मुस्कराने का कारण
कार्यस्थल में उत्साहवर्धक शब्द अर्थपूर्ण होते हैं l कार्यकर्ताओं का परस्पर संवाद ग्राहक की संतुष्टि, कंपनी का लाभ, और सहकर्मी के मुल्यांकन को प्रभावित करता है l अध्ययन अनुसार सबसे प्रभावशाली कार्य समूहों के सदस्य एक दूसरे को अस्वीकृति, असहमति, अथवा कटाक्ष के बदले छः गुना अधिक समर्थन देते हैं l
पौलुस ने अनुभव से संबंधों और परिणामों को आकार देने में शब्दों के महत्त्व को सीखा l दमिश्क के मार्ग पर मसीह से मुलाकात से पहले, उसके शब्द और कार्य यीशु के अनुयायियों को आतंकित करते थे l किन्तु थिस्सलुनीकियों को पत्री लिखने तक, उसके हृदय में परमेश्वर के काम से वह महान उत्साहित करनेवाला बन गया था l अब वह अपने नमूने से अपने पाठकों को परस्पर उत्साहित करने का आग्रह किया l चापलूसी से सावधान रहते हुए, उसने दूसरों को स्वीकार करने और मसीह की आत्मा को प्रतिबिंबित करना दिखाया l
इस प्रक्रिया में, पौलुस अपने पाठकों को उत्साहवर्धन का श्रोत बताता है l उसने पाया कि अपने को परमेश्वर को सौंपने से, जो हमसे प्रयाप्त प्रेम करके क्रूस पर मरकर, हमें सुख देने, क्षमा करने और प्रेरित करने, और परस्पर प्रेम भरी चुनौती देने का कारण देता है (1 थिस्स. 5:10-11) l
पौलुस हमें बताता है कि परस्पर उत्साहित करना परस्पर परमेश्वर का धीरज और भलाई का स्वाद चखने का एक मार्ग है l
अन्तरिक्ष में अकेला
अपोलो 15 के अन्तरिक्ष यात्री एल वोर्डन चाँद के ऊपर का अनुभव जानता था l क्योंकि तीन दिन पहले 1971 में, वह अकेले अपने अन्तरिक्ष यान (कमांड मोड्यूल) Endeavor में गया, जबकि दो सहयोगी हजारों मील नीचे चाँद की धरती पर कार्यरत रहे l उसके एकलौते मित्र अनगिनित तारे उसे ज्योति की चादर में लपेटे हुए थे l
जब सूर्यास्त बाद पुराने नियम के चरित्र याकूब ने अपने घर से दूर अकेले रात बिताई, वह भी अकेला था, किन्तु एक भिन्न कारण से l वह अपने सगे भाई से दूर भाग रहा था-जो उसे परिवार की आशीष का अधिकार जो स्वाभाविक तौर से पहलौठे का होता था, छीनने के कारण उसको मारना चाहता था l फिर भी नींद में, याकूब ने सपने में स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक सीढ़ी देखी l उसने स्वर्गदूतों को चढ़ते उतरते देखते हुए परमेश्वर को उसे प्रतिज्ञा देते सुना कि वह उसके साथ रहकर उसके बच्चों द्वारा समस्त संसार को आशीषित करेगा l याकूब जागकर बोला, “निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को नहीं जानता था” (उत्पत्ति 28:16) l
अपने धोखे के कारण याकूब अकेला था l फिर भी अपने वास्तविक पराजय, और रात की कालिमा में, वह उसकी उपस्थिति में था जिसके पास हमेशा हमारे लिए दूर तक की बेहतर योजना है l हमारी कल्पना से निकट स्वर्ग है और “याकूब का परमेश्वर” हमारे साथ है l
कोई स्पर्श के योग्य
नियमित आने-जाने वालों ने एक तनावपूर्ण क्षण में एक मार्मिक निर्णय के साक्षी बने l एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला ने हाथ बढ़ाकर कोमलता से एक युवक को स्पर्श किया जिसकी तेज़ आवाज़ और अशांत करनेवाले शब्द दूसरे यात्रियों के लिए चौंकानेवाले थे l महिला की दयालुता ने उस व्यक्ति को शांत कर दिया जो रोते हुए ट्रेन के फर्श पर बैठ गया l उसने कहा, “दादी, धन्यवाद,” और उठकर चला गया l महिला ने बाद में बताया कि वह भयभीत थी l किन्तु वह बोली, “मैं एक माँ हूँ और उसे किसी की स्पर्श की ज़रूरत थी l” जबकि बेहतर निर्णय उसे दूरी बनाए रखने का कारण देती, उसने प्रेम का जोखिम उठाया l
