सिद्ध संसार
केटी को स्कूल कार्य के रूप में “मेरा सिद्ध संसार” शीर्षक पर एक लेख लिखने को मिला l उसने लिखा : “मेरे सिद्ध संसार में . . . आइसक्रीम मुफ्त मिलता है, लॉलीपॉप हर जगह उपलब्ध है, और कुछ विशेष आकार के बादलों को छोड़कर आसमान हर समय नीला है l उसके बाद उसके लेख में गंभीर बातें थीं l उस संसार में, उसने आगे लिखा, “कोई भी बुरी खबर लेकर घर नहीं आएगा l और उस तरह का खबर लानेवालों की ज़रूरत नहीं है l
कोई भी बुरी खबर लेकर घर नहीं आएगा l क्या यह खुबसूरत नहीं है? ये शब्द यीशु में हमारे निश्चित आशा की ओर संकेत करते हैं l वह “सब कुछ नया कर रहा है” अर्थात् हमारे संसार को चंगा एवं रूपांतरित कर रहा है (प्रकाशितवाक्य 21:5) l
स्वर्गलोक “कभी नहीं होगा” का स्थान है – बुराई नहीं होगी, मृत्यु नहीं होगी, विलाप नहीं होगा, पीड़ा नहीं होगी, आँसू नहीं होंगे (पद.4) l यह परमेश्वर के साथ पूर्ण सहभागिता का स्थान है, जिसने अपने प्रेम से विश्वासियों को छुड़ाकर अपना बनाया है (पद.3) l हमारे लिए भविष्य में कितना अद्भुत आनंद है!
हम यहाँ पर वर्तमान में इस पूर्ण सच्चाई की एक झलक प्राप्त कर सकते हैं l जब हम प्रतिदिन परमेश्वर के साथ सहभागिता रखते हैं, हम उसकी उपस्थिति का आनंद अनुभव करते हैं (कुलुस्सियों 1:12-13) l और जब हम पाप के विरुद्ध संघर्ष करते हैं, हम कुछ हद तक, मसीह में, जिसने पाप और मृत्यु को पूरी तौर से पराजित कर दिया हैं, उस विजय का अनुभव कर सकते हैं (2:13-15)
करवटें बदलना
कौन सी बात आपको रात में जगा के रखती है? हाल ही में मैंने नींद खोयी है, और बिस्तर पर करवटें बदलते हुए इस समस्या का हल खोजने का प्रयास किया है l आखिरकार अगले दिन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रयाप्त आराम नहीं मिलने से मैं खीज जाती हूँ!
जाना-पहचाना महसूस होता है? समस्याग्रस्त सम्बन्ध, अज्ञात भविष्य, जो भी हो – हम कभी न कभी चिंता करते ही हैं l भजन 4 को लिखते हुए राजा दाऊद अवश्य ही कठिनाई में था l लोग झूठे आरोप लगाकर उसकी इज्ज़त को बर्बाद कर रहे थे (पद.2) l और कुछ लोग उसके शासन करने की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे थे (पद.6) l संभवतः दाऊद इस तरह के अन्यायपूर्ण व्यवहार से क्रोधित था l अवश्य ही वह कई रात तक इसके विषय बेचैन रह सकता था l फिर भी हम उसके इन अद्भुत शब्दों को पढ़ते हैं : “मैं शांति से लेट जाऊँगा और सो जाऊँगा” (पद.8) l
चार्ल्स स्पर्जन खूबसूरती से पद 8 की व्याख्या करते हैं : “इस तरह लेटकर , . . . [दाऊद] खुद को किसी के बाहों में डाल देता है; वह पूरी तरह ऐसा करता है, क्योंकि समस्त चिंताओं के अभाव में, वह सो सका; यहाँ पूर्ण भरोसा दिखाई देता है l”
इस भरोसा के पीछे कौन सी प्रेरणा है? आरम्भ से, दाऊद को भरोसा था कि परमेश्वर उसकी प्रार्थना सुनेगा (पद.3) l और वह निश्चित था कि परमेश्वर ने उससे प्रेम करने के लिए उसे चुना है, और वह उसकी ज़रूरतें भी पूरी करेगा l
चिंता के समय परमेश्वर हमें अपनी सामर्थ्य और उपस्थिति में आराम दे l उसके प्रभुत्व करनेवाले और प्रेमी बाहों में, हम “लेट” और “सो” जाएंगे l
विधवा का विश्वास
आह-पाई सुबह तड़के उठ जाती है। बाकि लोग भी जल्दी उठकर रबड़ के बागानों में जाएँगे। रबड़ की फ़सल चीन के हांगझुआंग गांव-वासियों की आय का मुख्य स्रोत है। अधिक रबर इकट्ठा करने लिए सुबह से पेड़ों से क्षीर निकाला जाता है। आह-पाई भी उनमें शामिल होगी, परंतु पहले वह परमेश्वर के साथ समय बिताएगी।
