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Articles by डेविड मैकेसलैंड

बुद्धि की बुलाहट

ब्रिटेन के प्रसिद्ध पत्रकार और सामाजिक आलोचक, मैल्कम मग्रिज, साठ वर्ष की आयु में मसीही बनेंI अपने पचत्तरवें जन्मदिन पर उन्होंने जीवन के बारे में पच्चीस व्यावहारिक टिप्पणियां कीं। एक में उन्होंने कहा, "मैं कभी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जो धनी और खुश था, परंतु कभी-कभी ही ऐसे गरीब व्यक्ति से मिला हूं जो धनी नहीं बनना चाहता था।"

हम में से अधिकांश सहमत होंगे कि धन हमें ख़ुशी नहीं दे सकता, फिर भी हम अधिक धनी बनना चाहते हैं ताकि हम निश्चिन्त हो सकें।

राजा सुलैमान की संपत्ति का अनुमान दो ट्रिलियन अमेरिकी डालर से अधिक का लगाया गया है। हालांकि, वह बहुत धनी थे, पर जानते थे कि धन की बड़ी सीमाएं होती हैं। नीतिवचन 8 उनके अपने अनुभव पर आधारित है, और सभी लोगों को "बुद्धि की बुलाहट" प्रदान करता है, "मैं तुम को पुकारती...”(पद 4- 7)। “चान्दी नहीं, मेरी शिक्षा ...”(पद 10-11)।

बुद्धि कहती है मेरा फल चोखे सोने से, वरन कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चान्दी से अच्छी है। मैं धर्म की बाट में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूं, जिस से मैं अपने प्रेमियों को परमार्थ के भागी करूं, और उनके भण्डारों को भर दूं (पद 19- 20)। वास्तव में यही सच्चा धन हैं!

माफ करने की कला

मैं एक कला प्रदर्शनी देखने गया-एक पिता और उसके दो पुत्र,  माफ करने की कला-जो यीशु के उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर आधारित थी। (लूका 15:11–31 देखें)। एडवर्ड रीओजस के चित्र उड़ाऊ पुत्र ने मुझे प्रभावित किया I जिसमें एक पुत्र था जो कभी हठी था, पर अब फटे कपड़े पहने और सिर झुकाए घर लौट रहा था। मृत्यु के देश को पीछे छोड़ वह उस रास्ते पर कदम रखता है जिसमें उसका पिता पहले ही उसकी ओर दौड़ रहा है। चित्र के नीचे यीशु के शब्द हैं, “वह अभी दूर ही...” (पद 20)।

परमेश्वर के अपरिवर्तनीय प्रेम ने किस प्रकार मेरा जीवन बदल दिया था इस बात ने पुनः मुझे छू लिया। उनसे दूर जाने पर वह मुंह मोड़ने की बजाय मेरी राह देखते हुए प्रतीक्षा करते रहे। उनका प्रेम पाने की हम में योग्यता नहीं है, तो भी वह अपरिवर्तनीय है; प्रायः उपेक्षित होता है, तो भी निर्लिप्त नहीं होता।

हम सभी दोषी हैं,  तो भी हमारे स्वर्गीय पिता हमें गले लगाने के लिए वैसे दौड़े आते हैं, जैसे इस कहानी में पिता ने अपने हठी पुत्र को गले लगाया। पिता ने अपने सेवकों से कहा; “हम भोज करें...(पद 23-24)।

परमेश्वर उन लोगों के लिए आनंदित होते हैं जो आज उनके पास लौटते हैं-और यह आनंद मनाने योग्य बात है!

प्रदर्शिन का सामर्थ

घर की चीजों को ठीक करने की कोशिश में अक्सर मुझे वो चीजें ठीक कराने के पैसे खर्च करने पड़ते हैं जिन्हें पहली चीज़ को ठीक करने के प्रयास में मैं बिगड़ देता हूँ। हाल ही मैंने अपने घरेलू उपकरण को एक YouTube वीडियो देखकर सफलतापूर्वक ठीक किया जिसमें किसी ने एक-एक करके उसे ठीक करने का तरीका बताया है।

अपने युवा अनुयायी तीमुथियुस के लिए पौलुस एक अच्छा उदाहरण थे जो उनके साथ यात्रा करता और उसके कार्यों को देखता था। रोम की जेल से पौलुस ने उसे लिखा, “पर तू ने उपदेश, चाल-चलन...” (2 तीमुथियुस 3:10-11) इसके अतिरिक्त उन्होंने तीमुथियुस  से कहा, “पर तू इन बातों पर जो तूने सीखीं हैं...”(पद 14-15)।

पौलुस का जीवन प्रदर्शित करता है कि हमें अपने जीवन का निर्माण परमेश्वर के वचन पर करने की आवश्यकता है। उसने तीमुथियुस को याद दिलाया कि बाइबिल सामर्थी तथा  परमेश्वर का दिया स्रोत है जिसे हमें उन्हें सिखाने और प्रदर्शित करने की आवश्यकता है जो मसीह के पीछे चलाना चाहते हैं। जहाँ हम उन लोगों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद देते हैं जिन्होंने विश्वास में बढ़ने में हमारी मदद की है, हमारे सामने भी चुनौती है कि जिस सत्य को हम दूसरों को सिखाते हैं, उसे हम स्वयं भी जिएँ। यही प्रदर्शन का सामर्थ है।

