अलग ढंग से सोचना
कॉलेज के दौरान, मैंने वेनेजुएला में गर्मियों का एक बड़ा हिस्सा बिताया l भोजन अद्भुत था, लोग दिलचस्प थे, मौसम और आतिथ्य मनोहर था l पहले या दो दिनों के भीतर, हालांकि, मैंने माना कि समय प्रबंधन पर मेरे विचार मेरे नए दोस्तों द्वारा साझा नहीं किए गए थे l अगर हम दोपहर को भोजन करने की योजना बनाते थे, तो इसका मतलब था 12:00 से 1:00 बजे के बीच कहीं भी l सभाओं या यात्रा के लिए भी उसी तरह : समय सीमा कठोर समय-पालन के बिना सन्निकटन(approximation) थे l मैंने महसूस किया कि “समय पर होने” का मेरा विचार मेरी समझ से कहीं अधिक सांस्कृतिक रूप से बना था l
आमतौर पर हमारे कभी ध्यान दिए बिना, हम सभी अपने चारों-ओर की सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा आकार पाते हैं l पौलुस इस सांस्कृतिक बल को “संसार” कहता है (रोमियों 12:2) l यहाँ, “संसार” का अर्थ भौतिक संसार नहीं है, बल्कि यह सोचने के तरीके को संदर्भित करता है जो हमारे अस्तित्व में व्याप्त है l यह निर्विवाद मान्यताओं और मार्गदर्शक आदर्शों को संदर्भित करता है जो हमें केवल इसलिए सुपुर्द किया गया है क्योंकि हम एक विशेष स्थान और समय में रहते हैं l
पौलुस सचेत करता है कि हमें “इस संसार के सदृश” नहीं बनना है l इसके बजाय, “[हमारे] मन के नए हो जाने से [हमारा] चाल-चलन भी बदलता जाए” (पद.2) l निष्क्रिय रूप से सोचने के तरीकों को ग्रहण करना और विश्वास करना जो हमें लपेट लेती है, हमें परमेश्वर के सोचने के तरीके को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने के लिए बुलाया गया है और सीखने के लिए कि कैसे उसकी “भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा” समझें (पद.2) l काश हम हर एक दूसरी आवाज़ की जगह परमेश्वर का अनुसरण करना सीखें l
चट्टान पर एक घर
एक अमेरिकी राज्य के लगभग 34,000 घरों के खराब नींव के कारण उनके गिरने का खतरा है l यह अहसास किये बगैर, एक पत्थर/कंक्रीट कंपनी ने खदान से एक खनिज मिश्रित पत्थर निकाले, जो समय के साथ, पत्थर में दरार उत्पन्न कर उन्हें विघटित कर देता है l लगभग छह सौ घरों की नींव पहले ही कमजोर हो चुकी है, और समय के साथ यह संख्या बढ़ने की संभावना है l
यीशु हमारी जिंदगी के अस्थिर भूमि पर बनने के खतरे को समझाने के लिए उन्होंने खराब नीव पर बने घर का उद्धारण दिया. उन्होंने समझाया कि हममें से कुछ लोग मजबूत चट्टान पर अपने जीवन का निर्माण करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम प्रचंड तूफानों का सामना करते समय ठोस रहें l हालांकि, हम में से अन्य, रेत पर अपना जीवन बनाते हैं; और जब प्रचंड आंधी चलती है, तो हमारे जीवन गिर जाता है “एक महान दुर्घटना के साथ”(मत्ती 7:27) l एक दृढ़ नींव और एक ढहते हुए निर्माण के बीच अंतर यह है कि क्या हम मसीह के शब्दों पर “चलते” (पद.26) हैं या नहीं l सवाल यह नहीं है कि हम उनके शब्दों को सुनते हैं या नहीं, लेकिन क्या हम उनका अभ्यास करते हैं जब वह हमें सक्षम बनाता है l
इस दुनिया में हमें बहुत ज्ञान दिया गया है - साथ ही बहुत सारी सलाह और मदद भी - और इनमें से अधिकाधिक अच्छा और लाभदायक है l यदि हम अपने जीवन को परमेश्वर के सत्य के प्रति विनम्र आज्ञापालन के अलावा किसी भी आधार पर रखते हैं, तो हम परेशानी को आमंत्रित करते हैं l उसकी सामर्थ्य में, परमेश्वर जो कहता है वही एकमात्र तरीका है चट्टान पर, एक घर एक जीवन बनाने का l
शक्तिशाली
