कूड़ेदान में अंगूठी
कॉलेज में, एक सुबह जब मैं उठा तो अपने रूममेट, कैरोल को घबराया हुआ पाया l उसकी अंगूठी खो गयी थी l हमने सभी जगह खोजा l अगली सुबह हम कूड़ादान में खोज रहे थे l
मैंने कूड़े का एक बैग खोला l “तुम तो इसे खोजने में कितने लवलीन हो!”
“मैं दो सौ डॉलर की अंगूठी खोना नहीं चाहती हूँ!” उसने कहा l
कैरोल की दृढ़ता मुझे स्वर्ग के विषय यीशु का दृष्टान्त याद दिलाता है, जो “खेत में छिपे हुए धन के समान है l जब किसी मनुष्य ने पाया और छिपा दिया, और मारे आनंद के जाकर अपना सब कुछ बेच दिया और उस खेत को मोल ले लिया” (मत्ती 13:44) l कुछ वस्तुओं को खोजने में मेहनत करना फायदेमंद है l
सम्पूर्ण बाइबल में, परमेश्वर प्रतिज्ञा देता है कि उसको खोजनेवाले उसे पाते हैं l व्यवस्थाविवरण में, परमेश्वर इस्राएलियों से कहता है कि वे उसे पाएंगे जब वे अपने पापों से पश्चाताप करके अपने सम्पूर्ण हृदय से उसे खोजेंगे (4:28-29) l 2 इतिहास में, राजा आसा ने इसी प्रकार की प्रतिज्ञा से प्रोत्साहन प्राप्त किया (15:2) l और यिर्मयाह में, परमेश्वर ने यह कहकर कि वह उन्हें दासत्व से वापस लाएगा, निर्वासितों को उसी तरह की प्रतिज्ञा दी (29:13-14) l
यदि हम उसके वचन, और आराधना में, और अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर को खोजते हैं, हम उसको पा लेंगे l समय के साथ, हम उसे गहराई से जानने पाएंगे l यह उस क्षण से भी बेहतर होगा जब कैरोल ने कूड़ेदान के अन्दर से अपनी अंगूठी खोज ली l
परमेश्वर के मार्गदर्शन का प्रतिउत्तर
अगस्त 2015 में, जब मैं अपने घर से दो घंटे की दूरी पर एक विश्वविद्यालय में पढ़ने की तैयारी कर रही थी, मैंने महसूस किया कि पढ़ाई समाप्त करने के बाद मैं वापस अपने घर नहीं लौट पाऊंगी l मेरा मस्तिष्क बहुत तीव्रता से विचार करने लगा l मैं अपना घर कैसे छोड़ सकती हूँ? मेरा परिवार? मेरी कलीसिया? क्या होगा यदि बाद में परमेश्वर मुझे किसी और राज्य अथवा देश में जाने को कहता है?
मूसा की तरह ही, जब परमेश्वर ने उसे “फ़िरौन के पास [जाने को कहा] कि [वह] इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले [आए] (निर्गमन 3:10), मैं डर भी गयी l मैं अपने आराम के स्थान को नहीं छोड़ना चाहती थी l अवश्य, मूसा ने आज्ञा मानकर परमेश्वर का अनुसरण किया, किन्तु इसके पूर्व उसके पास अनेक प्रश्न थे और निवेदन भी कि उसके बदले किसी और को भेजा जाए (पद.11-13; 4:13) l
मूसा के उदाहरण से, हम महसूस कर सकते हैं कि स्पष्ट बुलाहट मिलने पर हमें क्या नहीं करना चाहिए l इसके बदले हमें शिष्यों के समान बनने का प्रयास करना चाहिए l जब यीशु ने उन्हें बुलाया, उन्होंने सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए (मत्ती 4:20-22; लुका 5:28) l भय स्वाभाविक है, किन्तु हम परमेश्वर की योजना पर भरोसा कर सकते हैं l
आज भी घर से बहुत दूर रहना कठिन है l किन्तु जब मैं परमेश्वर को निरंतर खोजती रहती हूँ, वह मेरे लिए द्वार खोलता है और मुझे निश्चय देता है कि मैं सही स्थान पर हूँ l
जब हमें हमारे आराम के स्थान से बाहर निकाला जाता है, हम या तो मूसा की तरह अनिच्छुक होंगे, अथवा शिष्यों की तरह इच्छुक, जिन्होंने यीशु का अनुसरण हर जगह किया l कभी-कभी इसका अर्थ अपने आरामदायक जीवन को छोड़कर हज़ारों मील दूर रहना होता है l लेकिन चाहे जितनी दूर भी हो, यीशु के पीछे चलना सार्थक है l
क्या आप तैयार किये जा रहे हैं?
हाई स्कूल में पढ़ते समय लगभग दो वर्षों तक एक रेस्टोरेंट में काम करने के कुछ अंश कठिन थे l ग्राहक क्रोधित होते थे जबकि मैं सैंडविच में चीज़ के लिए खेदित होती थी जो मैंने नहीं बनाया था l यह काम छोड़कर मैंने एक विश्वविद्यालय में कंप्यूटर कार्य हेतु आवेदन डाली l नियोजक मेरे कंप्यूटर कौशल से अधिक मेरे फ़ास्ट-फ़ूड अनुभव में रूचि ले रहे थे l वे जानना चाहते थे कि मुझे लोगों के साथ बर्ताव करना आता था l अप्रिय स्थितियों में मेरे अनुभव ने मुझे एक बेहतर कार्य के लिए तैयार किया!
युवा दाऊद एक अनुभव में निरंतर दृढ़ रहा जिसे हम बखूबी अरुचिकर कह सकते हैं l गोलियत से लड़ने हेतु इस्राएलियों को एक व्यक्ति चाहिए था l केवल दाऊद आगे आया l राजा शाऊल उसे लड़ने को भेजने में हिचकिचाया, किन्तु दाऊद ने कहा कि एक चरवाहा होकर उसने अपनी भेड़ों के लिए सिंह और भालू से लड़ा था (1 शमूएल 17:34-36) l वह दृढ़तापूर्वक बोला, “यहोवा जिसने मुझे सिंह और भालू दोनों ... से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती ... से भी बचाएगा” (पद.37) l
चरवाहा होकर दाऊद ने आदर नहीं कमाया, किन्तु इससे वह गोलियत से लड़ सका और आख़िरकार इस्राएल का महानतम राजा बना l हम कठिन स्थितियों में हो सकते हैं, किन्तु इनके द्वारा परमेश्वर हमें कुछ बड़ी बात के लिए तैयार कर रहा होगा!