यीशु इस तरह की करुणा समझता था l उसने हतोत्साहित देखनेवालों का पक्ष नहीं लिया जब एक परेशान, कुष्ठ लोगी चंगा होने उसके निकट आया l वह अन्य धार्मिक अगुवों की तरह असहाय नहीं था-लोग जो उस कुष्ठ रोगी को गाँव में कुष्ठ रोग लाने के लिए केवल उसकी निंदा करते (लेव्य. 13:45-46) l इसके बदले, यीशु ने उसे छूकर चंगा किया जिसे शायद वर्षों से कोई नहीं छूआ था l
धन्यवाद हो, यीशु उस व्यक्ति के लिए और हमारे लिए, वह देने आया जो कोई भी व्यवस्था नहीं दे सकता था-उसके हाथ और हृदय का स्पर्श l
पूर्व का पश्चिम से मिलन
जब दक्षिण-पूर्व एशिया के विद्यार्थियों की मुलाकात उत्तर अमेरिका के एक शिक्षक से हुई, अतिथि शिक्षक ने एक सबक सीखा l कक्षा को उनका प्रथम बहु-चुनाव परीक्षा देने के बाद, उसको आश्चर्य हुआ कि अनेक प्रश्न अनुत्तरित थे l जाँचा हुआ प्रश्न पत्र वापस करते हुए, उसने सलाह दी कि, अगली बार, उत्तर छोड़ने की जगह उनको अनुमान लगाना चाहिए l चकित होकर एक विद्यार्थी अपना हाथ खड़ा करके पूछा, “यदि उत्तर सही रहा तो? मैं यह मानूंगा कि मैं उत्तर जानता था जबकि यह सच नहीं है l” विद्यार्थी और शिक्षक के पास भिन्न दृष्टिकोण और तरीका था l
नया नियम काल में, पूर्व और पश्चिम की तरह ही मसीह के पास आनेवाले यहूदी और गैर यहूदी के दृष्टिकोण भिन्न थे l जल्द ही वे उपासना के दिन और मसीह के अनुयायी को क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए जैसे विषयों पर असहमत थे l पौलुस ने उनसे एक ख़ास तथ्य याद रखने का आग्रह किया : हममें से कोई भी किसी पर दोष नहीं लगा सकता l
सह विश्वासियों के साथ समस्वरता के लिए, परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम जाने कि सब उसके वचनानुसार और अपने विवेक से कार्य करने के लिए प्रभु के सामने जिम्मेदार हैं l हालाँकि, केवल वो ही हमारे हृदयों के आचरण जांच सकता है (रोमियों 14:4-7) l
अप्रत्याशित साक्षात्कार
लन्दन के भीड़ भरी एक स्थानीय ट्रेन में, सुबह के एक यात्री ने उसके रास्ते में आनेवाले एक सहयात्री का अपमान किया l यह एक ऐसा खेदजनक, और विचारहीन क्षण होता है जिसका आमतौर पर हल नहीं होता l किन्तु उसी दिन बाद में, अनपेक्षित हुआ l एक व्यवसायिक मेनेजर ने अपने सोशल मीडिया मित्रों को जल्दी से एक सन्देश भेजा, “बताओ कौन नौकरी के साक्षात्कार के लिए आया है l” जब उसका स्पष्टीकरण इन्टरनेट पर आया, संसार के लोग चौंककर मुस्कराए l कल्पना करें कि नौकरी साक्षात्कार में पहुंचकर आपका अभिवादन करनेवाला वही है जिसने सुबह आपको धक्का देकर आपका अनादर किया था l
शाऊल का सामना अनपेक्षित व्यक्ति से होता है l पंथ नाम के एक समूह के विरुद्ध प्रबल होते समय (प्रेरितों 9:1-2), एक तेज रोशनी ने उसको रोक दिया l तब एक आवाज़ आयी, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” (पद.4) l शाऊल ने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” बोलनेवाले ने उत्तर दिया, “मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है” (26:15) l
वर्षों पूर्व यीशु ने कहा था कि भूखों, प्यासों, अनजान, और बंदियों के साथ हमारा व्यवहार उसके साथ हमारे सम्बन्ध को प्रभावित करता है (मत्ती 25:35-36) l कौन इसकी कल्पना कर सकता है कि किसी के हमें अपमानित करने अथवा जब हम दूसरों की सहायता करते अथवा उसे चोट पहुंचाते हैं, हमसे प्रेम करनेवाला इसे व्यक्तिगत लेता है?
