अन्दर की समस्या
कुछ साल पहले, एक कठफोड़वा(woodpecker) हमारे घर के उपरी बाहरी हिस्से में खटखटाने लगा l हमने सोचा कि समस्या केवल बाहरी थी l फिर एक दिन, मेरा बेटा और मैं सीढ़ी द्वारा अटारी में घुसे, जहाँ हमारे हैरत में पड़े चेहरों के सामना एक चिड़िया उड़ी l समस्या हमारे शक करने से कहीं अधिक बदतर थी : वह हमारे घर के अंदर थी l
जब यीशु यरूशलेम पहुँचा, तो भीड़ उम्मीद कर रही थी कि वह उनकी बाहरी समस्या को ठीक करने वाला कोई होगा – रोमी लोगों द्वारा उनका उत्पीड़न l वे उत्तेजित होकर चिल्लाते हुए बोले, “दाऊद के संतान को होशाना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना” (मत्ती 21:9) l यही वह क्षण था जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे; परमेश्वर द्वारा नियुक्त राजा आ चुका था l यदि परमेश्वर का चुना हुआ उद्धारकर्ता चीजों को सुधारना शुरू करने जा रहा था, तो क्या वह वहाँ के सभी गलत कामों से शुरू नहीं करेगा? लेकिन अधिकांश सुसमाचारों के वर्णन में, “विजय प्रवेश” के बाद यीशु द्वारा मंदिर के अन्दर से शोषक सर्राफों को बाहर निकलने का वर्णन है (पद.12-13) l वह घर की सफाई कर रहा था, और भीतर से बाहर l
जब हम राजा के रूप में यीशु का स्वागत करते हैं तो ऐसा ही होता है l वह चीजों को सही करने के लिए आता है - और वह हमारे साथ शुरू करता है l वह हमें अंदर की बुराई का सामना कराता है l यीशु हमारा राजा हमारा शर्तहीन समर्पण चाहता है ताकि हम उसकी शांति का अनुभव कर सकें l
अपनी आँखें उठाओ
बादल नीचे होने के कारण, क्षितिज को अवरुद्ध कर दिया और दृश्यता को केवल कुछ सौ गज तक सीमित कर दिया l मिनट लम्बे होते चले गए l मेरे मिजाज़ पर प्रभाव ध्यान देने योग्य था l लेकिन फिर, जैसे-जैसे दोपहर करीब आता गया, बादल फटने लगे, और मैंने इसे देखा : खूबसूरत पहाड़; मेरे शहर का सबसे अधिक पहचानने योग्य सीमा चिन्ह, हर तरफ पर्वत श्रृंखला l मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फूट पड़ी l मैंने विचार किया कि हमारे भौतिक दृष्टिकोण भी – हमारे देखने की वास्तविक रेखा - हमारी आध्यात्मिक दृष्टि को प्रभावित कर सकती है l और मुझे भजनकार की बात याद आयी, “मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा” (भजन 121:1) l कभी-कभी बस हमें अपनी आंखें थोड़ी ऊंची करने की जरूरत होती है!
