इच्छा भर नहीं प्राप्त कर सकती है l

बाइबल में बुलडॉग, या फव्वारे नहीं हैं l फिर भी, एक तरीके से, इफिसियों 3 में पौलुस की प्रार्थना मुझे फिफि की याद दिलाती है l वहां पर, पौलुस प्रार्थना करता है कि इफिसुस के विश्वासी परमेश्वर के प्रेम से भर जाएं और “सब पवित्र लोगों के साथ भली-बहती समझने की शक्ति [पाएं] कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊँचाई, और गहराई कितनी हैं, और मसीह के उस प्रेम को जान [सकें] जो ज्ञान से परे है l” उसकी प्रार्थना थी कि हम “परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण [हो जाएं]” (पद.18-19) l

आज भी, हम एक ऐसे परमेश्वर को अनुभव करने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं जिसका अनंत प्रेम हमारी सम्पूर्ण समझ से परे है, ताकि हम भी पूरी रीति से भीग जाएं, संतृप्त हो जाएं, और उसकी भलाई से बिलकुल संतुष्ट हो जाएं l हम बेफिक्री, उत्साह, और ख़ुशी से उसके साथ सम्बन्ध में गोता लगाने के लिए स्वतंत्र है केवल वही हमारे हृदयों और जीवनों को अपने प्रेम, अर्थ, और उद्देश्य से भर सकता है l

और दौड़ने/भागने की ज़रूरत नहीं

जुलाई 18, 1983 को, एक अमरीकी एयर फ़ोर्स कप्तान न्यू मेक्सिको के एबुकर्की से लापता हो गया, जिसका सुराग नहीं मिला l पैतीस वर्षों के बाद, वह अधिकारियों को कैलिफोर्निया में मिला l न्यूयॉर्क टाइम्स  अखबार बताता है कि, वह “अपने काम से निराश होकर,” यूँ ही भाग गया था l

परन्तु मुझे भी स्वीकार करना होगा, मैं भी कुछ-कुछ “बचने की स्थिति” के विषय जानता हूँ l नहीं, मैंने अचानक से शारीरिक रूप से कभी भी अपने जीवन में बचने की कोशिश नहीं की है l परन्तु कभी-कभी मुझे ज्ञात है कि कुछ है जो परमेश्वर चाहता है कि मैं करूँ, कुछ जिसका मैं सामना करूँ या अंगीकार करूँ l मैं उसे करना नहीं चाहता l और इसलिए, मैं भी  अपने तरीके से बचना चाहता हूँ l

योना नबी, वस्तुतः नीनवे नगर में परमेश्वर के प्रचार करने के निदेश से बचने के लिए बदनाम है (देखें योना 1:1-3) l परन्तु, वास्तव में, वह परमेश्वर से आगे नहीं निकल सकता था l शायद आपने सुना होगा कि क्या हुआ (पद.4,17) : एक आंधी l एक महामच्छ l निगला जाना l और उस प्राणी के पेट में, हिसाब-किताब, जिसमें योना ने अपने कार्यो का सामना किया और परमेश्वर से सहायता मांगी (2:2) l

योना एक सिद्ध नबी नहीं था l परन्तु में उसकी अद्भुत कहानी में आराम पाता हूँ, क्योंकि, योना के ढिठाई के बावजूद, परमेश्वर ने उसे अपने से दूर जाने नहीं दिया l प्रभु ने फिर भी उस मनुष्य की हताश प्रार्थना सुन ली, अपने अनिच्छुक सेवक को अनुग्रह से पुनर्स्थापित कर दिया (पद.2) – जैसा वह हमारे साथ करता हैं l

हमें जाननेवाला उद्धारकर्ता

मेरे बेटे ने पीछे की सीट से पूछा, “पापा, क्या समय है?” “अभी 5.30 बजा है” मैं जानता था वह आगे क्या कहेगा l “नहीं, अभी 5.28 बजा है!” मैंने उसके चेहरे पर चमक देखी l ठीक है! उसकी चमकती मुस्कराहट बोल पड़ी l मैं भी आनंदित हुआ – ऐसा आनंद जो एक माता-पिता को अपने बच्चे को जानने से मिलती है l

किसी सचेत माता-पिता की तरह, मैं अपने बच्चों को जानता हूँ l मुझे मालूम है कि मेरे उनको जगाने पर वे किस प्रकार उत्तर देंगे l मैं जानता हूँ उनको दोपहर के भोजन में क्या चाहिए l मैं उनके अनगणित रुचियों, इच्छाओं, और पसंद को जानता हूँ l

परन्तु उन सबके लिए, मैं उनको पूर्ण रूप से नहीं जान पाउँगा, अन्दर से बाहर, जिस तरह प्रभु हमें जानता है l

