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Articles by आर्थर जैक्सन

उसके दाग़

गौरव के साथ मेरी बातचीत के बाद, मैं सोचने लगा कि क्यों उसका पसंदीदा अभिवादन “मुट्ठी टकराना” था और हाथ मिलाना नहीं l हाथ मिलाने से उसकी कलाई पर लगे दाग़ दिखाई देने लगेंगे – जो उसके खुद को नुक्सान पहुंचाने की कोशिशों का नतीजा है l हमारे लिए अपने घावों को छिपाना असामान्य नहीं है – बाहरी या भीतरी – दूसरों के कारण या आत्म-प्रेरित l

गौरव के साथ मेरी बातचीत के मद्देनज़र, मैंने यीशु के शारीरिक दागों के बारे में सोचा, उसके हाथों और पैरों में ठोंकी गयी किलों के घाव और उसके पंजर में भला बेधा गया l अपने दाग़ छुपाने के बजाय, मसीह ने उनकी ओर ध्यान आकर्षित किया l

थोमा के पहले शक करने पर कि यीशु मृतकों में से जी उठा है, उसने उससे कहा, “अपनी ऊंगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो” (यूहन्ना 20:27) l जब थोमा ने अपने लिए उन निशानों को देखा और मसीह के अद्भुत शब्दों को सुना, तो उसे यकीन हो गया कि यह यीशु है l उसने विश्वास में कहा, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” (पद.28) l यीशु ने तब उन लोगों के लिए एक विशेष आशीष उच्चारित किया, जिन्होंने उसे या उसके शारीरिक घावों को नहीं देखा था, लेकिन अभी भी उस पर विशवस करते है : “धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया” (पद.29) l

ऋण मिटाने वाला

स्तब्ध सिर्फ एक शब्द है जो एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में 2019 के स्नातक समारोह में भीड़ की प्रतिक्रिया का वर्णन करता है l अमरीकी दीक्षान्त समारोह वक्ता ने घोषणा की कि वह और उसका परिवार पूरे स्नातक वर्ग के विद्यार्थी ऋण को मिटाने के लिए लाखों डॉलर का दान करेंगे l एक विद्यार्थी जिसके ऊपर - $100,000 (72 लाख रुपये) का ऋण था – अभिभूत स्नातकों में से था, जिन्होंने आँसू और प्रशंसा ध्वनि के साथ अपनी खुशियाँ व्यक्त कीं l

हम में से अधिकाँश ने किसी न किसी रूप में ऋणग्रस्तता(indebtedness) का अनुभव किया है – घरों, वाहनों, शिक्षा, चिकित्सा खर्चों या अन्य चीजों के भुगतान के लिए l लेकिन हमें “भुगतान”! (“PAID!”) का मुहर लगने वाले बिल की आश्चर्यजनक राहत भी अनुभव करने को मिली है l

यीशु को “विश्वासयोग्य साक्षी और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहिलौठा और पृथ्वी के राजाओं का हाकिम” घोषित करने के बाद, यूहन्ना ने अपने ऋण-उन्मूलन कार्य को भक्ति के साथ स्वीकार किया : “वह हम से प्रेम रखता है, और उसने अपने लहू के द्वारा हमें पापों से छुड़ाया है” (प्रकाशितवाक्य 1:5) l यह कथन सरल है लेकिन इसका अर्थ गहरा है l यह मोरहाउस(Morehouse) स्नातक कक्षा द्वारा सुनी गई अच्छी खबर की घोषणा के आश्चर्य से बेहतर है कि यीशु की मृत्यु (क्रूस पर उसका खून बहाना) हमें उस दंड से मुक्त करती है जो हमारे पापी व्यवहार, इच्छाओं और कर्मों के लायक है l इसलिए कि वह ऋण चुका दिया गया है, जो यीशु पर विश्वास करते हैं, उन्हें माफ़ कर दिया जाता है और वे परमेश्वर के राज्य परिवार का हिस्सा बन जाते हैं (पद.6) यह खुशखबरी समस्त ख़बरों से सर्वोत्तम खबर है! 