भजनहार ने सोचा कि उसकी मदद कहाँ से आती है, शायद इसलिए कि इस्राएल के आसपास के पहाड़ मूर्तियों को समर्पित वेदियों से भरे पड़े थे और अक्सर लुटेरे वहां मौजूद रहते थे l या हो सकता था क्योंकि भजनकार ने पहाड़ियों के पार सिय्योन पर्वत की ओर देखा जहाँ मंदिर खड़ा था, और याद किया कि पृथ्वी और स्वर्ग का सृष्टिकर्ता वाचा का उसका परमेश्वर था (पद.2) l किसी भी तरह, आराधना करने के लिए हमें ऊपर देखना होता है l हमें अपनी परिस्थितियों के ऊपर, अपनी परेशानियों और आजमाइशों के ऊपर, हमारे समय के झूठे ईश्वरों की खोखली प्रतिज्ञाओं के ऊपर अपनी आँखें उठानी होती है l तब हम सृष्टिकर्ता और उद्धारक को देख सकते हैं, जो हमें नाम से पुकारता है l यह वही है जो आज और हमेशा के लिए “तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा” (पद.8) l
रात में एक गीत
सूर्य काफी देर पहले अस्त हो चूका था जब अचानक हमारी बिजली चली गयी थी l मैं अपने दो छोटे बच्चों के साथ घर पर थी, और यह पहली बार था जब वे बिजली कटौती का अनुभव कर रहे थे l यह पुष्टि करने के बाद कि उपयोगिता(utility) कंपनी को कटौती के बारे में पता था, मैंने कुछ मोमबत्तियाँ जलायीं, और बच्चे और मैंने रसोई में टिमटिमाती ज्योत के चारों ओर एक साथ बैठ गए l वे घबराए हुए और अशांत लग रहे थे, इसलिए हम गाना आरम्भ किये l जल्द ही उनके चेहरे से घबराहट के भाव मुस्कान में बदल गए l कभी-कभी हमारे अंधेरे क्षणों में हमें एक गीत की आवश्यकता होती है ।
भजन 103 प्रार्थना के तौर पर किया जाता था या उसे गाया गया था जब परमेश्वर के लोग निर्वासन से स्वदेश लौट आए थे जो बर्बादी की अवस्था में था l संकट के क्षण में, उन्हें गाने की जरूरत थी । लेकिन सिर्फ कोई गीत नहीं, उन्हें इस बारे में गाने की ज़रूरत थी कि परमेश्वर कौन है और वह क्या करता है । भजन 103 हमें यह याद रखने में भी मदद करता है कि वह दयालु, करुणामय, धैर्यवान और भरोसेमंद प्रेम से भरा है (पद.8) । और अगर हम विचार करते हैं कि क्या हमारे पाप का न्याय हमारे सिर पर है, तो भजन यह घोषणा करता है कि परमेश्वर क्रोधित नहीं है, उसने क्षमा कर दिया है, और उसे दया आती है । ये हमारे जीवन की अंधेरी रातों के दौरान गाने के लिए अच्छी चीजें हैं ।
हो सकता है कि आप अपने आप को ऐसी जगह ही देख रहे हों – अँधेरे और कठिन स्थान में, यह विचार करते हुए कि क्या वास्तव में परमेश्वर भला है, अपने विषय उसके प्रेम पर सवाल करते हुए l अगर ऐसा है, तो प्रार्थना करें और उसके लिए गाएं जो प्रेम से भरपूर है!
प्रार्थनापूर्ण कुश्ती
27 ई.पू. में, रोमन शासक ऑक्टेवियन अपनी शक्ति को त्यागने के लिए सीनेट/मंत्री सभा के सामने उपस्थित हुआ l उसने एक गृह युद्ध जीता था, और संसार के उस क्षेत्र का एकमात्र शासक बन गया था, और एक सम्राट की तरह काम कर रहा था । फिर भी वह जानता था कि ऐसी शक्ति को संदिग्ध रूप से देखा जाता था । इसलिए ऑक्टेवियन ने सीनेट के समक्ष अपनी शक्तियों को त्याग दिया, और केवल एक नियुक्त अधिकारी रहने की कसम खाई । उनकी प्रतिक्रिया? रोमी सीनेट ने शासक को एक नागरिक मुकुट पहनाकर और उसे रोमी लोगों का सेवक नाम देकर सम्मानित किया । उन्हें ऑगस्तुस नाम भी दिया गया था - "महान l"