23 सप्ताह में “अपरिपक्य शिशु(micro-preemie)” के रूप में पैदा हुई बेबी सेबी का वजन केवल 245 ग्राम था l डॉक्टरों को संदेह था कि सेबी जीवित रहेगी और उन्होंने उसके माता-पिता को बताया कि उनके पास उनकी बेटी के साथ केवल एक घंटा है l हालाँकि, सेबी लड़ती रही l उसके पालने के पास एक गुलाबी कार्ड बता रहा था “नन्ही और शक्तिशाली l” अस्पताल में पांच महीने के बाद, सेबी चमत्कारिक रूप से 2.26 किलोग्राम वजन के स्वस्थ बच्चे के रूप में घर गई l और उसने अपने साथ एक विश्व रिकॉर्ड बनाया : दुनिया का सबसे नन्हा जीवित बच्चा l
ऐसे लोगों की कहानियाँ सुनना ज़ोरदार है जो कठिनाईयों पर विजय प्राप्त करते हैं l बाइबल एक ऐसी ही कहानी बताती है l दाऊद, एक चरवाहा लड़का ने, गोलियत से लड़ने के लिए स्वेच्छा से आगे आया - एक महाकाय योद्धा, जिसने परमेश्वर को अपमानित किया और इस्राएल को धमकाया l राजा शाऊल ने सोचा कि दाऊद हास्यास्पद है : “तू जाकर उस पलिश्ती के विरुद्ध युद्ध नहीं कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है, और वह लड़कपन ही से योद्धा है” (1 शमुएल 17:33) l और जब दाऊद जो लड़का ही था ने युद्ध के मैदान में कदम रखा, तो गोलियत ने “दृष्टि करके दाऊद को देखा, तब उसे तुच्छ जाना; क्योंकि वह लड़का ही था” (पद.2) l हालाँकि, दाऊद ने अकेले युद्ध में कदम नहीं रखा l वह “इस्राएली सेना का परमेश्वर,” “सेनाओं के यहोवा के नाम से” आया (पद.45) l और दिन के समाप्ति पर, विजयी दाऊद मृत गोलियत के ऊपर खड़ा था l
कोई फर्क नहीं पड़ता कि समस्या कितनी बड़ी है, जब परमेश्वर हमारे साथ है तो हमें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है l उसकी सामर्थ्य के साथ, हम भी शक्तिशाली हैं l
बेट्टी आंटी का तरीका
जब मैं छोटा था, तो जब भी मेरी अत्यधिक स्नेह करनेवाली बेट्टी आंटी आती थी, मुझे क्रिसमस जैसा लगता था । वह खिलौने लाती थी और दरवाजे से बाहर जाते समय पैसे भी दे जाती थी l जब भी मैं उनके साथ रहा, उन्होंने फ्रीज़र को आइसक्रीम से भर दिया और सब्जियां कभी नहीं पकायी l उनके कुछ नियम थे और मुझे देर रात तक जगा कर रखती थीं l परमेश्वर की उदारता को दर्शानेवाली मेरी आंटी अद्भुत थी । हालाँकि, स्वस्थ रूप से उन्नति करने के लिए, मुझे केवल आंटी बेट्टी के तरीके से अधिक की आवश्यकता थी । मैं चाहता था कि मेरे माता-पिता मुझसे और मेरे आचरण से अपेक्षा करें, और मेरी माने l
परमेश्वर बेट्टी आंटी से अधिक मेरे विषय मुझसे पूछता है l जबकि वह हमें अथक प्रेम से भर देता है, एक ऐसा प्यार जो उस समय भी कभी डगमगाता नहीं जब हम विरोध करते हैं या भाग जाते हैं, वह हमसे कुछ अपेक्षा ज़रूर करता है l जब परमेश्वर इस्राएल को कैसे जीना है का निर्देश दिया, उसने दस आज्ञाएँ दीं, दस सुझाव नहीं (निर्गमन 20:1-17) । हमारे आत्म-धोखे के बारे में अभिज्ञ, परमेश्वर स्पष्ट अपेक्षाएँ प्रदान करता है : “हम परमेश्वर से प्रेम [करें] और उसकी आज्ञाओं को [मानें]” (1 यूहन्ना 5:2) l
शुक्र है, “[परमेश्वर की] आज्ञाएँ कठिन नहीं [हैं] (पद.3) । पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, हम उनको व्यवहारिक रूप से जी सकते हैं जब हम परमेश्वर के प्रेम और आनंद का अनुभव करते हैं । हमारे लिए उसका प्रेम अनवरत है l लेकिन पवित्रशास्त्र हमें यह जानने में मदद करने के लिए एक प्रश्न प्रस्तुत करता है कि क्या हम बदले में परमेश्वर से प्रेम करते हैं : क्या हम उसकी आज्ञाओं का पालन कर रहे हैं जब पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन करता है?
