जब एक मित्र और मैं केन्या, नैरोबी के एक झुग्गी झोपड़ी में गए, वहां की निर्धनता को देख कर हमारे हृदय बहुत अधिक नम्र किये गए। हालाँकि, उसी दृश्य में, हमारे अन्दर – भिन्न भावनाएँ – ताज़े जल के समान हलचल मचा दिए जब हमने छोटे बच्चों को दौड़ते और चिल्लाते हुए देखा, “म्चुन्गजी, मचुन्गजी!”(स्वाहिली भाषा में पास्टर)। हमारे साथ वाहन में अपने आध्यात्मिक अगुआ को देख कर उनकी प्रतिक्रिया ख़ुशी से भरी हुई थी। इन कोमल चीखों के साथ, छोटे बच्चों ने उनकी देखभाल और चिंता करने वाले का स्वागत किया।
जैसे ही यीशु एक गधे पर सवार होकर यरूशलेम पहुंचा, आनंदित बच्चे उनमें से थे जिन्होंने उसका उत्सव मनाया। “धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है! . . . दाऊद के संतान को होशाना” (मत्ती 21:9,15)। लेकिन यीशु के लिए प्रशंसा हवा में केवल ध्वनियाँ नहीं थीं। कोई भी व्यक्ति भागते, पैसा कमाने वाले व्यापारियों के शोर की कल्पना कर सकता है जो यीशु को देख कर भाग खड़े हुए (पद.12-13)। इसके अलावा, धार्मिक अगुवे जिन्होंने उसकी दया को व्यवहार में देखा था “क्रोधित हुए” (पद.14-15)। उन्होंने बच्चों की प्रशंसा पर नाराजगी दर्शायी (पद.16) और इस प्रकार अपने खुद के हृदयों की निर्धनता को प्रगट किया।
हम सभी उम्र और स्थानों के परमेश्वर के बच्चों के विश्वास से सीख सकते हैं जो यीशु को संसार के उद्धारकर्ता कर रूप में पहचानते हैं। यह वही है जो हमारी प्रशंसा सुनता है और रोता है, और हमारी देखभाल करता है और बचाता है जब हम बच्चों की तरह भरोसा से उसके पास आते हैं।