हम यूहन्ना 1 में घनिष्ट ज्ञान के प्रकार की झलक पाते हैं जो यीशु का अपने लोगों के लिए है l जैसे नतनएल, जिसे फिलिप्पुस ने यीशु से मुलाकात करने के लिए आग्रह किया था, यीशु की ओर गया l यीशु ने स्पष्ट किया, “देखो यह सचमुच इस्राएली है : इसमें कपट नहीं है” (पद.47) l आश्चर्यचकित होकर नतनएल ने उत्तर दिया, “ तू मुझे कैसे जानता है?” कुछ सहस्यमय तरीके से, यीशु ने उत्तर दिया कि उसने उसे अंजीर के पेड़ तले देखा था (पद.48) l

शायद हम नहीं जान पाएंगे क्यों यीशु ने इस ख़ास वर्णन को साझा किया, परन्तु ऐसा महसूस होता है नतनएल ने किया! अभिभूत होकर, उसने उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है” (पद.49) l

यीशु हम में से हर एक को इसी प्रकार जानता है : बहुत निकट से, पूर्ण रूप से, और सिद्धता से – जैसे हम चाहते है कि हम जाने जाएँ l और वे हमें सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करता है – केवल हमें अपने अनुगामियों के रूप में नहीं, परन्तु अपने अतिप्रिय मित्रों की तरह (यूहन्ना 15:15) l

आईना में वस्तुएँ

“ज़रूरी l आगे बढ़ें l और तेज़ गति से l” 1993 की फिल्म जुरासिक पार्क के पसंदीदा दृश्य में उपरोक्त शब्द जेफ़ गोल्डबल्म द्वारा अभिनीत, डॉ. आयान मैलकोम के हैं जब वे और दो अन्य चरित्र एक जीप में घातक दैत्यसरट(tyrannosaurus/ दो पावों वाला मांसाहारी डायनासोर) से भाग रहे होते हैं l जब चालाक पीछे की चीजों को देखनेवाले आईने में देखता है, उसे आईने पर लिखे शब्द, “आईने में दिखाई देनेवाली वास्तुएँ अपनी वास्तविक दूरी से निकट हो सकती हैं” के ठीक ऊपर - रेंगनेवाले प्रबल जंतु के जबड़े दिखाई देते हैं l

यह दृश्य उग्रता और भयानक परिहास का कुशल मिश्रण है l परन्तु कभी-कभी हमारे अतीत के “राक्षस” ऐसे महसूस होते हैं जैसे वे हमारा पीछा करना नहीं छोड़ेंगे l हम अपने जीवन के “आईने” में देखते हैं और हम उन गलतियों को हमें दोष या लज्जा से भस्म करने के लिए डराते हुए, उसी स्थान पर मंडराते देखते हैं l  

प्रेरित पौलुस अतीत की पंगु बनाने वाली संभव शक्ति को समझता था l उसने मसीह से अलग रहकर सम्पूर्ण/सिद्ध जीवन बिताने में वर्षों तक प्रयास किया, और मसीहियों को भी सताया (फिलिप्पियों 3:1-9) l अतीत पर पछतावा उसे सरलता से पंगु बना सकता था l

परन्तु पौलुस ने मसीह के साथ अपने सम्बन्ध में इतनी खूबसूरती और सामर्थ्य का अहसास किया कि वह अपने पुराने जीवन को छोड़ने पर विवश हुआ (पद.8-9) l इस बात ने उसे पछतावे के भय में पीछे देखने के स्थान पर विश्वास में आगे देखने के लिए स्वतंत्र किया : “परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ कि जो बातें पीछे रह गयी हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ” (पद.13-14) l

मसीह में हमारा छुटकारा हमें उसके साथ रहने के लिए स्वतंत्र कर दिया है l जब हम आगे बढ़ते हैं हम “(अपने) आईने में उन बातों को” हमारी दिशा निर्धारित करने न दें l

विरूपित मीनार

अनुभव से यह जाना गया है कि चर्च के झुकी हुयी मीनार लोगों को घबरा देती हैं l जब हम कुछ मित्रों से मिलें, उन्होंने हमारे साथ साझा किया कैसे, एक भयंकर आंधी के बाद, उनकी चर्च ईमारत की शानदार मीनार विरूपित हो गयी, और भय उत्पन्न कर दी l

अवश्य ही, चर्च ने शीघ्र ही उस गिरती हुए कमजोर मीनार…

नूतन हृदय चाहिए?