हम कह सकते हैं कि हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, लेकिन हम उसकी ताकत में क्या करते हैं वास्तविक कहानी बताती है ।
एक खुला, उदार हृदय
विकी की पुरानी बाइक के खराब होने के बाद उसकी मरम्मत के लिए कोई विकल्प नहीं होने के बाद, उसने दूसरी के लिए पैसे जुटाने शुरू कर दिए । रेस्तरां का नियमित ग्राहक क्रिस, जहां विकी ड्राइव-थ्रू विंडो/take-away counter) पर काम करती है, ने एक दिन उसको कहते सुना कि उसे एक बाइक की जरूरत है । "मैं इसके बारे में सोचना बंद नहीं कर सका," क्रिस ने कहा । "मुझे कुछ करना [ही] था ।" इसलिए उसने अपने बेटे की उपयोग की हुई बाइक खरीदी (उसके बेटे ने इसे सिर्फ बिक्री के लिए रखा था), उसे चमकाया और विकी को चाबी दे दी । विक्की चौंक गयी । “कौन . . . ऐसा करता है?” वह विस्मय और कृतज्ञता में पूछी l
पवित्रशास्त्र हमें खुले हाथों के साथ जीने के लिए कहता है, स्वतंत्र रूप से जैसे हम दे सकते हैं - जो कि जरूरतमंद लोगों के लिए वास्तव में सर्वोत्तम है । जैसा कि तीमुथियुस कहता है : “धनवानों आज्ञा दे कि वे . . . भले कामों में धनी बनें” (1 तीमुथियुस 6:17-18) । हम यहाँ या वहाँ केवल एक कृपालु कार्य नहीं करते हैं, बल्कि देने की एक उत्साही भावना को जीते हैं । उदार हृदय हमारे जीवन का सामान्य तरीका है । हमसे कहा गया है, “उदार और सहायता देने में तत्पर हों” (पद.18) l
जब हम खुले, उदार दिल के साथ जीते हैं, हमें डरना नहीं है कि हमारी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी l इसके बजाय, बाइबल हमें बताती है कि हमारी दयालु उदारता में, हम "[सच्चे] जीवन को वश में कर रहे हैं (पद.19) । परमेश्वर के साथ, वास्तविक जीवन का मतलब है कि हमारे पास जो कुछ भी है उस पर अपनी पकड़ ढीली करना और दूसरों को स्वतंत्र रूप से देना ।
घर वापसी
अमेरिका में एक सैन्यकर्मी वाल्टर डिक्सन के पास युद्ध में भाग लेने से पहले पांच दिन का प्रमोदकाल/हनीमून था । एक साल से भी कम समय में, सैनिकों ने उसका जैकेट युद्ध के मैदान में पाया, जिसमें उसकी पत्नी की चिट्ठियाँ थीं । सैन्य अधिकारियों ने उसकी युवा पत्नी को सूचित किया कि उसके पति कार्रवाई में मारे गए हैं । असल में, वह जीवित था और अगले 2.5 साल युद्ध बंदी के रूप में बिताया । हर घंटे, उसने घर जाने की साजिश रची l वह पांच बार बच निकला लेकिन पुनः गिरफ्तार कर लिया गया l अंत में, वह रिहा कर दिया गया । आप ताज्जुब की कल्पना कर सकते हैं जब वह घर लौटा!