आह-पाई के पिता, पति, और पुत्र का निधन हो चुका है। वह अपनी बुजुर्ग मां और दो पोतों को पालने के लिए मेहनत करती है। उसकी कहानी मुझे बाइबिल में एक विधवा की याद दिलाती है। जिसका पति कर्जा छोड़ कर मर गया (2राजा 4:1)। संकट में मदद पाने के लिए वह परमेश्वर के दास एलीशा के पास गई। उसे विश्वास था कि उसकी स्थिति में परमेश्वर ही कुछ कर सकते हैं। परमेश्वर ने किया। आश्चर्यकर्मों से उन्होंने विधवा की जरूरतों को पूरा किया (पद 5- 6)। परमेश्वर आह-पाई की जरूरतों को भी पूरा करते हैं-भले ही कम आश्चर्यकर्मों से-वह ऐसा उसकी मेहनत, भूमि की उपज और लोगों के उपहारों के माध्यम से करते हैं।
जीवन हमसे चाहे कई मांगे करे, हम सामर्थ सदा परमेश्वर से पा सकते हैं। अपनी चिंताओं को उन्हें सौंप कर हम जो संभव हो वह करें। और उन्हें वह करने का अवसर दें जो हमें अंततः आश्चर्यचकित कर देगा।
उम्र का ज्ञान
2010 में सिंगापुर के एक समाचारपत्र में 8 वरिष्ठ नागरिकों की जीवन-शिक्षा पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित हुई:जहां उम्र बड़ने से मानव शरीर और मन के लिए चुनौतियां आती हैं वहां यह दूसरे क्षेत्र में विस्तार भी होता है। इसमें भावनात्मक और सामाजिक समझ से भरा ऐसा गुण है जिसे वैज्ञानिक ज्ञान के रूप में परिभाषित करते हैं...उम्र का ज्ञान।
जीवन के बारे में सिखाने को बुद्धिमान बूढ़ों के पास बहुत कुछ होता है। परंतु बाइबिल में हम ऐसे नए राजा से मिलते हैं जो यह नहीं समझ सका।
सुलेमान की मृत्यु के बाद इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर यों कहने लगी... (1 राजा 12:3-4)। पहले उसने बूढ़ों से सम्मति ली फिर उसे छोड़कर उन जवानों की सम्मति मान कर जो उसके संग बड़े हुए थे, वह लोगों का बोझ और बढ़ा देता है (पद 6,8)। जिस मूर्खता के लिए उसने अपने राज्य का एक बड़ा भाग खो दिया।
हम सबको उस सम्मति की आवश्यकता होती है जो वर्षों के अनुभव से आती है। विशेषकर उनकी जो परमेश्वर के साथ चले हैं और उनकी सम्मति मान चुके हैं। उस ज्ञान के बारे में सोचिए जो परमेश्वर ने उन्हें दिया है! हमारे साथ बाँटने के लिए उनके पास बहुत कुछ है। आइए उन्हें खोजें और उनके ज्ञान से सीखें।
मुझ पर विश्वास करो
ग्रैजूएशन के बाद, कम वेतन की नौकरी के कारण कभी-कभी अगले भोजन के लिए भी पैसे पर्याप्त नहीं होते थे। अपनी आवश्यकताओं के लिए मैंने परमेश्वर पर विश्वास करना सीख लिया।
एलिय्याह के अनुभव के समान जिन्होंने अपनी आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना सीख लिया था। इस्राएल में आने वाले सूखे की घोषणा करने के बाद परमेश्वर ने उन्हें करीत नामक नाले के निर्जन स्थान पर भेजा जहां उन्होंने उनके प्रतिदिन के भोजन के लिए कौवों का प्रयोग किया और नाले के पानी से उन्हें तरोताज़ा किया (1 राजा 17:1–4)।
सूखा शुरू हुआ और नाला पहले एक धारा में और फिर कुछ बूंदों में सिकुड़ गया। नाला सूख जाने पर परमेश्वर ने कहा: “चलकर सीदोन के सारपत नगर में जा ...” (9)। सारपत फीनीके में था, जिसके निवासी इस्राएलियों के शत्रु थे। क्या कोई एलिय्याह को आश्रय को देगा? और क्या बाँटने के लिए एक गरीब विधवा के पास भोजन होगा?