पौलुस ने यीशु को खुद को खाली करने और सेवक रूप लेने के बारे में लिखा । ऑगस्तुस भी ऐसा ही करते दिखाई दिए । या क्या उसने वास्तव में ऐसा किया? ऑगस्तुस ने केवल दिखावा किया मानो वह अपनी शक्ति को त्याग रहा था लेकिन वह यह केवल अपने लाभ के लिए कर रहा था । यीशु "यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8) । रोमी क्रूस पर मौत अपमान और शर्म का सबसे बुरा रूप था ।
आज, यीशु ही प्राथमिक कारण है कि लोग "सेवक नेतृत्व" की प्रशंसा एक गुण के रूप में करते हैं l नम्रता ग्रीक(यूनानी) या रोमन गुण नहीं थी । क्योंकि यीशु हमारे लिए क्रूस पर मरा, वह सच्चा सेवक है । वह सच्चा उद्धारकर्ता है ।
मसीह हमें बचाने के लिए एक सेवक बन गया । उसने “अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया” (पद.7) ताकि हम वास्तव में कुछ महान प्राप्त कर सकें – उद्धार और अनन्त जीवन का उपहार ।
झूठा भरोसा
कुछ साल पहले, मेरे डॉक्टर ने मुझे मेरे स्वास्थ्य के बारे में एक कड़ी बात कही । मैं उनकी बातों से प्रभावित हुई और जिम जाना आरम्भ किया और अपने आहार को अनुकूलित करना शुरू कर दिया । समय के साथ, मेरा कोलेस्ट्रॉल और मेरा वजन दोनों कम हो गया, और मेरा आत्म-सम्मान बढ़ गया । लेकिन तब कुछ बहुत अच्छा नहीं हुआ : मैंने अन्य लोगों के आहार विकल्पों पर ध्यान देना और उनकी आलोचना करना, विभेद करना शुरू किया । क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि अक्सर जब हमें एक समंकन प्रणाली(scoring method) मिलती है जो हमें अच्छी तरह से वर्गीकृत करती है, तो हम इसका उपयोग खुद को ऊपर उठाने और दूसरों को नीचे रखने के लिए करते हैं । ऐसा लगता है कि यह एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है, जो खुद का पक्ष समर्थन(self-justification) के प्रयास में स्व-निर्मित मानकों से चिपका हुआ है - स्व-औचित्य और अपराध-प्रबंधन की प्रणाली ।
पौलुस ने फिलिप्पियों को इस तरह की बात करने के सम्बन्ध में चेतावनी दी । कुछ लोग धार्मिक कार्य निष्पादन या सांस्कृतिक अनुरूपता में अपना भरोसा रख रहे थे, और पौलुस ने उन्हें बताया कि उसके पास इस तरह की चीजों पर घमंड करने का अधिक कारण था : “यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उससे भी बढ़कर रख सकता हूँ” (3:4) । फिर भी पौलुस जानता था कि उसकी वंशावली और कार्य "मसीह को प्राप्त करने" (पद.8) की तुलना में "कूड़ा” था । केवल यीशु ही हमसे प्यार करता है जैसे हम हैं, हमें बचाता है, और हमें और अधिक अपने जैसे बनने की शक्ति देता है । कोई कमाई/उपार्जन की आवश्यकता नहीं है; कोई अंकों की गणना संभव नहीं है ।
शेखी बघारना अपने आप में बुरा है, लेकिन झूठे आत्मविश्वास पर आधारित घमंड दुखद है । सुसमाचार हमें गलत विश्वास/भरोसा से दूर करता है और एक उद्धारकर्ता के साथ सहभागिता में बुलाता है जो हमें प्यार करता है और हमारे लिए खुद को दिया है ।
धीमा लेकिन निश्चित
मैं एक पुराने दोस्त के पास गया जिसने मुझे बताया कि वह क्या कर रहा है, लेकिन मैं मानता हूं कि वह इतना अच्छा लग रहा रहा था पर सच नहीं l हालांकि, उस बातचीत के कुछ महीनों के भीतर, उसका बैंड(band) हर जगह था - रेडियो पर शीर्ष एकल स्थिति अंकित करने से लेकर टीवी विज्ञापनों के अंतर्गत एक हिट गाने के स्पंदित होने तक । प्रसिद्धि तक उसकी उन्नति त्वरित थी ।
