एक सुबह हमारे छोटे बच्चों ने जल्दी उठने और खुद के लिए नाश्ता बनाने का निर्णय लिया। कठिन सप्ताह से थके हुए, उस शनिवार की सुबह मैं और मेरी पत्नी कम से कम 7 बजे तक सोने की कोशिश कर रहे थे। अचानक मैंने एक तेज आवाज सुनी! मैं बिस्तर पर से कूदा और बिखरा हुआ नीचे की ओर दौड़ा, और देखा, टूटा कटोरा,पूरे फर्श पर दलिया, और योना-हमारा पांच साल का-( अधिक गंदगी फैलाने वाला प्रतीत हो रहा था) फ़र्श पर झाडू लगाने की पूरी कोशिश कर रहा था। मेरे बच्चे भूखे थे, पर उन्होंने मदद न मांगने का निर्णय लिया था। निर्भरता के साथ पहुंचने के बजाय उन्होंने आत्मनिर्भरता को चुना, और परिणाम निश्चित रूप से एक अच्छा पकवान नहीं था।

मानवीय दृष्टि से, बच्चे निर्भरता से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए हैं। लेकिन परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते में, परिक्वता मतलब आत्मनिर्भरता से उस पर निर्भरता की ओर बढ़ना। प्रार्थना वह जगह है जहाँ हम ऐसे निर्भरता के तरीकों का अभ्यास करते हैं। जो यीशु ने अपने चेलों को सिखाया – और हम सबको जो उस पर विश्वास करने आते है —प्रार्थना करना सिखाया, हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। (मत्ती 6:11), वह एक निर्भरता की प्रार्थना सिखा रहे थे। रोटी जीविका, उद्धार और मार्गदर्शन के लिए एक रूपक है (vv.11-13)। हम इन सब के लिए और बहुत कुछ के लिए परमेश्वर पर निर्भर है। 

यीशु में कोई स्व-निर्मित विश्वासी नहीं हैं, और हम उसकी अनुग्रह से कभी स्नातक नहीं होंगे। हमारे पूरे जीवन में, जब हम “हमारे पिता ..जो स्वर्ग में है; ..” (v.9) से प्रार्थना करते हैं हम हमेशा अपने दिन की शुरुआत निर्भरता की दशा में होकर करें।