गाने का कारण
गीत गाना हमारे मस्तिष्क को बदलता है! अध्ययन अनुसार, गीत गाने से शरीर से होर्मोंस निकलकर चिंता और तनाव कम करते हैं l समूहगान से दिल की धड़कनें वास्तव में एक दूसरे के साथ एक ही समय में सहमत होती हैं l
प्रेरित पौलुस कलीसिया को आपस में भजन, स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाने को उत्साहित करता है (इफि.5:19) l और बाइबिल “स्तुति करें” पचास से अधिक बार दोहराती है l
2 इतिहास 20 में, हम परमेश्वर के लोगों को गीत गाकर परमेश्वर में भरोसा जताते हुए युद्ध में जाने की कहानी पढ़ते हैं l शत्रु के यहूदा की ओर बढ़ने पर, राजा यहोशापात ने घबराकर, प्रार्थना में समाज की गहन अगुवाई की l उन्होंने उपवास करके प्रार्थना की, “हमें कुछ नहीं सूझता ... परन्तु हमारी आँखें तेरी ओर लगी हैं” (पद.12) l अगले दिन, उनके आगे उनके सबसे खुंखार सैनिक नहीं, किन्तु उनकी संगीत मण्डली थी l उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर भरोसा करके युद्ध बिना छुटकारा पाया (17) l
जब वे गाते हुए लड़ाई करने चले, शत्रु आपस में लड़ने लगे! परमेश्वर के लोगों का युद्ध भूमि में पहुँचने से पूर्व, युद्ध समाप्त हो गया l विश्वास से अज्ञात की ओर चलते और स्तुति करते हुए अपने लोगों को परमेश्वर ने बचाया l
परमेश्वर हमें अच्छे कारणों से स्तुति हेतु उत्साहित करता है l हम युद्ध में जाएँ अथवा नहीं, परमेश्वर की स्तुति हमारे विचार, हृदय और हमारे जीवनों को बदलता है l
आँखें झपकाकर परमेश्वर के विषय विचार करें
मेरे मित्र राईली ने कहा, “परमेश्वर पलक समान है” और मैंने आश्चर्य से पलक झपकाया l उसके कहने का क्या अर्थ था?
मुझे और बताइये,” मैं कहा l मिलकर, हमदोनों परमेश्वर के आश्चर्यजनक चित्रों का अध्ययन कर रहे थे, जैसे परमेश्वर एक जच्चा (यशा. 42:14) या मधुमक्खी पालक की तरह(7:18), किन्तु यह तो मेरे लिए नयी बात थी l राईली ने व्यवस्थाविवरण 32 की ओर इंगित की, जहाँ मूसा लोगों की देखभाल करने में परमेश्वर के तरीके की प्रशंसा करता है l पद 10 कहता है कि परमेश्वर अपने लोगों के चारों ओर रहकर उनकी रक्षा करता है, और अपनी आँख की पुतली के सामान उनकी सुधि लेता है l
और पुतली की रक्षा कौन करता है? जी हाँ, पलक! परमेश्वर पलक की तरह है, जो सहजज्ञान से कोमल आँख की सुरक्षा करता है l पलक आख को खतरे से बचाता है, और गंदगी और धूल को दूर रखता है l यह पसीने को दूर रखकर, आँख के गोले को चिकना रखता है l यह बंद होकर आँख को आराम देता है l
परमेश्वर को पलक की तरह देखते हुए, मैंने परमेश्वर को उन सभी अलंकारों के लिए धन्यवाद दिया जो उसने हमें उसके प्रेम को समझने के लिए दिये हैं l हमारी आँखों के रात में बंद होने और सूबह खुलने पर, हम हमारे प्रति सुरक्षा और देखभाल पर विचारकार परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं l
इंतज़ार का बोझ
पिछले कुछ वर्षों में, मेरे परिवार के दो लोगों ने घातक बिमारियों का सामना किया l मेरे लिए उनके इलाज में सहयोग का कठिनतम भाग निरंतर अनिश्चितता रही है l मैं हमेशा डॉक्टर के निश्चित उत्तर के विषय निराश रहा हूँ, किन्तु शायद ही स्थितियाँ रही हों l स्पष्टता की जगह, हमें ठहरने को कहा जाता है l
अनिश्चितता का बोझ उठाना कठिन है, सर्वदा अगली जांच के लिए उत्सुक l क्या हमें मृत्यु द्वारा अलगाव से पूर्व सप्ताह, महिना, साल, या दशक का समय मिलेगा? किन्तु बिमारी और इलाज के बावजूद, एक दिन हमारी मृत्यु होगी-कैंसर जैसी बातें हमारी नश्वरता को हमारे मस्तिष्क के रिक्त स्थानों में छिपाने की जगह हमारे सामने ला देती हैं l
हमारी नश्वरता की ऐसी गंभीर ताकीद से सामना होने पर, मैं मूसा की प्रार्थना करने लगता हूँ l भजन 90 हमसे कहता है कि यद्यपि हमारे जीवन घास के समान मुर्झा और सुख जाती है(पद.5-8), हमारे पास परमेश्वर के साथ अनंत निवास है(पद.1) l मूसा के समान, हम बुद्धिमान निर्णय लेने हेतु, परमेश्वर से अपने दिन गिनने की (पद.12), और अपने कार्यों द्वारा अपने संचिप्त जीवनों को उसके सामने महत्वपूर्ण बनाने हेतु समझ मांगे(पद.17) l अनन्तः, यह भजन ताकीद देता है कि डॉक्टर के इलाज पर हमारी आशा नहीं किन्तु “अनादिकाल से अनंतकाल तक” के परमेश्वर पर है l
हमारे लिए त्यागा गया