साथ में हम जीतते हैं

आधी रात में, पास्टर सैमुएल को एक फोन आया जिसमें उन्हें एक चर्च के सदस्य के घर पर आने के लिए कहा गया l जब वह वहां पहुंचे, तो उन्हें आग से घिरा हुआ एक घर मिला l हलाकि, पिता खुद जल गया था, अपने बच्चे को बचाने के लिए घर में वापस लौट गया था और एक बेहोश बेटी के साथ बाहर आया l इस ग्रामीय गाँव में, हॉस्पिटल 10 किलोमीटर दूर था l कोई परिवहन उपलब्ध नहीं होने से पास्टर और पिता बच्चे को लेकर हॉस्पिटल की ओर दौड़ने लगे l जब उनमें से एक घायल लड़की को गोद में लिए हुए थक जाता था, तो दूसरा उसे सम्भाल लेता था l दोनों ने मिलकर यात्रा पूरी की; पिता और उसकी बेटी का इलाज किया गया और दोनों पूरी तरह से ठीक हो गए l

निर्गमन 17:8-13 में यहोवा ने एक महान विजय प्राप्त की, जिसमें यहोशु का प्रयास भी शामिल था, जिसने युद्ध के मैदान में पुरुषों का नेतृत्व किया; और मूसा, जिसने परमेश्वर की लाठी को पकडे हुए अपने हाथों को उठाए रखा l जब मूसा के हाथ थक गए, तो हारून और हूर ने सूर्य के अस्त होने और शत्रु के पराजय तक मूसा के हाथों को उठाकर रखने में एक दूसरे की मदद की l

परस्पर निर्भरता के मूल्य को कभी भी कम नहीं आँका जा सकता है l परमेश्वर, अपनी दयालुता में, लोगों को पारस्परिक रूप से अच्छे के लिए अपने एजेंट के रूप में प्रदान करता है l सुनने वाले कान और सयायक हाथ; बुद्धिमान, सुकून देने वाले और सुधारने वाले शब्द - ये और अन्य संसाधन हमारे पास और हमारे माध्यम से दूसरों तक पहुँचते हैं l एक साथ हम जीतते हैं और परमेश्वर को महिमा मिलती है!

छोटों से सीखना

जब एक मित्र और मैं केन्या, नैरोबी के एक झुग्गी झोपड़ी में गए, वहां की निर्धनता को देख कर हमारे हृदय बहुत अधिक नम्र किये गए। हालाँकि, उसी दृश्य में, हमारे अन्दर - भिन्न भावनाएँ - ताज़े जल के समान हलचल मचा दिए जब हमने छोटे बच्चों को दौड़ते और चिल्लाते हुए देखा, “म्चुन्गजी, मचुन्गजी!”(स्वाहिली भाषा में पास्टर)। हमारे साथ वाहन में अपने आध्यात्मिक अगुआ को देख कर उनकी प्रतिक्रिया ख़ुशी से भरी हुई थी। इन कोमल चीखों के साथ, छोटे बच्चों ने उनकी देखभाल और चिंता करने वाले का स्वागत किया।
जैसे ही यीशु एक गधे पर सवार होकर यरूशलेम पहुंचा, आनंदित बच्चे उनमें से थे जिन्होंने उसका उत्सव मनाया। “धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है! . . . दाऊद के संतान को होशाना” (मत्ती 21:9,15)। लेकिन यीशु के लिए प्रशंसा हवा में केवल ध्वनियाँ नहीं थीं। कोई भी व्यक्ति भागते, पैसा कमाने वाले व्यापारियों के शोर की कल्पना कर सकता है जो यीशु को देख कर भाग खड़े हुए (पद.12-13)। इसके अलावा, धार्मिक अगुवे जिन्होंने उसकी दया को व्यवहार में देखा था “क्रोधित हुए” (पद.14-15)। उन्होंने बच्चों की प्रशंसा पर नाराजगी दर्शायी (पद.16) और इस प्रकार अपने खुद के हृदयों की निर्धनता को प्रगट किया।
हम सभी उम्र और स्थानों के परमेश्वर के बच्चों के विश्वास से सीख सकते हैं जो यीशु को संसार के उद्धारकर्ता कर रूप में पहचानते हैं। यह वही है जो हमारी प्रशंसा सुनता है और रोता है, और हमारी देखभाल करता है और बचाता है जब हम बच्चों की तरह भरोसा से उसके पास आते हैं।

