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बड़ी अपेक्षाएं

अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों की संस्कृतियों का जश्न मनाने के लिए हमारे चर्च में आयोजित क्रिसमस रात्रिभोज में, जब एक बैंड पारंपरिक मध्य पूर्व कैरोल “लैलात अल-मिलाद” बजाया तो मैंने द्र्बुका(एक प्रकार का ड्रम) और उद(गिटार जैसा एक वाद्य यंत्र) की ध्वनि पर ख़ुशी से ताली बजायी l बैंड के गायक ने बताया कि शीर्षक का अर्थ है “यीशु के जन्म की रात(Navivity Night) l” गीत श्रोताओं को स्मरण दिलाते हैं कि क्रिसमस की भावना दूसरों की सेवा करने में पायी जाती है, जैसे किसी प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना या रोते हुए किसी को सांत्वना देना l 

यह कैरोल(carol) संभवतः एक दृष्टान्त से लिया गया है जहाँ यीशु अपने अनुयायियों की उन कार्यों के लिए सराहना करते हैं जो उन्होंने उसके लिए किये थे : जब वह भूखा था तो भोजन प्रदान करना, जब वह प्यासा था तो पीना, और जब वह बीमार और अकेला था तो सहचारिता और देखभाल करना (मत्ती 25:34-36) l केवल यीशु की प्रशंसा को स्वीकार करने के बजाय, दृष्टान्त में लोग आश्चर्यचकित हैं—यह सोचकर कि उन्होंने वास्तव में मसीह के लिए ये काम नहीं किये हैं l उन्होंने उत्तर दिया, “तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों [और बहनों] में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया”(पद.40) l 

छुट्टियों के मौसम के दौरान, क्रिसमस की भावना में सम्मिलित होने का प्रोत्साहन अक्सर उत्सव के दृष्टिकोण को व्यक्त करने के लिए प्रेरित होता है l “लैलात अल-मिलाद” हमें याद दिलाता है कि हम दूसरों की देखभाल करके सच्ची क्रिसमस भावना को व्यवहार में ला सकते हैं l और आश्चर्यजनक रूप से, जब हम ऐसा करते हैं, तो हम न केवल दूसरों की बल्कि यीशु की भी सेवा करते हैं l 

दैनिक निर्भरता

यीशु में एक युवा विश्वासी के रूप में, मैंने अपनी नयी भक्ति बाइबल उठाकर एक परिचित पद पढ़ा : “मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ों तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा”(मत्ती 7:7) l टिप्पणी में बताया गया कि वास्तव में हमें परमेश्वर से जो माँगना चाहिए वह यह है कि हमारी इच्छा उसकी इच्छा के अनुरूप हो l उसकी इच्छा पूरी करने की चाहत करने से, हमें यह निश्चय मिलेगा कि हमने जो माँगा है वह हमें मिल गया है l यह मेरे लिए एक नया विचार था, और मैंने अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए प्रार्थना की l 

बाद में उसी दिन, मैं उस नौकरी के अवसर के बारे में आश्चर्यजनक रूप से उत्साहित हो गयी जिसे मैंने पहले ही अपने मन में अस्वीकार कर दिया था, और मुझे अपनी प्रार्थना के बारे में याद दिलाया गया l शायद जो मैंने नहीं सोची थी कि मैं चाहती हूँ वह वास्तव में मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा का एक हिस्सा था l मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और अंततः नौकरी स्वीकार कर ली l 

बहुत अधिक गंभीर और अनंत रूप से महत्वपूर्ण क्षण में, यीशु ने हमारे लिए इसका नमूना दिया l अपने विश्वासघात और गिरफ्तारी से पहले, जिसके कारण उसे क्रूस पर चढ़ाया गया, उसने प्रार्थना की : “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो”(लूका 22:42) l मसीह की प्रार्थना व्यथा और पीड़ा से भरी थी क्योंकि उसे शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा का सामना करना पड़ा था(पद.44) l फिर भी वह परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए “ईमानदारी से” प्रार्थना करने में सक्षम था l 

मेरे जीवन में परमेश्वर की इच्छा मेरी मुख्य प्रार्थना बन गयी है l इसका मतलब यह है कि मैं उन चीज़ों की इच्छा कर सकती हूँ जिनके बारे में मुझे पता भी नहीं है कि मैं चाहती हूँ या मुझे इसकी ज़रूरत है l जो नौकरी मैं मूल रूप से नहीं चाहती थी वह मसीही प्रकाशन में मेरी यात्रा का आरम्भ बन गया l पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे विश्वास है कि परमेश्वर की इच्छा पूरी हुयी l