अधिकतर लोग चाहेंगे कि प्रतिदिन के बजाय परमेश्वर सब कुछ एकसाथ ही हमें दे दें। परंतु पिता कहते हैं, मुझ पर विश्वास रख। जैसे एलिय्याह के लिए उन्होंने कौवों और विधवा का उपयोग किया, वैसे ही उनके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम उनपर विश्वास कर सकते हैं।
मेल खाना
ली (Lee) एक मेहनती और विश्वसनीय बैंक कर्मचारी है। विश्वासी होने के नाते वे दूसरों से अलग हैं और यह प्रत्यक्ष हो जाता है, जैसे किसी अनुचित बात पर उसका कमरे से निकल जाना। मित्रों से साझा करते हुए उसने कहा "डर है कि मेल ना खाने के कारण मैं उन्नति के अवसर गवा रहा हूं।"
भविष्यवक्ता मलाकी के समय में विश्वासियों ने एक ऐसी ही चुनौती का सामना किया था। वे देश निकाले से लौट कर आए थे और मंदिर का पुनर्निर्माण हो गया था, परन्तु परमेश्वर की भविष्य की योजना पर उन्हें संशय था। कुछ इस्राएली कह रहे थे, "परमेश्वर की सेवा करनी व्यर्थ है...(मलाकी 3:14-15)।
एक ऐसे समाज में परमेश्वर के लिए हम कैसे दृढ़ खड़े हों, जो हमें बताता है कि हम क्या खो देंगे यदि इससे मेल ना खाएं? मलाकी के समय में इस चुनौती का सामना विश्वासयोगी लोगों ने एक मन विश्वासियों के साथ मिलकर एक-दूसरे को प्रोत्साहित करके किया। मलाकी कहते हैं तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की...”(16)।
परमेश्वर को उन सभी का ध्यान और परवाह है जो उनका भय और आदर मानते हैं। उन्होंने हमें मेल खाने के लिए नहीं बुलाया है। परन्तु इसलिए कि हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें जिससे वे हमें अपने और निकट लाएं।
धन्यवादी दैनिकी
जब मैं यीशु में नयी विश्वासिनी थी, एक आत्मिक सलाहकार ने मुझ से धन्यवादी दैनिकी रखने को कहा l एक छोटा नोटबुक जिसे मैं अपने साथ हर जगह ले जाती थी l कभी-कभी मैं धन्यवाद की बात को तुरंत लिख लेती थी l अन्य समयों में, मैं सप्ताह के अंत में मनन के समय के बाद उसे लिखती थी l
प्रशंसा की बातों पर ध्यान देना एक अच्छी बात है, जो मैं अपने जीवन में फिर से स्थापित करना चाहती हूँ l यह मुझे परमेश्वर की उपस्थिति और उसके प्रावधान और देखभाल के लिए सचेत रहने में मदद करेगा l
सबसे छोटे भजन, भजन 117 में, लेखक सभी को प्रभु की प्रशंसा करने के लिए उत्साहित करता है क्योंकि “उसकी करुणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है” (पद.2) l
इसके विषय सोचे : प्रभु ने आपसे आज, इस सप्ताह, इस महीना, और इस साल किस तरह प्रेम किया है? असाथारण की आशा न करें l उसका प्रेम साधारण, जीवन की दैनिक स्थितियों में दिखाई देता है l उसके बाद अनुभव करें कि आपके परिवार के प्रति, आपकी कलीसिया, और दूसरों के प्रति उसका प्रेम कैसे प्रगट हुआ है l हम सब के प्रति उसके प्रेम के विस्तार में डूब जाएं l
भजन यह भी कहता है कि “यहोवा की सच्चाई सदा की है”(पद.2 में ज़ोर दिया गया है) l अर्थात् वह हमेशा हमसे प्रेम करता रहेगा! इसलिए हम भविष्य में भी अनेक बातों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते रहेंगे l उसके प्रिय बच्चों की तरह परमेश्वर की स्तुति करना और धन्यवाद देना ही हमारे जीवन का चरित्र हो!
