धन्य रोटी
जब हमारी सबसे बड़ी बेटी किशोरी हो गयी, मेरी पत्नी और मैंने उसे एक दैनिकी दी जो हम उसके जन्म से अभी तक लिख रहे थे l हमने उसके पसंद और नापसंद, विशिष्टताएँ और यादगार एक पंक्ति चुटकुले लिखे थे l कहीं-कहीं पर प्रविष्ठियां पत्र की तरह हो गए थे, जिसमें यह वर्णन था कि हम उसमें क्या देखते हैं और किस प्रकार हम परमेश्वर को उसमें काम करते देखते हैं l जब हमने उस दैनिकी को उसे तेरह साल की उम्र में दिया, वह मंत्रमुग्ध हो गयी l उसे अपनी पहचान के मूल भाग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जानने का उपहार दिया गया था l
रोटी के रूप में कुछ सामान्य वस्तु को आशीष देने में, यीशु उसकी पहचान प्रकट कर रहा था l यह – समस्त सृष्टि के साथ – किस बात को प्रतिबिंबित करने के लिए बनाया गया था : परमेश्वर की महिमा l मैं मानना हूँ कि यीशु भौतिक संसार के भविष्य की ओर भी इशारा कर रहा था l सारी सृष्टि एक दिन परमेश्वर की महिमा से भर जाएगी l इसलिए रोटी पर आशीष देने में (मत्ती 26:26), यीशु सृष्टि के आरम्भ और नियति की ओर संकेत कर रहा था (रोमियों 8:21-22) l
हो सकता है कि आपकी कहानी का “आरम्भ” गड़बड़ हो l शायद आपको नहीं लगता कि भविष्य में बहुत कुछ है l लेकिन एक बड़ी कहानी है l यह एक ऐसे परमेश्वर की कहानी है जिसने आपको उद्देश्य पर और एक उद्देश्य के लिए बनाया, जिसने आप में आनंद लिया l यह एक ऐसे परमेश्वर की कहानी है जो आपको बचाने के लिए आया (मत्ती 26:28); एक परमेश्वर जिसने आपको नूतन बनाने के लिए और आपकी पहचान लौटने के लिए अपनी आत्मा आपमें डाल दी l यह एक ऐसे परमेश्वर की कहानी है जो आपको आशीष देना चाहता है l
साझा करने के लिए तोड़ा गया
एक कार दुर्घटना में पत्नी की मृत्यु के बाद वो और मैं प्रत्येक गुरुवार को मुलाकात करते थे l कभी-कभी उसके पास ऐसे प्रश्न होते थे जिसके उत्तर मौजूद नहीं हैं; कभी-कभी वह यादों के साथ होता था जिनके साथ वह फिर से जीना चाहता था l समय के साथ, उसने स्वीकार किया कि भले ही दुर्घटना हमारे टूटे संसार का एक परिणाम था, परमेश्वर इसके मध्य काम कर सकता था l कुछ साल बाद, उसने हमारे चर्च में दुःख और कैसे अच्छी तरह विलाप किया जा सकता है, के बारे में एक कक्षा को पढ़ाया l जल्द ही, वह नुक्सान का अनुभव कर रहे लोगों के लिए हमारा भरोसेमंद मार्गदर्शक बन गया l कभी-कभी जब हमें ऐसा महसूस नहीं होता है कि हमारे पास देने के लिए कुछ है तो परमेश्वर हमारे “अप्रयाप्त” को लेकर “पर्याप्त से अधिक” बना देता है l
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे लोगों को कुछ खाने के लिए दें l उन्होंने विरोध किया कि देने के लिए कुछ नहीं था; यीशु ने उनकी आपूर्ति को गुणित किया और फिर चेलों की ओर मुड़कर उन्हें वह रोटी दिया जैसे कि यह कहना हो, “तुम ही उन्हें खाने को दो” (लूका 9:13) l मसीह आश्चर्यक्रम करेगा, लेकिन वह अक्सर हमें शामिल करने का विकल्प चुनता है l
यीशु हमसे कहते है, “तुम खुद को और जो तुम्हारे पास है मेरे हाथों में सौंप दो l अपना टूटा हुआ जीवन l अपनी कहानी l अपनी दुर्बलता और अपनी विफलता, अपने पीड़ा और अपना दुःख l मेरे हाथों में सौंप दो l तुम आश्चर्यचकित होगे कि मैं इसके साथ क्या कर सकता हूँ l” यीशु जानता है कि हमारी शुन्यता से बाहर, वह पूर्णता ला सकता है l हमारी कमजोरी से, वह अपनी ताकत को प्रकट कर सकता है l