वास्तव में स्वतंत्र

अंग्रेजी फिल्म एमिस्टैड (Amistad) 1839 में पश्चिम अफ़्रीकी गुलामों की कहानी बताती है जो उन्हें ले जाने वाली नाव पर कब्ज़ा कर लेते हैं और कप्तान और चालक दल के कुछ सदस्यों को मृत्यु के घाट उतार देते हैं l आखिरकार उन्हें पुनः पकड़ लिया जाता है, और उन पर मुकदमा चलता है l एक अविस्मरणीय कोर्ट रूम दृश्य में गुलामों का अगुआ दिखाई देता है जो स्वतंत्रता के लिए भाव प्रवणता से गुहार लगा रहा होता है l जंजीरों से बंधा हुआ एक व्यक्ति टूटी हुयी अंग्रेजी में बढ़ते बल के साथ तीन सरल शब्दों को दोहराता है “हमें आज़ादी दो!” न्याय दिया गया और पुरुषों को मुक्त कर दिया गया l 

आज ज्यादातर लोग शारीरिक रूप से बंधे होने के खतरे में नहीं हैं, फिर भी पाप के आध्यात्मिक बंधन से सच्ची मुक्ति मायावी है l यूहन्ना 8:36 में यीशु के वचन सुखद राहत देते हैं : इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो तुम वास्तव में स्वतंत्र हो जाओगे l” यीशु ने स्वयं को सच्चे उद्धार के श्रोत के रूप में इंगित किया क्योंकि वह किसी को भी क्षमा प्रदान करता है जो उस पर विश्वास करता है l हालाँकि, मसीह के कुछ दर्शकों ने स्वतंत्रता (पद.33) का दावा किया, उनके शब्द, दृष्टिकोण और यीशु के विषय उनके कार्य उनके दावे को धोखा दे रहे थे l 

यीशु उन लोगों को सुनने के लिए तरसता है जो उस दलील को दोहराएंगे और कहेंगे, हमें आज़ादी दो!” करुणा के साथ वह उन लोगों के रोने का इंतज़ार करता है जो अविश्वास या भय या असफलता से बंधे हुए हैं l स्वतंत्रता दिल की बात है l ऐसी स्वतंत्रता उन लोगों के लिए आरक्षित है जो विश्वास करते हैं कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है जिसे संसार में हमारे ऊपर पाप की पकड़ की सामर्थ्य को उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा तोड़ने के लिए भेजा गया l  

सहायता करने के योग्य

जो की उसकी नौकरी से आठ सप्ताह की “छुट्टी प्राकृतिक आपदा के शिकार लोगों की मदद करने के कारण,छुट्टी नहीं थी l उसके शब्दों में, यह “फिर से बेघर लोगों के बीचरहना था, उनमें से एक बनना था, याद करना था कि भूखा रहना, थका रहना, और भुला दिया जाना कैसा होता था l” सड़कों पर जो का पहला कार्यकाल नौ साल पहले आया था जब वह शहर में बिना नौकरी या रहने की जगह पहुंचा था l तेरह दिनों तक वह कम भोजन या नींद के साथ सड़कों पर रहा l इसी तरह परमेश्वर ने उसे दशकों तक ज़रुरतमंदों लोगों की सेवा के लिए तैयार किया l