हम महत्व और सफलता से ग्रस्त हो सकते हैं – बड़ा और नाटकीय, त्वरित और आकाशी l लेकिन सरसों के बीज और खमीर के दृष्टांत राज्य (पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य) के तरीके की तुलना छोटी, छिपी हुई, और महत्वहीन प्रतीत होने वाली चीजों से होती है जिनका काम धीमा और नियमित है ।
राज्य अपने राजा की तरह है । मसीह का मिशन उसके जीवन में एक बीज की तरह, पराकाष्ठा पर पहुंचा, जो जमीन में दफन किया गया; खमीर की तरह, आटे में छिपा हुआ l फिर भी वह जीवित हो उठा l जैसे कोई पेड़ मिटटी से बाहर निकल रहा हो, जैसे रोटी जब उसे गर्मी मिलती है l यीशु जी उठा l
हमें उसके मार्ग के अनुसार जीने के लिए आमंत्रित किया गया है, मार्ग जो कायम रहने वाला और सभी जगह फैलने वाला है l परीक्षाओं का सामना करके मामलों को अपने हाथों में लेते हुए, सामर्थ्य को पकड़ने का प्रयास करते हुए, उससे निकले परिणाम द्वारा संसार में अपने व्यवहार को न्यायसंगत ठहराना l परिणाम – “एक ऐसा पेड़ . . . कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा [करें]” (पद.32) और रोटी जो भोज का प्रबंध करती है – मसीह का कार्य होगा, हमारा नहीं l
अंत से शुरू करें
“आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?” मुझसे एक बच्चे के रूप में अक्सर यह सवाल पुछा जाता था l और जबाब हवा की तरह बदल जाते थे l एक चिकित्सक l दमकर कर्मी l एक मिशनरी l किसी आराधना का अगुआ l एक भौतिक विज्ञानी – या एक पसंदीदा टीवी चरित्र l अब, चार बच्चों के पिता के रूप में, मुझे लगता है कि उनसे ये सवाल पूछना कितना मुशिकल होगा l ऐसे समय होते हैं जब मैं कहना चाहता हूँ, “मुझे पता है कि तुम किसमें महान बनोगे!” माता-पिता कभी-कभी अपने वच्चों में अधिक देख सकते हैं, जो बच्चे स्वयं में नहीं देख सकते हैं l
फिलिप्पियों के विश्वासियों में पौलुस ने जो देखा, उससे यह समझ में आता है – वे जिनसे वह प्यार करता था और जिनके लिए प्रार्थना करता था (फिलिप्पियों 1:3) l वह अंत देख सकता था; वह जानता था कि जब सब कहा और किया जाएगा तो वे कैसे होंगे l बाइबल हमें कहानी के अंत का भव्य दर्शन देती है - पुनरुत्थान और सभी चीजों का नवीकरण (देखें 1 कुरिन्थियों 15 और प्रकाशितवाक्य 21) l लेकिन यह हमें यह भी बताती है कि कहानी कौन लिख रहा है l
पौलुस ने जेल से लिखे एक पत्र की शुरूआती पंक्तियों में, फिलिप्पी की कलीसिया को याद दिलाया कि “जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलिप्पियों 1:6) l यीशु ने काम शुरू किया और वही इसे पूरा करेगा l शब्द पूरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है – कहानी सिर्फ पूरी नहीं होती, क्योंकि परमेश्वर कुछ भी अधुरा नहीं छोड़ता है l
मित्रवत मीनपक्ष(Friendly Fin)
एक समुद्रीय जीवविज्ञानी तैर रही थी, जब 50,000 पौंड की व्हेल अचानक दिखाई दी और उसे अपने मीनपक्ष(fin) में छिपा लिया l महिला को लगा कि उसकी ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी है l लेकिन हलकों(circle) में धीरे-धीरे तैरने के बाद, व्हेल ने उसे जाने दिया l यह तब जब जीवविज्ञानी ने एक शार्क को वह क्षेत्र छोड़ते देखा l महिला का मानना है कि व्हेल उसकी रक्षा कर रही थी – उसे खतरे से बचाकर l
