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Articles by सिंडी हेस कैस्पर

मौन के लिए जगह

यदि आप अमेरिका में, एक शांतिपूर्ण और सुनसान जगह ढूँढ रहें हैं, मिनियापोलिस, मिन्नेसोटा में एक कमरा है, जिसे आप पसंद करोगे। यह समस्त ध्वनि का 99.99 प्रतिशत सोख लेता है! ऑरफ़ील्ड प्रयोगशालाओं के विश्व प्रसिद्ध प्रतिध्वनि-मुक्त कक्ष को "पृथ्वी पर सबसे शांत स्थान" कहा गया है। जो लोग इस ध्वनि रहित स्थान का अनुभव करना चाहते हैं उन्हें शोर की कमी से विचलित होने से बचने के लिए बैठना आवश्यक है, और कोई भी कभी भी कमरे में पैंतालीस मिनट से अधिक नहीं बिता पाया है।    
हममें से बहुत कम लोगों को इतनी शांति की जरूरत होती है। फिर भी हम कभी-कभी शोर-शराबे और व्यस्त दुनिया में थोड़ी शांति की चाहत रखते हैं। यहां तक कि जो समाचार हम देखते हैं और जिस सोशल मीडिया का हम उपयोग करते हैं, वह एक प्रकार का कोलाहलपूर्ण "शोर" लाता है जो हमारा ध्यान आकर्षित करते है। इसका अधिकांश हिस्सा ऐसे शब्दों और तस्वीरों से भरा हुआ है जो नकारात्मक भावनाओं को उत्तेजित करता हैं। इसमें स्वयं को डुबाने से परमेश्वर की आवाज आसानी से दब सकती है। 
जब भविष्यवक्ता एलिय्याह होरेब पर्वत पर परमेश्वर से मिलने गया, तो उसने उसे बड़ी प्रचणड आन्धी, भूकंप या आग में नहीं पाया (1 राजा 19:11-12)। उसने तब पाया जब एलिय्याह ने "एक दबा हुआ धीमा शब्द "सुना, यह सुनते ही एलिरयाह ने अपना मुंह चद्दर से ढांपा, और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ "सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर" से मिलने के लिए (पद 12-14)। 
हो सकता है कि आपकी आत्मा शांति के लिए तरस रही हो, लेकिन इससे भी अधिक - वह परमेश्वर की आवाज़ सुनने के लिए तरस रही हो। अपने जीवन में मौन के लिए जगह खोजें ताकि आप कभी भी परमेश्वर की "धीमी आवाज़" को सुनने से न चूकें (पद 12)। 
 

सब कुछ यीशु के लिए

जब जेफ चौदह साल का था, तो उसकी माँ उसे एक प्रसिद्ध गायक से मिलने ले गई। अपने दौर के कई संगीतकारों की तरह, बी. जे. थॉमस भी संगीत यात्राओं के दौरान एक आत्म-विनाशकारी जीवनशैली में फंस गए थे। लेकिन यह तब की बात है जब उनका और उनकी पत्नी का यीशु से परिचय नहीं हुआ था। जब वे मसीह में विश्वासी बन गए, तो उनके जीवन में आवश्यक रूप से परिवर्तन आ गया।  
संगीत समारोह की रात, गायक ने उत्साही भीड़ का मनोरंजन करना शुरू कर दिया। लेकिन अपने कुछ प्रसिद्ध गीतों का प्रदर्शन करने के बाद, दर्शकों में से एक व्यक्ति चिल्लाया, "अरे, यीशु के लिए एक गाना गाओ!" बिना किसी हिचकिचाहट के, बी. जे. ने जवाब दिया, "मैंने अभी-अभी यीशु के लिए चार गाने गाए हैं 
तब से कुछ दशक हो गए हैं, लेकिन जेफ को अभी भी वह पल याद है जब उन्हें एहसास हुआ कि हम जो कुछ भी करते हैं वह यीशु के लिए होना चाहिए - यहां तक ​​कि ऐसी चीजें जिन्हें कुछ लोग "गैर-धार्मिक" मान सकते हैं। 
हम जीवन में जो काम करते हैं, कभी-कभी उन्हें बाँटने के लालच में फंस जाते हैं।  हम बाइबल पढ़ते हैं। विश्वास में आने की अपनी कहानी साझा करते हैं। भजन गाते हैं। पवित्र काम करते हैं। लॉन की घास काटते हैं। दौड़ने जाते हैं। कोई देशी गाना गाते हैं। धर्मनिरपेक्ष काम करते हैं। कुलुस्सियों 3:16 हमें याद दिलाता है कि मसीह का संदेश हमारे भीतर रहता है जैसे कि शिक्षण, गायन और आभारी होना, लेकिन पद 17 इससे भी आगे जाता है। यह इस बात पर जोर देता है कि परमेश्वर के बच्चों के रूप में, " वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, ।" हम यह सब उसके लिए करते हैं। 
हम यह सब उसके लिए करते हैं। 
 