घर
स्टीवन, एक युवा देशविहीन अफ़्रीकी शरणार्थी है l उसकी सोच है कि वह मोज़ाम्बिक अथवा जिम्बाब्वे में जन्म लिया l किन्तु उसने अपने पिता को कभी नहीं देखा और अपनी माँ को खो दिया जो गृह युद्ध के कारण चलते फिरते विक्रेता की तरह एक देश से दूसरे देश में घूमती रही l पहचान-पत्र के बिना और अपना जन्मस्थान प्रमाणित नहीं करने के कारण, स्टीवन ब्रिटिश पुलिस थाने में स्वेच्छा से गिरफ्तार होकर अधिकार और नागरिकता के बगैर सड़क पर रहने की अपेक्षा जेल में रहना बेहतर समझा l
पौलुस के इफिसियों को लिखते समय किसी देश का न होना उसकी सोच में थी l उसके गैर-यहूदी पाठक विदेशी और मुसाफिर का जीवन जानते थे (2:12) l मसीह में जीवन और आशा मिलने पर ही (1:13) उन्होंने स्वर्गिक राज्य में होने का मर्म जाना था (मत्ती 5:3) l मसीह में, उन्होंने जाना था कि यीशु जिस पिता को प्रगट करने आया था उसको जानना और उसकी देखभाल का अर्थ क्या है (मत्ती 6:31-33) l
हालाँकि, पौलुस ने जाना कि, बीती बातों के धूमिल होने पर, उसका एक अल्प स्मरण हमारे भूलने का कारण बन सकती है कि, जबकि आशा नया मानदंड है, निराशा पुरानी सच्चाई है l
प्रभु हमें सुरक्षित जीवन जीने में सहायता करे-कि हर दिन हम जाने कि यीशु मसीह में विश्वास के कारण हम उसके परिवार के हैं और उसमें हमारा घर होने से हमारे अधिकार और लाभ क्या हैं l
अदृश्यता की अंगूठी
यूनानी दार्शनिक प्लेटो (c. 427-c. 348 ई.पु.) मानव हृदय के अँधेरे भाग पर ज्योति चमकाने का काल्पनिक तरीका खोज लिया था l उसने एक चरवाहे की कहानी बतायी जिसे अचानक भूमि की गहराई में दबी एक सोने की अंगूठी मिली l एक दिन भूकंप से पहाड़ के निकट एक कब्र खुल गई और अंगूठी चरवाहे को दिखाई दी l संयोग से उसे यह भी ज्ञात हुआ कि उस जादुई अंगूठी को पहननेवाला इच्छा से अदृश्य हो सकता था l अदृश्यता पर विचार करते हुए, प्लेटो ने एक प्रश्न किया : यदि लोग को पकड़े जाने और दंड पाने का भय नहीं होता, क्या वे गलत करने से परहेज करते?