परमेश्वर के लोगों को पता था कि गिरफ्तार होना, दूर ले जाया जाना, और घर की चाह क्या होती है । परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह के कारण, वे निर्वासित थे । वे हर सुबह लौटने के लिए तरस रहे थे, लेकिन उनके पास खुद को बचाने का कोई रास्ता नहीं था । शुक्र है, परमेश्वर ने वादा किया कि वह उन्हें भुलाया नहीं है l “मुझे उन पर दया आई है, इस कारण मैं उन्हें लौटा [लाऊंगा]” (जकर्याह 10: 6) । वह घर लौटने की उनकी अनवरत पीड़ा को समाप्त करेगा, उनके आग्रह के कारण नहीं, बल्कि अपनी दया के कारण : “मैं सीटी बजाकर उनको इकठ्ठा करूँगा . . [और] वह लौट आएँगे” (पद.8-9) ।
निर्वासन की हमारी भावना हमारे बुरे फैसलों या हमारे नियंत्रण से परे कठिनाइयों के कारण आ सकती है । किसी भी तरह से, परमेश्वर ने हमें भुलाया नहीं है । वह हमारी इच्छा जानता है और हमें बुलाएगा । और यदि हम उत्तर देंगे, तो हम खुद को उसकी ओर लौटते हुए पाएंगे – घर लौटते हुए l
परमेश्वर हमें थामता है
दक्षिण अफ्रीका का एक व्यक्ति जिसका नाम फ्रेडीब्लोम है, 2018 में 114 वर्ष का हो गया, जिसे सबसे वृद्ध जीवित व्यक्ति के रूप में मान्यता मिली । 1904 में जन्मे, वह दोनों विश्व युद्ध, रंगभेद और आर्थिक मंदी में जीवित था । जब उसकी लंबी उम्र का रहस्य पूछा गया, तो उसने केवल अपने कंधे उचकाए l हम में से कई लोगों की तरह, उसने हमेशा उन खाद्य पदार्थों और प्रथाओं को नहीं चुना जो तंदुरुस्ती बढाते हैं l हालाँकि, वह अपने उल्लेखनीय स्वास्थ्य के लिए एक कारण अवश्य प्रस्तुत करता है : “केवल एक ही चीज़ है, और वह [परमेश्वर] है । उसके पास सारी शक्ति है . . . वह मुझे थामता है l”
यह उन शब्दों के समान है जो परमेश्वर ने इस्राएल से कहे थे, जब वह राष्ट्र भयंकर दुश्मनों के उत्पीड़न के तहत कुम्हला गया । परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की, “मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूँगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे संभाले रहूँगा” (यशायाह 41:10) l कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी स्थिति कितनी निराशाजनक थी, कितनी मुश्किल कठिनाई है कि क्या वे कभी राहत पाएंगे, परमेश्वर ने अपने लोगों को आश्वासन दिया कि वे उसकी कोमल देखभाल में थामे गए थे । “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ,” उसने दृढ़ता से कहा l “इधर उधर मत ताक, क्योकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ” (पद.10) l
कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमें कितने साल दिए गए हैं, जीवन की कठिनाइयां हमारे दरवाजे पर दस्तक देंगी । एक परेशान विवाह । परिवार को त्यागने वाला बच्चा । चिकित्सक से भयभीत करनेवाला समाचार प्राप्त करना । यहां तक कि सताव भी । हालाँकि, हमारा परमेश्वर हमारे पास पहुँचता है और हमें दृढ़ता से थामता है । वह हमें अपने मजबूत, कोमल बाहों में समेट कर थामता है l
मिलकर दुःख उठाना
2013 में, ब्रिटिश शाही नौसैनिक दिग्गज सत्तर वर्षीय जेम्स मैककोनेल का निधन हो गया l मैककोनेल का कोई परिवार नहीं था, और उनके वृद्धाश्रम के कर्मचारियों को डर था कि कोई भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होगा l मैककोनेल की यादगार(memorial) सेवा को संचालित करने के लिए नियुक्त किए गए एक व्यक्ति ने एक फेसबुक संदेश पोस्ट किया : “इस दिन और इस उम्र में यह काफी दुखद है कि किसी को भी इस दुनिया को छोड़ना है जिनकी मृत्यु पर कोई शोक करने वाला नहीं है, लेकिन यह व्यक्ति एक परिवार था . . . यदि आप इसके अंतिम संस्कार में अपना सम्मान देने के लिए उपस्थित हो सकते हैं जो पूर्व नौसैनिक था तो कृपया ज़रूर उपस्थित हों l” दो सौ शाही सैनिक उपस्थित हुए!