करना या नहीं करना

जब मैं छोटी लड़की थी, मेरे घर के पास एक पार्क में द्वितीय विश्व युद्ध का एक सेवामुक्त टैंक प्रदर्शित किया गया था l कई संकेतों ने वाहन पर चढ़ने के खतरे की चेतावनी दी, लेकिन मेरे कुछ मित्र तुरंत उस पर चढ़ गए l हममें से कुछ लोग हिचकिचाए, लेकिन आखिरकार हमने भी वही किया l एक लड़के ने वहां लगाये गए संकेतों(निर्देशों) की ओर इशारा करते हुए, मना कर दिया l एक वयस्क के निकट आते ही एक जल्दी से नीचे कूद गया l मौज-मस्ती करने के प्रलोभन ने नियमों का पालन करने की हमारी इच्छा को मात दे दी l 

हम सभी के भीतर बचकाना विद्रोह का हृदय छिपा है l हम नहीं चाहते कि कोई हमें बताए कि क्या हमें करना है या क्या नहीं करना है l फिर भी हम याकूब में पढ़ते हैं कि जब हम जानते हैं कि क्या सही है और हम उसे नहीं करते—तो वह पाप है (4:17) रोमियों में, प्रेरित पौलुस ने लिखा : “जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ l अतः यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझे में बसा हुआ है” (7:19-20) 

यीशु में विश्वासियों के रूप में, हम पाप के साथ अपने संघर्ष से व्याकुल हो सकते हैं l लेकिन अक्सर हम सही काम करने के लिए पूरी तरह से अपनी ताकत पर निर्भर होते हैं l एक दिन, जब यह जीवन समाप्त हो जाएगा,हम वास्तव में पापी आवेगों के असर के प्रति मृत हो जाएंगेl फिर भी तब तक के लिए, हम उसकी शक्ति पर भरोसा कर सकते हैं जिसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने पाप पर विजय प्राप्त की है l 

ज़रूरत को देखना

मेरे पिताजी के जीवन के अंतिम कुछ दिनों में, नर्सों में से एक उनके कमरे में आ गई और मुझसे पूछा कि क्या वह उनकी दाढ़ी बना सकती हैं। जैसे ही रेचेल ने धीरे से उस्तरे को उसके चेहरे पर चलाया, उसने समझाया, "उसकी पीढ़ी के वृद्ध पुरुष हर दिन साफ ​​दाढ़ी रखना पसंद करते हैं।" राहेल ने किसी के प्रति दया, गरिमा और सम्मान दिखाने की आवश्यकता को देखा और अपनी प्रवृत्ति पर काम किया। उसने जो कोमल देखभाल प्रदान की, उसने मुझे मेरी सहेली जूली की याद दिला दी, जो अभी भी अपनी बुजुर्ग माँ के नाखूनों को पेंट करती है क्योंकि यह उसकी माँ के लिए महत्वपूर्ण है कि वह "सुंदर दिखे।"