जब यीशु धरती पर आया, तो उसने उन लोगों के अनुभवों को साझा करने का भी चुनाव किया, जिन्हें वह बचाने आया था l “इसलिए जब कि लड़के मांस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया, ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात् शैतान” (इब्रानियों 2:14) l जन्म से मृत्यु तक, मसीह के मानवीय अनुभव से कुछ भी नहीं अछूता नहीं था – पाप को छोड़कर (4:15) l क्योंकि उसने पाप पर विजय पा ली, जब हम पाप करने की परीक्षा में पड़ते हैं, वह हमारी मदद कर सकता है l 

और यीशु को हमारी सांसारिक परवाह करने की आवश्यकता नहीं है l जो हमें बचाता है वह हमसे जुड़ा रहता है और हममें गहरी दिलचस्पी रखता है l जीवन जो भी लाता है, हमें आश्वासन मिलता है कि जिसने हमें हमारे सबसे बड़े दुश्मन से बचाया है, अर्थात् शैतान (2:14), हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत के समय में हमारी मदद करने के लिए तैयार है l 

जीवन से भी उत्तम

यद्यपि मेरी यीशु से प्यार करती थी – जीवन कठिन था, बहुत कठिन l दो बेटों के साथ दो पोतों की मृत्यु हो चुकी थी दोनों ही गोली के शिकार हुए थे l और मेरी को खुद अशक्त करनेवाला दिल का दौरा पड़ा जिससे वह एक ओर लकवाग्रस्त हो गयी थी l फिर भी, जैसे ही वह सक्षम हुयी उसने चर्च की आराधनाओं में जाने के लिए अपना रास्ता बना लिया जहाँ यह उसके लिए असामान्य नहीं था – खंडित बोली के साथ – प्रभु की प्रशंसा करने के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग, “मेरी आत्मा यीशु से प्यार करती हैं; उसका नाम धन्य हो!”

मेरी द्वारा परमेश्वर की प्रशंसा करने से बहुत पहले, दाऊद ने भजन 63 के शब्दों को कलमबद्ध किया था l भजन का शीर्षलेख बताता है कि दाऊद ने लिखा था कि “जब वह यहूदा के जंगल में था l” यद्यपि वह एक कम चाहनेयोग्य – निराशाजनक भी – स्थिति में था, वह निराश नहीं हुआ क्योंकि उसकी आशा परमेश्वर में थी l “हे परमेश्वर, तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूँढूँगा; . . . सुखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है” (पद.1) l 

शायद आप खुद को बिना सही दिशा और अपर्याप्त संसाधन के साथ, कठिनाई के स्थान में पाते हैं l असुविधाजनक परिस्थितियाँ हमें भ्रमित कर सकती हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि वे हमें पटरी से उतार दे, जब हम उससे चिपके रहते हैं जो हमसे प्रेम करता है (पद.3), हमें को संतुष्ट करता है (पद.5), हमारी सहायता करता है (पद.7), और जिसका दाहिना हाथ हमें थामता है (पद.8) l क्योंकि परमेश्वर का प्रेम जीवन से उत्तम है, मेरी और दाऊद के समान, हम परमेश्वर की प्रशंसा और सम्मान करने वाले होंठों के द्वारा संतुष्टि व्यक्त कर सकते हैं (पद.3-5) l 

यीशु द्वारा स्वतंत्र

“मैं अपनी माँ के साथ इतने लम्बे समय तक रहा कि वह दूसरी जगह रहने चली गयी!” वे पीटर के शब्द थे, जिसका यीशु के प्रति संयम और आत्मसमर्पण करने से पहले का जीवन बहुत अच्छा नहीं था l वह खुलकर स्वीकार करता है कि वह चोरी करके – अपने प्रिय जनों से भी - अपने नशीले पदार्थ के सेवन की आदत का समर्थन करता था l वह अब अपना पुराना जीवन छोड़ चुका है और वह निर्मल होने के वर्षों, महीनों और दिनों को ध्यान में रखते हुए इसका अभ्यास करता है l जब पीटर और मैं नियमित रूप से एक साथ परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के लिए बैठते हैं, तो मैं एक बदले हुए व्यक्ति को देख रहा होता हूँ l 

