मैंने अपनी पत्नी को संगीत समारोह(concert) के टिकट के साथ उस आदाकार को सुनने के लिए जिसे वह हमेशा देखना चाहती थी आश्चर्यचकित कर दिया l प्रतिभाशाली गायक के साथ सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा था, और विन्यास समुद्र तल से 6,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर दो 300 फीट चट्टान की संरचनाओं के बीच निर्मित एक खुली रंगभूमि(open-air amphitheater) थी l ऑर्केस्ट्रा ने अनेक अति पसंदीदा उत्कृष्ट गाने और लोक धुन बजाए l उनका अंतिम प्रस्तुति उत्कृष्ट गीत “फज़ल अजीब(Amazing Grace)” का नूतन मिरुपण था l खूबसूरत, स्वर योजन विन्यास ने हमें अचंभित कर दिया!

समरसता(harmony) के बारे में कुछ खूबसूरत है──व्यक्तिगत साजों का इस प्रकार बजना जो एक बड़ा और अधिक परतदार ध्वनि परिदृश्य उत्पन्न करता है l प्रेरित पौलुस ने समरसता (harmony) की ओर इंगित किया जब उसने फिलिप्पियों को “एक, मन,” “एक ही प्रेम,” और “एक ही चित्त और एक मनसा” रखने के लिए कहा (फिलिप्पियों 2:2) l वह उन्हें एक जैसा बनने को नहीं कह रहा था लेकिन नम्र स्वभाव और यीशु के आत्म-बलिदानी प्रेम को गले लगाने के लिए कह रहा था l सुसमाचार, जिस तरह पौलुस जानता और सिखाता था, हमारे विभेद को मिटाता नहीं है, लेकिन वह हमारे मतभेदों/विभाजनों को समाप्त कर सकता है l 

यह भी रुचिकर है कि अनेक विद्वान् यहाँ पर (पद.6-11) पौलुस के शब्दों को एक प्राचीन गीत के आरम्भ के रूप मानते हैं l मुद्दा यह है : जब हम पवित्र आत्मा को हमारे विशिष्ट जीवनों और सन्दर्भों में होकर काम करने देते हैं, जो हमें और अधिक यीशु के समान बनाता है, मिलकर हम एक समरसता(harmony) बन जाते हैं जो मसीह के नम्र प्रेम के साथ गुंजायमान होता है l