प्रेरितों के काम 9 हमें दोरकास नाम के एक शिष्या के बारे में बताता है (जिसे तबीथा भी कहा जाता है) जिसने गरीबों के लिए हाथ से बने कपड़े प्रदान करके दया दिखाई (पद 36, 39) जब उसकी मृत्यु हुई, तो उसका कमरा उन दोस्तों से भर गया, जिन्होंने इस दयालु महिला का शोक मनाया, जो दूसरों की मदद करना पसंद करती थी।

लेकिन दोरकास की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जब पतरस को वहाँ लाया गया जहाँ उसका शव पड़ा था, तो उसने घुटने टेके और प्रार्थना की। परमेश्वर की सामर्थ में, उसने यह कहते हुए उसका नाम लिया, "तबीता, उठ" (पद. 40)। आश्चर्यजनक रूप से, दोरकास ने अपनी आँखें खोलीं और अपने पैरों पर खड़ी हुई। जब उसकी सहेलियों को पता चला कि वह जीवित है, तो यह बात पूरे नगर में फैल गई और "बहुत से लोगों ने प्रभु पर विश्वास कियाI" (पद. 42)

और दोरकास ने अपने जीवन का अगला दिन कैसे बिताया? शायद ठीक वैसे ही जैसे उसने पहले किया था- लोगों की ज़रूरतों को देखना और उन्हें पूरा करना।

बहत सुन्दर

जब हाईलैंड पार्क, मिशिगन की सड़कों की लाइटें हटा दी गयीं, तो लोगों की तीव्र इच्छा के कारण एक अन्य प्रकाश श्रोत को वहाँ जगह मिल गयी अर्थात् सूर्य l संघर्ष कर रहे शहर के पास जनोपयोगी(utility) सेवा कंपनी को भुगतान करने के लिए धन की कमी थी l बिजली कंपनी ने सड़क की लाइटें बन्द कर दीं और 1,400 बिजली के खम्बों से लाइटबल्ब हटा दिए l इससे निवासी असुरक्षित और अँधेरे में रह गए l एक निवासी ने समाचार समूह को बताया, “अभी कुछ बच्चे स्कूल जा रहे हैं l कोई रोशनी नहीं है l उन्हें केवल सड़क पर चलने का खतरा मोल लेना है l” 

यह तब बदल गया जब कस्बे में सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें लगाने के लिए एक गैर-लाभकारी(non-profit) समूह का गठन हुआ l एक साथ काम करते हुए, मानवतावादी संगठन(humanitarian organization) ने एक प्रकाश श्रोत को सुरक्षित करते हुए ऊर्जा बिलों पर शहर का पैसा बचाया, जिससे निवासियों की ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिली l 

मसीह में हमारे जीवन में, हमारा भरोसेमंद प्रकाश श्रोत स्वयं यीशु, परमेश्वर का पुत्र है l जैसा कि प्रेरित यूहन्ना ने लिखा, “परमेश्वर ज्योति है और उसमें कुछ भी अंधकार नहीं”(1 यूहन्ना 1:5) l यूहन्ना ने कहा, “यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं, और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है”(पद.7) l 

यीशु ने स्वयं घोषणा की, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा”(यूहन्ना 8:12) l हमारे हर पग पर परमेश्वर के पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के साथ, हम कभी भी अन्धकार में नहीं चलेंगे l उसका प्रकाश हमेशा तेज़ चमकता रहता है l 

आज्ञाकारिता एक चुनाव/विकल्प है

नीदरलैंड में सर्दियां शायद ही कभी बहुत अधिक बर्फ लाती हैं, लेकिन, अधिक ठण्ड होने पर नहरों पर बर्फ जम जाती है l जब मेरे पति, टॉम, वहाँ बड़े हो रहे थे, तो उनके माता-पिता का पारिवारिक नियम था : “जब तक बर्फ इतनी मोटी न हो जाए कि घोड़े का वजन सह सके, तब तक बर्फ से दूर रहें l” क्योंकि घोड़े अपनी उपस्थिति का सबूत पीछे छोड़ देते थे, टॉम और उसके मित्रों ने सड़क से कुछ खाद/मिट्टी उठाकर पतली बर्फ के सतह पर डाला और उस पर जाने का जोखिम उठाया l उन्हें कोई हानि नहीं पहुँची, न ही किसी को पता चला, परन्तु वे अपने मन में जानते थे कि वे अनाज्ञाकारी थे l 