मिलजुल कर काम करना

हर साल लाखों लोग बाधा खेलों पर कई मील दौड़ने के लिए पैसा खर्च करते हैं, जहां उन्हें पानी की बौछारों को झेलते हुए सीधी सपाट दीवारों पर चढ़ना, कीचड़ में दौड़ना, और खड़े पाइपों के अन्दर चढ़ना होता है? अपनी सहनशक्ति की सीमा को बढ़ाने या अपने भय को जीतने के लिए कुछ लोग इसे व्यक्तिगत चुनौती के रूप में देखते हैं। दूसरों के लिए, यह आकर्षण एक टीम वर्क है जहां प्रतिस्पर्धी एक-दूसरे की मदद और सहयोग करते हैं। किसी व्यक्ति ने इसे "एक नो-जजमेंट ज़ोन" कहा है, जहां अन्जान व्यक्ति मिल कर दौड़ समाप्त करने में एक दूसरे की मदद करते हैं (स्टेफ़नी कानोवित्ज़, द वॉशिंगटन पोस्ट)।

बाइबल हमें मिल जुल कर कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, जो यीशु पर विश्वास करते हुए जीवन जीने का एक मॉडल है। प्रेम, और भले कामों में उक्साने के लिये ... (इब्रानियों 10:24–25)।

हमारा लक्ष्य विश्वास की दौड़ "पहले समाप्त" करने का नहीं है, बल्कि उदाहरण बन कर ठोस तरीकों में दूसरों को प्रोत्साहित करने और मार्ग में मदद करने वाले हाथ को बढ़ाने का है।

वह दिन आएगा जब हम पृथ्वी पर अपना जीवन पूरा करेंगे। तब तक, हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें, मदद के लिए तैयार रहें, और रोज मिल जुल कर कार्य करते रहें।

हमारी सुदृढ़ नींव

हमारे शहर के लोग भूस्खलन आधीन क्षेत्रों में कई वर्षों से घरों का निर्माण करते और उन्हें खरीदते आए हैं। भूवैज्ञानिकों की 40 वर्षों की चेतावनी को और सुरक्षित गृह निर्माण के नियमों को या अस्पष्ट छोड़ दिया गया है या अनदेखा कर दिया गया है। कई घरों से दिखने वाले दृश्य तो शानदार हैं, परन्तु उनके नीचे की नींव किसी हादसे की राह देख रही है है।

प्राचीन इस्राएल में कई लोगों ने मूर्तियों से फिरने और सच्चे और जीवित परमेश्वर की , खोज करने की यहोवा की चेतावनियों की उपेक्षा की थी। अवज्ञा के कारण उन पर कष्ट आए तो भी प्रभु ने अपने लोगों से कहते रहे कि यदि वे उनकी ओर फिरें और उनका अनुसरण करेंगे तो क्षमा और आशा प्राप्त करेंगे।

यशायाह नबी ने कहा, [प्रभु] तेरे समय के लिए सुदृढ़ नींव होंगे...। यशाया 33:6

पुराने नियम के समान, परमेश्वर आज भी हमें ऐसी नींव चुनने का विकल्प देते है जिस पर हम जीवन का निर्माण करेंगे। या तो हम अपनी इच्छानुसार चल सकते हैं, या हम बाइबिल में और यीशु मसीह के व्यक्तित्व में प्रकट किए गए अनन्त सिद्धांतों को अपना सकते हैं। "मसीह, जो एक ठोस चट्टान है, पर मैं खड़ा होता हूँ - बाकि सारी जमीन घंसती हुई रेत है" (एडवर्ड मोट)

घमण्ड के साथ समस्या

अपने जीवनकाल में एक असाधारण स्तर की प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेने वाले लोगों को  "अपने समय में एक लेजेंड" कहा जाता है। प्रोफेशनल बेसबॉल खेल चुके एक मित्र कहते हैं कि वह खेल की दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों से मिले हैं, जो केवल "अपनी सोच में एक लेजेंड थे।" घमण्ड का तरीका है कि हम जैसे अपने आप को देखते हैं उसे तोड़-मरोड़ कर रख दे, जबकि विनम्रता एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान करती है।

 " विनाश से पहिले गर्व,…।" (नीतिवचन 16:18)। आत्म-महत्व के दर्पण में खुद को देखने से एक विकृत छवि ही प्रतिबिम्बित होती है। आत्म-उन्नयन हमें गिरावट की स्थिति में खड़ा कर देता है।

सच्ची विनम्रता जो परमेश्वर से आती है घमण्ड का विष हरण करती है। “… दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है” (पद 19)।

यीशु ने चेलों से कहा, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने...” (मत्ती 20:26–28)।