इन ब्रिटिश हमवतन लोगों ने एक बाइबिल सत्य दिखाया : “देह में एक हो अंग नहीं परन्तु बहुत से हैं,” पौलुस कहता है (1 कुरिन्थियों 12:14) l हम अकेले नहीं हैं l ठीक इसके विपरीत : हम यीशु में बंधे हुए हैं l पवित्रशास्त्र जैविक अंतरसंबंध का खुलासा करता है : यदि एक अंग दुःख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं” (पद.26) l यीशु के विश्वासियों के रूप में, परमेश्वर के नए परिवार के सदस्य, हम मिलकर पीड़ा में, दुःख में, उन अँधेरे स्थानों में, जहाँ हम अकेले जाने से डरेंगे, ओर बढ़ते हैं l लेकिन शुक्र है कि हम अकेले नहीं जाते l
शायद दुख का सबसे बुरा हिस्सा वह है जब हम महसूस करते हैं कि हम अकेले ही अंधेरे में डूब रहे हैं l हालाँकि, परमेश्वर एक नया समुदाय बनाता है जो मिलकर दुःख उठता है l एक नया समुदाय जहां किसी को अंधेरे में नहीं छोड़ा जाना चाहिए l
युद्ध समाप्त हो चूका है l वास्तव में l
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद उनतीस वर्षों तक, एक जापानी सैनिक, हीरू ओनोडा जंगल में छिपा रहा, और यह विशवास करने से इनकार कर दिया कि उसके देश ने आत्मसमर्पण कर दिया था l जापानी सैन्य अगुओं ने उसे अमेरिकी और ब्रिटिश सेना की जासूसी करने के आदेश के साथ फिलिपीन्स के एक दूरदराज़ के द्वीप पर भेज दिया था l शांति संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के लम्बे समय बाद और शत्रुता समाप्त होने के बाद भी, बह जंगल में रहा l 1974 में, उसके कमांडिंग ऑफिसर को उसे खोजने और उसे भरोसा दिलाने के लिए कि युद्ध समाप्त हो चूका है उस द्वीप तक यात्रा करनी पड़ी l
तीन दशकों तक, यह व्यक्ति दरिद्र, अलग-थलग जीवन जीया, क्योंकि उसने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था – विश्वास करने से इनकार कर दिया था कि संघर्ष ख़त्म हो चुका था l हम भी उसी प्रकार की गलती कर सकते हैं l पौलुस इस आश्चर्यजनक सत्य की घोषणा करता है कि “हम सब जिन्होंने मसीह यीशु का बप्तिस्मा लिया, उसकी मृत्यु का बप्तिस्मा लिया” (रोमियों 6:3) l क्रूस पर, एक शक्तिशाली, रहस्मय तरीके से, यीशु ने शैतान के झूठ को, मौत के आतंक को और पाप की कठोर पकड़ को मौत के घाट उतार दिया l हालाँकि, हम “पाप के लिए तो [मरे हुए], और “परमेश्वर के लिए जीवित” थे (पद.11), हम अक्सर ऐसे जीवित रहते हैं जैसे कि बुराई अभी भी शक्ति रखती है l हम परीक्षा के सामने हार मान जाते हैं, पाप के बहकावे में आकर परास्त हो जाते हैं l हम झूठ सुनते हैं, यीशु पर भरोसा करने में असफल होते हैं l लेकिन हमें हार नहीं माननी है l हमें झूठे कथा में नहीं जीना है l परमेश्वर के अनुग्रह से हम मसीह की जीत की सच्ची कहानी को अपना सकते हैं l
जबकि हम अभी भी पाप के साथ कुश्ती कर रहे हैं, छुटकारा तब मिलता है जब हम समझते हैं कि यीशु ने पहले ही लड़ाई जीत ली है l हम उस सच्चाई को उसकी शक्ति में जी सकते हैं l