मरकुस 5:15 एक पूर्व दुष्टात्माग्रस्त व्यक्ति की बात बताता है जो परिवर्तित हो गया था l उसकी चंगाई से पहले, असहाय, आशाहीन, और आततायी वे शब्द हैं जो उसके लिए उपयुक्त लगते हैं (पद.3-5) l लेकिन यीशु द्वारा उसे मुक्त करने के बाद यह सब बदल गया (पद.13) l लेकिन, जैसे पीटर के साथ, यीशु के सामने उसका जीवन सामान्य से बहुत दूर था l उसकी आंतरिक उथल-पुथल जो उसने बाहरी रूप से व्यक्त की थी, आज लोगों के अनुभव के विपरीत नहीं है l कुछ आहात लोग परित्यक्त इमारतों, वाहनों, या अन्य स्थानों में रहते हैं; कुछ अपने घरों में रहते हैं लेकिन भावनात्मक रूप से अकेले हैं l अदृश्य जंजीरें दिलों-दिमाग को इस तरह जकड़ देती हैं कि वे दूसरों से दूरी बना लेते हैं l  

यीशु में, हमारे पास वह व्यक्तित्व है जिस पर हमारे दर्द और अतीत और वर्तमान की शर्म के साथ भरोसा किया जा सकता है l और, जिस तरह दुष्टात्माग्रस्त व्यक्ति और पीटर के साथ, वह उन सभी के लिए दया की खुली बाहों के साथ इंतज़ार करता है जो आज उसके पास आते हैं (पद.19) l 

साथ में

1994 में दो महीने की अवधि के दौरान, हुतु जनजाति के सदस्यों द्वारा अपने साथी देशवासियों को मारने पर तुला रवांडा में दस लाख तुत्सी(नस्ली जाति) मारे गए थे l इस भयावह नरसंहार के मद्देनज़र, बिशप जेफ़री रुबुसिसी ने अपनी पत्नी से उन महिलाओं तक पहुँचने के बारे में संपर्क किया, जिनके प्रियजन मारे गए थे l मेरी का जवाब था, “मैं केवल रोना चाहती हूँ l” उसने भी अपने परिवार के सदस्यों को खोया था l बिशप की प्रतिक्रिया एक बुद्धिमान अगुआ और देखभाल करनेवाले पति की थी : “मेरी, महिलाओं को एक साथ इकठ्ठा करो और उनके साथ रोओ l” उन्हें पता था कि उनकी पत्नी के दर्द ने उन्हें दूसरों के दर्द में विशिष्ट रूप से भागीदारी करने के लिए तैयार किया था l 

कलीसिया, परमेश्वर का परिवार है, जहाँ जीवन की सभी बातें साझा की जा सकती हैं – अच्छी और जो बहुत अच्छी नहीं हैं l नए नियम का शब्द “परस्पर” का उपयोग एक दूसरे पर हमारी निर्भरता को हथियाने के लिए किया गया है l “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो . . . आपस में एक सा मन रखो” (रोमियों 12:10, 16) l हमारी संयुक्तता की सीमा पद 15 में व्यक्त की गयी है : “आनंद करनेवालों के साथ आनंद करो, और रोनेवालों के साथ रोओ l”

जबकि नरसंहार से प्रभावित लोगों की तुलना में हमारे दर्द की गहराई और गुंजाइश कम हो सकती है, फिर भी यह व्यक्तिगत और वास्तविक है l और, जैसा कि मेरी के दर्द के साथ था, इसलिए कि परमेश्वर ने हमारे लिए जो किया है उसे गले लगाया जा सकता है और दूसरों के दिलासा और भलाई के लिए साझा किया जा सकता है l