आज्ञाकारिता हमेशा स्वाभाविक रूप से नहीं आती l आज्ञापालन करने या न करने का विकल्प कर्तव्य की भावना या सज़ा के डर से उत्पन्न हो सकता है l लेकिन हम अपने ऊपर अधिकार रखने वालों के प्रति प्रेम और सम्मान के कारण उनकी आज्ञा का पालन करना भी चुन सकते हैं l 

यूहन्ना 14 में, यीशु ने यह कहकर अपने शिष्यों को चुनौती दी, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा . . . जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता”(पद.23-24) l आज्ञा मानना हमेशा आसान विकल्प नहीं होता है, लेकिन हमारे भीतर रहने वाली आत्मा की सामर्थ्य हमें उसकी आज्ञा मानने की इच्छा और क्षमता देती है(पद.15-17) l उसकी सक्षमता से, हम उसकी आज्ञाओं का पालन करना जारी रख सकते हैं जो हमसे सबसे अधिक प्यार करता है—सजा के डर से नहीं, बल्कि प्रेम से l 

मसीह के चरित्र का प्रतिबिम्बन

मेज पर दो चेहरे उभरे हुए थे—एक तेज़ क्रोध से बिगड़ा था, दूसरा भावनात्मक दर्द से विकृत था l पुराने मित्रों के पुनःमिलन में अभी-अभी चीख-पुकार मच गयी थी, जिसमें एक महिला दूसरी महिला को उसके विश्वासों के लिए डांट रही थी l विवाद तब तक जारी रहा जब तक कि पहली महिला रेस्टोरेंट से बाहर नहीं चली गयी, जिससे दूसरी हिल गयी और अपमानित हुयी l 

क्या हम सचमुच ऐसे समय में रह रहे हैं जब विचारों में मतभेद बर्दास्त नहीं किया जा सकता? सिर्फ इसलिए कि दो लोग सहमत नहीं हो सकते इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें से कोई भी बुरा है l जो वाणी कठोर या अडिग होती है वह कभी भी प्रेरक नहीं होती है, और मजबूत विचारों को शालीनता या करुणा पर हावी नहीं होना चाहिए l 

रोमियों 12 “परस्पर आदर [कैसे करें]” और अन्य लोगों के साथ “एक सा मन [कैसे रखें] के लिए एक मार्गदर्शक है (पद.10,16) l यीशु ने संकेत दिया कि उस पर विश्वास करने वालों की पहचान करने वाली विशेषता एक दूसरे के प्रति हमारा प्रेम है (यूहन्ना 13:35) l जबकि अभिमान और क्रोध हमें आसानी से पटरी से उतार सकते हैं, वे उस प्रेम के बिल्कुल विपरीत हैं जो ईश्वर चाहता है कि हम दूसरों को दिखाएँ l 

जब हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देते हैं तो दूसरों को दोष न देना एक चुनौती है, लेकिन ये शब्द “जहां तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो” हमें दिखाते हैं कि ऐसा जीवन जीने की जिम्मेदारी जो मसीह के चरित्र को प्रतिबिंबित करती है, किसी और तक स्थानांतरित नहीं हो सकती है (रोमियों 12:18) l यह हममें से हर एक के साथ निहित है जो उसका नाम धारण करता है l 

यीशु की आशा करना

मेरा मित्र पॉल अपने रेफ्रीजरेटर के मरम्मत के लिए तकनीशियन के आने का इंतजार कर रहा था जब उसने अपने फोन पर उपकरण कम्पनी से एक सन्देश देखा l इसमें लिखा था : “जीसस अपने रास्ते पर हैं और लगभग 11.35 बजे उनके पहुँचने की उम्मीद है l” पॉल को जल्द ही पता चला कि तकनीशियन का नाम वास्तव में जीसस(hay-SOOS) था l 