खतरे के संसार में, हमें दूसरों की देखभाल करने के लिए बुलाया जाता है l लेकिन आप अपने आप से पूछ सकते हैं, क्या मुझे वास्तव में किसी और के लिए जिम्मेदार होने की उम्मीद करनी चाहिये? या कैन के शब्दों में : “क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” (उत्पत्ति 4:9) l पुराने नियम का बाकी हिस्सा गरजनेवाली प्रतिक्रिया के साथ गूंज उठता है : हाँ! जैसे आदम को बगीचे की देखभाल करनी थी, वैसे ही कैन को हाबिल की देखभाल करनी थी l इस्राएल को कमज़ोर लोगों और ज़रुरतमंदों की देखभाल करनी थी l फिर भी उन्होंने विपरीत काम किया – लोगों का शोषण किया, गरीबों पर अत्याचार किया, और अपने पड़ोसियों से अपने समान प्रेम करने के आह्वान को त्याग दिया (यशायाह 3:14-15) l
फिर भी, कैन और हाबिल की कहानी में, परमेश्वर कैन को दूर भेज दिये जाने के बाद भी उस पर नज़र रखना जारी रखा (उत्पत्ति 4:15-16) l परमेश्वर ने कैन के लिए जो किया वह कैन को हाबिल के लिए करना चाहिये था l यह यीशु में परमेश्वर का एक सुन्दर पूर्वाभास है जो वह हमारे लिए करने वाला था l यीशु हमें अपने देखभाल में रखता है, और वह हमें जाकर दूसरों के लिए उसी तरह करने में समर्थ बनाता है l
दास सुनता है
अगर वायरलेस रेडियो चालू होता, तो उन्हें पता चल जाता कि टाइटैनिक डूब रहा है l एक अन्य जहाज के रेडियो ऑपरेटर सिरिल इवांस ने टाइटैनिक के रेडियो ऑपरेटर जैक फिलिप्स को एक संदेश भेजने की कोशिश की थी - उन्हें बताने के लिए कि वे बर्फ के एक बड़े तैरते टुकड़े का सामना कर चुके हैं l लेकिन टाइटैनिक का रेडियो ऑपरेटर यात्रियों के संदेशों को आगे भेजने में व्यस्त था और उसने उसे रुखाई से चुप रहने को कहा l इसलिए दूसरे ऑपरेटर ने अनिच्छा से अपने रेडियो को बंद कर दिया और सोने चला गया l दस मिनट बाद, टाइटैनिक ने बर्फ के एक चट्टान से टकराया l उनके संकट के संकेत के कोई उत्तर नहीं मिले क्योंकि कोई भी नहीं सुन रहा था l
1 शमूएल में हमने पढ़ा कि इस्राएल के याजक भ्रष्ट थे और राष्ट्र के खतरे में पड़ने के कारण उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और सुनने की शक्ति ख़त्म हो गए थे l “उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था, और दर्शन कम मिलता था” (1 शमूएल 3:1) l फिर भी परमेश्वर अपने लोगों को नहीं छोड़ने वाला था l उसने शमूएल नाम के एक युवा लड़के से बात करनी शुरू की, जिसका पालन पोषण याजक के घर में किया जा रहा था l शमूएल के नाम का अर्थ है “परमेश्वर सुनता है” – परमेश्वर द्वारा उसकी माँ की प्रार्थना सुनने का स्मारक l लेकिन शमूएल को सीखना था कि परमेश्वर को कैसे सुनना होगा l
“कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है l” (पद.10) l यह दास ही है जो सुनता है l हम भी सुनने और पवित्रशास्त्र में परमेश्वर द्वारा प्रगट बातों को माने l आइये हम उसको अपना जीवन समर्पित करें और दीन सेवकों की तरह व्यवहार करें - जिनके “रेडियो” चालू हैं l