क्या मित्र का निकट होना दर्द को सहनीय बनाता है? वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने यह देखने के लिए इस पर दिलचस्प अध्ययन किया कि दर्द की सम्भावना में मस्तिष्क कैसी प्रतिक्रिया करता है, और क्या दर्द के भय का खुद सामना करने पर, एक अपरिचित का हाथ थामने पर, अथवा एक घनिष्ट मित्र का हाथ थामने पर भिन्न क्रिया करता है l
दर्जनों प्रयोग पश्चात शोधकर्त्ताओं को अनुकूल परिणाम मिले l आनेवाले दहशत में अकेला व्यक्ति अथवा किसी अपरिचित का हाथ थामे व्यक्ति में, मस्तिष्क का खतरा भापने वाला भाग सजग हो गया l किन्तु भरोसेमंद व्यक्ति का हाथ थामने पर, मस्तिष्क शांत हो गया l एक मित्र की उपस्थिति का सुख पीड़ा को सहनीय बना दिया l
गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना करते समय यीशु को दिलासा चाहिए था l उसे मालुम था वह धोखा, गिरफ़्तारी, और मृत्यु सहनेवाला था l उसने अपने करीबी मित्रों से यह कहकर कि “मेरा जी बहुत उदास है” (मत्ती 26:38) उसके निकट रहकर प्रार्थना करने को कहा l किन्तु पतरस, याकूब, और यूहन्ना सोते रहे l
यीशु ने बगीचे में दिलासा के बगैर अकेले पीड़ा सही l किन्तु उसके पीड़ा सहने से, हम आश्वास्त हैं कि परमेश्वर हमें न छोड़ेगा और न त्यागेगा (इब्रा. 13:5) l हम परमेश्वर के प्रेम से अपने को कभी भी विरक्त नहीं पाएंगे (रोमि.8:39) l उसके सहचारिता से हमारे अन्दर और सहन शक्ति पैदा होती है l
अग्नि परीक्षा
पिछली सर्दियों में कोलोराडो में एक प्राकृतिक अजायबघर घूमते समय, मैंने सफ़ेद पीपल[Aspen] वृक्ष की कुछ अनूठी बातें सीखीं l छरहरे, सफ़ेद धड़ वाले सफ़ेद पीपल का एक उपवन एक बीज से उग सकता है और सबकी जड़ प्रणाली एक ही हो सकती है l इनसे वृक्ष उगे अथवा नहीं, ये हज़ारों वर्षों तक छायादार जंगल में भूमि के नीचे शांत रहकर अग्नि, बाढ़, अथवा हिमस्खलन द्वारा अपने लिए जगह साफ़ होने का इंतज़ार करते हैं l प्राकृतिक आपदा से भूमि साफ़ होने के बाद, आखिरकार सूर्य की रोशनी से सफ़ेद पीपल की जड़ों से अंकुर निकलकर वृक्ष बनते हैं l
प्राकृतिक आपदा का विनाश ही सफ़ेद पीपल के लिए नया जन्म संभव करता है l याकूब लिखता है कि कठिनाई ही हमारे विश्वास की उन्नत्ति करता है l “जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इसको पुरे आनंद की बात समझो, यह जानकार कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है l पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ, और तुम में किसी बात की घटी न रहे” (याकूब 1:2-4) l
परीक्षाओं में आनंद कठिन है, किन्तु हम इस वास्तविकता से आशा प्राप्त करते हैं कि परमेश्वर हमें कठिन स्थितियों द्वारा सिद्ध बनाएगा l सफ़ेद पीपल की तरह, विश्वास परीक्षाओं में उन्नत्ति करता है जब परमेश्वर की ज्योति के स्पर्श हेतु कठिनाई हमारे हृदयों में जगह तैयार करती है l
उसका अद्भुत चेहरा
मेरा चार वर्षीय बेटा जिज्ञासु है और निरंतर बातें करता है l मुझे उससे बातें करना पसंद है, किन्तु वह अपनी पीठ मेरी ओर करके बातें करने की खेदजनक आदत बना ली है l मैं अक्सर कहती हूँ, “मैं तुम्हारी सुन नहीं सकती-कृपया मेरी ओर देखकर बातें करो l”
कभी-कभी परमेश्वर हमसे भी यही कहता है-इसलिए नहीं कि वह सुन नहीं सकता, किन्तु हम वास्तव में “उसे देखे बिना” उससे बातचीत करना चाहते हैं l हम प्रार्थना करते समय अपने प्रश्नों में उलझकर और स्वकेन्द्रित रहकर, भूल जाते हैं किससे प्रार्थना कर रहे हैं l मेरे बेटे की तरह, हम उसकी ओर केन्द्रित हुए बिना प्रश्न करते हैं जिससे हम बातचीत कर रहे हैं l
हम, परमेश्वर कौन है और उसने क्या किया है, के विषय खुद को याद दिलाकर अपने अनेक चिंताओं को संबोधित कर सकते हैं l केवल पुनः केन्द्रित होकर, ही हम उसके चरित्र को जानकर सुख पाते हैं : कि वह प्रेमी, क्षमाशील, प्रभु, और अनुग्रहकारी है l
भजनकार का विश्वास था कि हम परमेश्वर का मुख निरंतर निहारें (भजन 105:4) l दाऊद द्वारा अगुओं को उपासना और प्रार्थना के लिए नियुक्ति पर, उसने लोगों को परमेश्वर के चरित्र की प्रशंसा करने और उसके पूर्व विश्वासयोग्यता की चर्चा करने को उत्साहित किया (1 इतिहास 16:8-27) l
परमेश्वर का खूबसूरत चेहरा निहारने पर, हम सामर्थ्य और सुख पाते हैं जो हमें हमारे अनुत्तरित प्रश्नों के मध्य भी संभालता हैं l