प्रेम की मजदूरी

1986 में, यूक्रेन में चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना ने संसार का ध्यान खींचा l जैसे ही आपदा की भयावहता स्पष्ट हुयी, अधिकारी विकिरण(radiation) को रोकने के अत्यंत आवश्यक कार्य में जुट गए l अत्यधिक रेडियोधर्मी(radioactive) मलबे से निकलने वाली घातक गामा किरणें(gamma rays) कचरे को साफ़ करने के लिए तैनात किये गए रोबोटों(robots) को नष्ट करती रहीं l 

इसलिए उन्हें “जैव रोबोट(bio robots)”—मानवों का उपयोग करना पड़ा! हज़ारों वीर व्यक्ति नब्बे सेकंड या उससे कम की “पालियों(shifts)” में खतरनाक सामग्री को निपटाते हुए “चेरनोबिल परिसमापक/नष्ट करनेवाले(Chernobyl liquidators)” बन गए l लोगों ने बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर वह किया जो तकनीक नहीं कर सकी l 

बहुत समय पहले, परमेश्वर के विरुद्ध हमारे विद्रोह ने एक ऐसी तबाही ला दी थी जिसके कारण अन्य सभी आपदाएं हुयी(उत्पत्ति 3 देखें) l आदम और हव्वा के द्वारा, हमनें अपने सृष्टिकर्ता से अलग होने का फैसला किया और इस प्रक्रिया में हमने अपने संसार को एक जहरीली गन्दगी बना दिया l हम कभी भी इसे स्वयं साफ़ नहीं कर सकते थे l 

यही क्रिसमस का सम्पूर्ण उद्देश्य है l प्रेरित यूहन्ना ने यीशु के बारे में लिखा, “यह जीवन प्रगट हुआ, और हम ने उसे देखा, और उसकी गवाही देते हैं, और तुम्हें उस अनंत जीवन का समाचार देते हैं जो पिता के साथ था और हम पर प्रगट हुआ”(1 यूहन्ना 1:2) l उसके बाद यूहन्ना ने घोषणा की, “[परमेश्वर के] पुत्र का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है”(पद.7) l 

यीशु ने वह प्रबंध किया जो उसके प्राणी/मनुष्य नहीं कर सके l जैसे ही हम उस पर विश्वास करते हैं, वह हमें अपने पिता के साथ एक सही सम्बन्ध में बहाल करता है l उसने मृत्यु को ही नष्ट कर दिया है l जीवन प्रगट हुआ है l 

क्रिसमस लाइट

जब मेरी बहन को हमारे बचपन की कहानियों की किताब मिली, तो मेरी माँ, जो अब सत्तर के दशक की हैं, बहुत खुश हुयी l उसे एक भालू के बारे में सारी मज़ेदार बातें याद आ गयी, जिसने शहद चुराया था और क्रोधित मधुमक्खियों के झुण्ड ने उसका पीछा किया था l उसे यह भी याद आया कि भालू के भागने की उम्मीद पर मैं और मेरी बहन कैसे हँसे थे l “जब हम बच्चे थे तो हमें हमेशा कहानियाँ सुनाने के लिए धन्यवाद,” मैंने अपनी माँ से कहा l वह मेरी पूरी कहानी जानती है, जिसमें यह भी शामिल है कि मैं एक छोटे बच्चे के रूप में कैसी थी l अब जबकि मैं व्यस्क हो गयी हूँ, वह अब भी मुझे जानती और समझती है l 

परमेश्वर भी हमें जानता है—किसी भी इंसान से कहीं अधिक गहराई से, जिसमें हम स्वयं भी शामिल हैं l दाऊद का कहना है कि उसने हमारी “जाँच” की है(भजन सहिंता 139:1) l अपने प्रेम में, उसने हमारी जांच की है और हमें पूरी तरह से समझता है l परमेश्वर हमारे विचारों को जानता है, हम जो कहते हैं उसके पीछे के कारणों और अर्थों को समझता है(पद.2,4) l वह गहराई से हमारे हर एक विवरण से परिचित है जो हमें बनाता है कि हम कौन हैं, और वह इस ज्ञान का उपयोग हमारी मदद करने के लिए करता है(पद.2-5) l वह जो हमें सबसे अधिक जानता है, हमारी उपेक्षा करके हमसे दूर नहीं जाता है बल्कि अपने प्रेम और बुद्धिमत्ता के साथ हम तक पहुंचता है l 

जब हम अकेला, अनदेखा और भूला हुआ महसूस करते हैं, तो हम इस सच्चाई में सुरक्षित रह सकते हैं कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ हैं, हमें देखता है और हमें जानता है(पद.7-10) l वह हमारे उन सभी पक्षों को जानता है जो दूसरे नहीं जानते—और उससे भी अधिक l दाऊद की तरह, हम विश्वास के साथ कह सकते हैं, “तू ने मुझे . . . जान लिया है . . . तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा”(पद.1, 10) l