समाचार भयानक था l

मेरे पिता के सीने में दर्द हो रहा था, इसलिए डॉक्टर ने उनके हृदय की जांच-पड़ताल करने  के लिए जांच का आदेश दिया l परिणाम? तीन रक्तवाहनियों में अवरोध(blockages) l

फरवरी 14 के लिए तिहरा-बाईपास सर्जरी निर्धारित किया गया l यद्यपि मेरे पिता घबराए हुए थे, उन्होंने उस दिन को एक आशापूर्ण संकेत की तरह देखा l “वैलेंटाइन डे के लिए मुझे एक नया हृदय मिलनेवाला है!” और उन्हें मिला! सर्जरी बिलकुल सफल रही, और उनके पीड़ादायक हृदय में जीवन-दायक रक्त प्रवाह पुनःस्थापित हो गया-उनका “नया” हृदय l

मेरे पिता की सर्जरी ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर हमें भी नया जीवन देता है l इसलिए कि पाप हमारे आत्मिक “रक्तवाहनियों को अवरुद्ध कर देता है-परमेश्वर के साथ सम्बन्ध जोड़ने की हमारी योग्यता-हमें उनको साफ़ करने के लिए आत्मिक “सर्जरी” की ज़रूरत है l

यहेजकेल 36:26 में परमेश्वर अपने लोगों के लिए इसी की प्रतिज्ञा करता है l वह इस्राएलियों को आश्वास्त करता है, “मैं तुम को नया मन दूँगा. . . और तुम्हारी देह में से पत्धर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूँगा l” उसने यह भी प्रतिज्ञा किया, “मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता . . . से शुद्ध करूँगा” (पद.25) और “अपना आत्मा तुम्हारे भीतर [दूँगा](पद.27) l ऐसे लोगों को जो आशाहीन हो गए हे, परमेश्वर ने उनके जीवनों को पुनः नूतन बनाने वाले के रूप में उनको एक नयी शुरुआत की प्रतिज्ञा दी l

वह प्रतिज्ञा आखिरकार यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा पूरी हुयी l जब हम उसपर विश्वास करते हैं, हम एक नया आत्मिक हृदय पाते हैं, ऐसा हृदय जो हमारे पाप और निराशा से शुद्ध हो चुका है l मसीह की आत्मा से भरपूर, परमेश्वर की आत्मिक जीवनशक्ति के साथ हमारा नया हृदय धड़कता है, कि “उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें” (रोमियों 6:4 हिंदी C.L.) l

देरी की आशा रखें

क्या तुम मजाक(कर) रहे हो? मुझे पहले ही देर हो गई थी। परन्तु मेरे सामने रोड पर लगे दोनों संकेत मुझे मेरी आशाओं को कम करने का निर्देश दे रहे थे: ये बता रहे थे “देरी हो सकती है। यातायात धीमा हो रहा था।

मुझे हँसी आ गई। मैं चीज़ों को मेरी समय-सारणी के अनुसार होने की आशा करता हूँ; परन्तु मैं सड़क-निर्माण की ओर ध्यान नहीं देता।

आत्मिक स्तर पर हम में से कुछ लोग उन समस्याओं के लिए योजना बनाते हैं, जो हमारे जीवन की रफ़्तार को धीमा कर देती हैं या हमारे जीवन की दिशा को बदल देती हैं। फिर भी, यदि मैं इसके बारे में सोचता हूँ, तो मैं उन अनेक समयों को याद कर सकता हूँ जब परिस्थितियों ने-छोटे या बड़े रूप में-मेरी दिशा को बदल दिया। देरियाँ होती हैं।

सुलेमान ने आगे एक संकेत नहीं देखा “देरी हो सकती है।” परन्तु नीतिवचन 16 में वह परमेश्वर की उपलब्ध होने वाले मार्गदर्शन के साथ हमारी योजनाओं की तुलना करता है। पद 1 का सन्देश कुछ इस प्रकार से है: “मनुष्य बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाता है, परन्तु अन्तिम निर्णय परमेश्वर का ही होता है।” सुलेमान इसी विचार को पद 9 में फिर से बताता है, जिसमें वह यह भी सम्मिलित करता है कि यद्यपि हम “अपने जाने वाले मार्ग की योजनाएँ बनाते हैं...परमेश्वर हमारे कदमों को निर्धारित करता है।” अन्य शब्दों में, हमारे पास तो मात्र विचार होते हैं कि क्या हो सकता है, परन्तु कई बार परमेश्वर का हमारे लिए दूसरा मार्ग होता है।

मैं आत्मिक सत्य के इस मार्ग से कैसे भटक जाता हूँ? मैं योजनाएँ बनाता हूँ, और कईबार उनसे पूछना भूल जाता हूँ कि उनकी योजनाएँ क्या हैं? मैं परेशान हो जाता हूँ जब बीच में बाधाएँ आती हैं।

परन्तु चिन्ता करने के स्थान पर हम, जैसा सुलेमान सिखाता है, इस बात पर भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर कदम-दर-कदम हमारा मार्गदर्शन करता है, जब हम प्रार्थना के साथ उन्हें खोजते हैं, उनकी अगुवाई की प्रतीक्षा करते हैं और-हाँ-उन्हें लगातार हमारा मार्गदर्शन करने देते हैं।

आप किस ओर जा रहे हैं?