यूहन्ना के सुसमाचार में यीशु इस विचार को एक भिन्न दिशा में ले जाता है l वहां पर, अच्छा चरवाहा, यीशु, ऐसे हृदयों की बात करता है जो अँधेरे की आड़ में अपने कार्यों को छिपाते हैं (यूहन्ना 3:19-20) l वह हमारे छिपाने की इच्छा पर हमारा ध्यान हमें दोषी ठहराने के लिए नहीं करता है, किन्तु उसके द्वारा उद्धार पाने के लिए (पद.17) l हृदयों का चरवाहा होकर, वह हमारे मानव स्वभाव के सबसे ख़राब हिस्से को भी प्रगट करके हमें बताता है कि परमेश्वर हमसे कितना अधिक प्रेम करता है (पद.16) l
परमेश्वर अपनी करुणा में हमें अंधकार से निकलकर ज्योति में उसका अनुसरण करने के लिए आमंत्रित करता है l
नदी किनारे का वृक्ष
यह वह वृक्ष था जिससे लोग ईर्ष्या करते l नदी के सामने भूमि में बढ़ता हुआ, इसे मौसम की सूचना, विध्वंशकारी तापमान, अथवा अनिश्चित भविष्य की चिंता नहीं थी l उसे नदी द्वारा पोषण और ठंडक मिलती थी, वह सूर्य की ओर अपनी टहनियाँ फैलाए और भूमि को जड़ों से पकड़े हुए, अपनी पत्तियों द्वारा हवा को स्वच्छ करते हुए, और सूर्य से ज़रुरतमंदों को छाया देकर अपने दिन बिताता था l
इसके विपरीत, नबी यिर्मयाह एक अधमरे पेड़ की ओर इशारा करता है (यिर्म. 17:6) l जब वर्षा रूक गयी और तपन ने धरती को धुल में बदल दिया, अधमरा पेड़ मुरझा कर, किसी को भी छाया और फल न दे सका l
नबी तंदुरुस्त वृक्ष की तुलना एक अधमरे पेड़ से क्यों करता है? मिस्र के दास स्थलों से आश्चर्यजनक छुटकारे के समय के बाद क्या हुआ, नबी लोगों को याद दिलाना चाहता था l निर्जन प्रदेश में चालीस वर्षों तक, उन्होंने नदी के निकट लगे वृक्ष की तरह जीवन बिताया (2:4-6) l फिर भी अपने प्रतिज्ञात देश की समृद्धि में वे अपनी कहानी भूल गए; उन्होंने खुद पर और अपने बनाए देवताओं पर भरोसा किया (पद.7-8), और मदद के लिए मिस्र जाने की लालसा की (42:14) l
इसलिए यिर्मयाह के द्वारा परमेश्वर, भुलक्कड़ इस्राएलियों और हमसे प्रेमपूर्ण अपील करता है कि हम उस पर आशा और भरोसा रखकर उस अधमरे पेड़ की तरह नहीं वरन् तंदुरुस्त वृक्ष की तरह बने l
सहायक
जून 1962 में फ्लोरिडा के एक कैदखाने से, क्लेरेंस अर्ल गिडियन ने अपने एक अपराध के लिए जो उसने नहीं किया था अमरीकी सर्वोच्च न्यायलय से पुनःविचार करने का आग्रह किया और वह वकील भी करने में असमर्थ है l
एक वर्ष के भीतर, गिडियन वी. वेनराईट के ऐतिहासिक केस में, सर्वोच्च न्यायलय ने निर्णय सुनाया कि अपने बल पर अपना बचाव करने में अयोग्य लोगों को सरकार द्वारा एक वकील दिया जाए l इसके बाद न्यायलय द्वारा नियुक्त वकील की मदद से, क्लेरेंस गिडियन के केस पर पुनः विचार किया गया और वह दोषमुक्त हुआ l
किन्तु यदि हम निर्दोष नहीं हैं तो? प्रेरित पौलुस के अनुसार, हम सब दोषी हैं l किन्तु स्वर्ग का न्यायलय हमारा और हमारी आत्मा के बचाव हेतु परमेश्वर की कीमत पर एक वकील देता है (1 यूहन्ना 2:2) l अपने पिता की ओर से, यीशु एक स्वतंत्रता देता है जिसे कैदी भी किसी प्रकार की बाहरी स्थिति के अनुभव से बेहतर बताते हैं l यह हृदय और मन की स्वतंत्रता है l
यीशु हमारे द्वारा या हमारे विरुद्ध किए गए अन्याय के लिए दुःख उठाने में हम सब का प्रतिनिधि हो सकता है l वह सर्वोच्च अधिकार से करुणा, क्षमा, और विश्राम के लिए हमारे प्रत्येक निवेदन का उत्तर देता है l
हमारा सहायक, यीशु, खोई हुई आशा, भय, अथवा पछतावा के कैद को अपनी उपस्थिति का स्थान बना सकता है l