उपलब्धि और सफलता के लिए सम्मान प्राप्त करने में कुछ गलत नहीं है। चुनौती उस पर ध्यान बनाए रखने की है जो हमें उनके पीछे होने के लिए बुलाते हैं और यह कहते हैं, “क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (11:29)।

घमण्ड के साथ समस्या

अपने जीवनकाल में एक असाधारण स्तर की प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेने वाले लोगों को  "अपने समय में एक लेजेंड" कहा जाता है। प्रोफेशनल बेसबॉल खेल चुके एक मित्र कहते हैं कि वह खेल की दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों से मिले हैं, जो केवल "अपनी सोच में एक लेजेंड थे।" घमण्ड का तरीका है कि हम जैसे अपने आप को देखते हैं उसे तोड़-मरोड़ कर रख दे, जबकि विनम्रता एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान करती है।

 " विनाश से पहिले गर्व,…।" (नीतिवचन 16:18)। आत्म-महत्व के दर्पण में खुद को देखने से एक विकृत छवि ही प्रतिबिम्बित होती है। आत्म-उन्नयन हमें गिरावट की स्थिति में खड़ा कर देता है।

सच्ची विनम्रता जो परमेश्वर से आती है घमण्ड का विष हरण करती है। “… दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है” (पद 19)।

यीशु ने चेलों से कहा, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने...” (मत्ती 20:26–28)।

उपलब्धि और सफलता के लिए सम्मान प्राप्त करने में कुछ गलत नहीं है। चुनौती उस पर ध्यान बनाए रखने की है जो हमें उनके पीछे होने के लिए बुलाते हैं और यह कहते हैं, “क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (11:29)।

एक बालक के समान

अपनी दो साल की बेटी के साथ शुभरात्रि की प्रार्थना के बाद, एक प्रश्न से मेरी पत्नी आश्चर्यचकित हो गई। "माँ, यीशु कहाँ हैं?"

लूएन ने जवाब दिया, "यीशु स्वर्ग में और वह हर जगह हैं, यहीं हमारे साथ। अगर तुम उन्हें आने का निमंत्रण दोगी तो वो तुम्हारे दिल में भी हो सकते हैं।"

"मैं चाहती हूँ कि यीशु मेरे दिल में आएं।"
"समय आने पर तुम उनसे कह सकती हो।"
"मैं अभी उन्हें मेरे दिल में आने के लिए कहना चाहती हूँ।"
तो हमारी नन्हीं बेटी ने कहा, "यीशु, कृपया मेरे दिल में आईए और मेरे साथ रहिए।" और इस प्रकार उनके साथ उसके विश्वास की यात्रा आरम्भ हो गई।

जब यीशु के चेलों ने पूछा, कि स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है इस पर उन्होंने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच खड़ा किया। (मत्ती 18:1-2) “यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनों...”। (3-5)

यीशु की दृष्टि से एक विश्वासी बालक को हम अपने विश्वास के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। हमें उन सभी को ग्रहण करने को कहा गया है जो अपने दिलों में उसे ग्रहण कर लेते हैं। "बालकों को मेरे पास आने दो,...स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है" (19:14)।

विलम्ब से निपटना

ग्लोबल कम्प्यूटर सिस्टम आउटेज के कारण विमान उड़ाने रद्द हो जाने से, लाखों यात्री हवाई अड्डों में फंस जाते हैं। बर्फ़ीले तूफान के दौरान अनेकों वाहन दुर्घटनाओं के कारण प्रमुख राजमार्ग बंद हो जाते हैं। जिसने “तत्काल” कुछ करने का वादा किया हो, वह ऐसा नहीं कर पाता। विलम्ब अक्सर क्रोध और हताशा पैदा करता है, परन्तु यीशु के अनुयायी होने के नाते हमें मदद के लिए उनकी ओर देखने का सौभाग्य मिला है।

बाइबिल में संयम के महान उदाहरणों में से एक यूसुफ का है, जिसे उसके ईर्ष्यावान भाइयों ने दासों का व्यापार करने वालों को बेच दिया था, जिसे उसके स्वामी की पत्नी के झूठे आरोप के कारण मिस्र में कारावास मिला। "जब यूसुफ बंदीगृह में था, यहोवा यूसुफ के संग-संग रहा था"। (उत्पत्ति 39:20-21) वर्षों बाद जब यूसुफ ने फिरौन के स्वप्न की व्याख्या की, तो उसे मिस्र में दूसरा सबसे बड़ा स्थान मिला। (अध्याय 41)

उनके संयम का सबसे उल्लेखनीय फल तब आया जब उसके भाई अकाल के दौरान अनाज खरीदने आए तो उसने उनसे कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिसको तुम ने मिस्र में बेच दिया था..."(45:4-5,8)।

यूसुफ के समान छोटे या लम्बे, हर विलम्ब में,  जब हम प्रभु पर विश्वास रखेंगे तो हमें भी संयम, सही दृष्टिकोण और शांति मिलेंगे।