जीवन में हमारी दिशा कौन निर्धारित करता है? एकबार मैंने एक आश्चर्यजनक स्थान: मोटरसाईकिल प्रशिक्षण कोर्स, पर इस प्रश्न का उत्तर सुना। मेरे कुछ मित्र और मैं मोटरसाईकिल चलाना चाहते थे, इसलिए यह सीखने के लिए कि यह कैसे करते हैं हम ने एक क्लास ली। हमारे प्रशिक्षण के एक हिस्से को लक्ष्य निर्धारित करना कहते थे।  

“आखिरकार” हमारे निर्देशक ने कहा, “आप एक अनपेक्षित बाधा का सामना करोगे। यदि आप इसकी ओर देखते रहोगे-यदि तुम ने लक्ष्य निर्धारित किया है-तो तुम ठीक उसकी ओर जाओगे। परन्तु यदि आप ऊपर या इससे दूर देखोगे, जहाँ तुम्हें जाना है, तो तुम समान्यत: इससे बच सकते हो।” इसके बाद उसने कहा, “जिस दिशा की ओर आप देख रहे हो आप उसी ओर जाओगे।”

वह साधारण परन्तु प्रगाढ़ सिद्धांत हमारे आत्मिक जीवन पर भी लागू होता है। जब हम एक लक्ष्य को निर्धारित करते हैं-अपनी समस्याओं या संघर्षों पर केन्द्रित हो जाते हैं-तो हम अपने जीवनों को लगभग उन्हीं के चारों ओर घुमाते रहते हैं।

परन्तु पवित्रशास्त्र हमें अपनी कठिनाइयों से दूर उस व्यक्ति की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो उनमें हमारी सहायता कर सकता है। भजन संहिता 121:1 में हम पढ़ते हैं, “मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा, मुझे सहायता कहाँ से मिलेगी?” फिर भजन संहिता उत्तर देती है: “मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है...यहोवा आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा” (पद 2, 8)। 

कई बार हमारी बाधाएँ अजेय प्रतीत होती हैं। परन्तु परमेश्वर हमें हमारी कठिनाइयों को हमारे नजरिये पर अधिकार रखने के स्थान पर उनसे दूर देखने में हमारी सहायता करने के लिए आमन्त्रित करता है।

आशा हमारी रणनीति

मेरे यह लिखते समय मेरी पसंदीदा फुटबॉल टीम लगातार आठ मैच हार चुकी थी l हर एक हार के साथ, उनका इस मौसम में जीत पाने की आशा क्षीण होती दिखाई दे रही थी l कोच ने हर सप्ताह परिवर्तन किये किन्तु यह जीत में परिवर्तित नहीं हो सकी l अपने सहयोगियों के साथ बातचीत करते हुए मैंने मज़ाक किया कि केवल एक भिन्न परिणाम की आशा गारंटी नहीं है l “आशा एक रणनीति नहीं है,” मैंने ताना मारा l

यह फुटबॉल में सही है l लेकिन हमारे आत्मिक जीवनों में, यह बिलकुल विपरीत है l परमेश्वर में आशा उत्पन्न करना एक रणनीति ही नहीं है, किन्तु विश्वास और भरोसे में उससे लिपटे रहना ही एकमात्र रणनीति है l संसार अक्सर हमें निराश करता है, किन्तु परमेश्वर की सच्चाई में आशा हमारी लंगर और अशांत समय में सामर्थ्य है l

मीका ने इस सच्चाई को समझ लिया था l इस्राएल के परमेश्वर से मुह मोड़ लेने के कारण मीका का हृदय टूट चुका था l “हाय मुझ पर ! . . . भक्त लोग पृथ्वी पर से नष्ट हो गए हैं, और मनुष्यों में एक भी सीधा जन नहीं रहा” (7:1-2) l लेकिन उसी समय वह सच्ची आशा पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है : “परन्तु मैं यहोवा की ओर ताकता रहूँगा, मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर की बात जोहता रहूँगा; मेरा परमेश्वर मेरी सुनेगा” (पद.7) l

कठिन समय में आशा किस तरह स्थिर रखी जा सकती है? मीका हमें दिखाता है : बाट जोहकर l इंतज़ार करके l प्रार्थना करके l याद करके l अभिभूत करनेवाली हमारी परिस्थितियों में भी परमेश्वर सुनता है l इन क्षणों में, परमेश्वर में अपनी आशा में लिपटे रहना और उसके प्रतिउत्तर में काम करना ही हमारी रणनीति है, केवल एक रणनीति जो जीवन के तूफानों को शांत कर सकता है l