मैकफेरसन गार्डन्स में क्रिसमस
हमारे पड़ोस, मैकफेरसन गार्डन्स, ब्लाक 72 (सिंगापुर) के क्षेत्र में लगभग 230 परिवार और व्यक्ति निवास करते हैं l हर एक के जीवन की अपनी कहानी है l दसवीं मंजिल पर एक बूढ़ी महिला रहती है जिसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और विवाह करके अपने-अपने परिवार के साथ अलग रहने लगे हैं l यह महिला अकेले रहती है l उनके घर से दो एक घर छोड़कर एक युवा जोड़ा अपने दो छोटे बच्चों, एक बेटा और एक बेटी के साथ रहता है l और कुछ मंजिल नीचे एक युवा रहता है जो फ़ौज में नौकरी करता है l वह पहले चर्च भी जा चूका है; शायद वह क्रिसमस में भी चर्च जाए l इन लोगों से मेरी मुलाकात पिछले क्रिसमस के दिनों में हुई थी जब हम पड़ोसियों के घरों में क्रिसमस के गीत द्वारा क्रिसमस का आनंद बांटने गए थे l
जैसे कि प्रथम क्रिसमस में स्थिति थी आज भी प्रत्येक क्रिसमस के मौसम में ऐसे लोग हैं जो नहीं जानते कि परमेश्वर एक बालक के रूप में जिसका नाम यीशु है इस संसार में प्रवेश किया था (लूका 1:68; 2:21) l अथवा वे उस घटना का महत्त्व नहीं जानते हैं अर्थात् वह “बड़े आनंद का समाचार . . . जो सब लोगों के लिए होगा” (2:10) l जी हाँ, सब लोगों के लिए! हमारी राष्ट्रीयता, संस्कृति, लिंग, अथवा आर्थिक दशा से परे, यीशु हमारे लिए बलिदान होने और हमें पूर्ण क्षमा देने आया ताकि हमारा मेल उससे हो जाए और हम उसके प्रेम, आनंद, शांति, और आशा का आनंद ले सकें l सभी लोगों को यह अद्भुत समाचार सुनना ज़रूरी है जिसमें वह बूढ़ी महिला और वे सब सहयोगी शामिल हैं जिनके साथ हम भोजन करते हैं!
पहले क्रिसमस में, आनंद के समाचार को सुननेवाले स्वर्गदूत थे l आज, परमेश्वर की इच्छा है कि हम दूसरों को सुसमाचार सुनाएं l
बोलने से पहले विचार करें
चुअंग अपनी पत्नी से नाराज़ हो गया क्योंकि वह उस रेस्टोरेंट का मार्ग भूल गयी थी जिसमें वे भोजन करना चाहते थे l घर लौटने के लिए हवाई जहाज पकड़ने से पूर्व वे परिवार के रूप में अपनी छुट्टियों का समापन जापान में एक शानदार भोजन पार्टी के साथ करना चाहते थे l अब देर हो रही थी और भोजन करना मुश्किल लग रहा था l निराश होकर, चुअंग ने ख़राब आयोजन के लिए अपनी पत्नी की आलोचना की l
बाद में अपने शब्दों के लिए पछताया l वह बहुत अधिक कठोर हो गया था, और उसने यह भी महसूस किया कि वह खुद ही होटल का पता लगा सकता था और दूसरे सात दिनों के अच्छे आयोजन के लिए पत्नी को धन्यवाद देना भूल गया l
हममें से बहुत लोग चुअंग के समान हो सकते हैं l हम क्रोधित होकर अपने शब्दों को अनियंत्रित होने देते हैं l हमारे लिए भजनकार के साथ प्रार्थना करना कितना ज़रूरी है : “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर!” (भजन 141:3 ) l
किन्तु हम ऐसा कैसे करें? यहाँ एक लाभदायक सलाह है : बोलने से पहले विचार करें l क्या आपके शब्द उत्तम, लाभदायक, अनुग्रह से परिपूर्ण और दयालु हैं? (इफि.4:29-32) l
अपने मुँह पर पहरा बैठाने के लिए हमें क्रोध आने पर अपना मुँह बंद रखना होगा और कि हमें सही सुर में सही शब्द बोलने के लिए प्रभु से सहायता मांगनी होगी अथवा, शायद चुप रहना होगा l अपनी बोली नियंत्रित रखना जीवन भर का कार्य है l धन्यवाद हो, परमेश्वर हममें कार्य कर रहा है ताकि हम “उसकी आज्ञा [मानें] और उसकी इच्छा पर चल सकें” (फ़िलि. 2:13) l