लेकिन हम परमेश्वर के पुत्र यीशु के आने की उम्मीद कब कर सकते हैं? जब वह दो हज़ार वर्ष पहले एक मनुष्य के रूप में आया और हमारे पापों का दण्ड भुगता, तो उसने कहा कि वह वापस आएगा—लेकिन केवल पिता ही उसकी वापसी का सटीक “दिन या घड़ी” जानता था (मत्ती 24:36) l यदि हमें पता चल जाए कि हमारा उद्धारकर्ता पृथ्वी पर वापस आ रहा है तो इससे हमारी दिन-प्रतिदिन की प्राथमिकताओं में क्या अंतर आ सकता है? (यूहन्ना 14:1-3) 

यीशु हमें उसकी वापसी के लिए तैयार रहने के लिए आगाह किया : “जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा l उसने हमें याद दिलाया कि “जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा” (पद.42) l 

यीशु मसीह की वापसी के दिन, हमें सचेत करने के लिए हमारे फोन पर कोई अलर्ट नहीं मिलेगा l तो, हमारे भीतर काम करने वाली आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, आइये प्रत्येक दिन को अनंत काल के सन्दर्भ में जीएं, परमेश्वर की सेवा करें और उसके प्यार और आशा के सन्देश को दूसरों के साथ साझा करने के अवसर का हम लाभ उठाएं l 

 

पैरों का धोना . . और व्यंजन

चार्ली और जान की शादी की पचासवीं सालगिरह पर, उन्होंने अपने बेटे जॉन के साथ एक कैफे में नाश्ता किया। उस दिन, रेस्तरां में बहुत कम कर्मचारी थे, केवल एक प्रबंधक, रसोइया और एक किशोर लड़की थी जो परिचारिका, वेट्रेस और बसर(गंदे बर्तन उठाने और मेज़ साफ करने वाला)  के रूप में काम कर रही थी। जैसे ही उन्होंने अपना नाश्ता ख़त्म किया, चार्ली ने अपनी पत्नी और बेटे से कहा, "क्या अगले कुछ घंटों में आपके लिए कोई महत्वपूर्ण काम होने वाला है?" उनके पास कुछ भी नहीं था.

इसलिए, मैनेजर की अनुमति से, चार्ली और जान ने रेस्तरां के पीछे बर्तन धोना शुरू कर दिया, जबकि जॉन ने अव्यवस्थित टेबलों को साफ करना शुरू कर दिया। जॉन के अनुसार, उस दिन जो हुआ वह वास्तव में उतना असामान्य नहीं था। उनके माता-पिता ने हमेशा यीशु का उदाहरण पेश किया था जो "सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा कराने आए थे" (मरकुस 10:45)।

यूहन्ना 13 में, हम मसीह द्वारा अपने शिष्यों के साथ साझा किये गये अंतिम भोजन के बारे में पढ़ते हैं। उस रात, शिक्षक ने उनके गंदे पैर धोकर उन्हें विनम्र सेवा का सिद्धांत सिखाया (पद14-15)। यदि वह एक दर्जन पुरुषों के पैर धोने का नीच काम करने को तैयार था, तो उन्हें भी खुशी-खुशी दूसरों की सेवा करनी चाहिए।

हमारे सामने आने वाली सेवा का प्रत्येक मार्ग अलग-अलग दिख सकता है, लेकिन एक बात समान है: सेवा करने में बहुत आनंद है। सेवा के कार्यों के पीछे का उद्देश्य  उनका प्रदर्शन करने वालों की प्रशंसा करना नहीं है,  बल्कि सारी स्तुति हमारे विनम्र, आत्म-त्यागी ईश्वर की ओर निर्देशित करते हुएप्रेमपूर्वक दूसरों की सेवा करनाहै ।